न्याय की हुई जीत:नेत्रहीन को झूठे केस से मिली आजादी, दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ होगी जांच।
राजस्थान हाईकोर्ट ने चूरू के तारानगर में झूठे केस में फंसाए गए 85% दृष्टिबाधित मोतिया उर्फ अम्मीचंद को रिहा करने का आदेश दिया। पुलिस ने बिना सबूत उसे अपहरण और मारपीट के मामले में गिरफ्तार किया था। कोर्ट ने दोषी SHO और जांच अधिकारी के खिलाफ जांच और पीड़ित को 2 लाख रुपये मुआवजे का आदेश दिया।

जोधपुर: एक नेत्रहीन युवक की जिंदगी को झूठे केस में उलझाने की साजिश को राजस्थान हाईकोर्ट ने न केवल नाकाम कर दिया, बल्कि पीड़ित को इंसाफ और सम्मान भी दिलाया। चूरू के तारानगर में 85% दृष्टिबाधित मोतिया उर्फ अम्मीचंद को पुलिस ने बिना सबूत के जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया था। लेकिन हाईकोर्ट की जोधपुर बेंच ने न सिर्फ उसे तुरंत रिहा करने का आदेश दिया, बल्कि दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ जांच और पीड़ित को 2 लाख रुपये मुआवजे का भी फैसला सुनाया।
क्या है पूरा मामला?
14 मार्च 2025 को चूरू के झोथड़ा गांव में विनोद कुमार नामक युवक का अपहरण और मारपीट का मामला सामने आया। शिकायतकर्ता हरिसिंह ने पांच लोगों पर आरोप लगाया, जिनमें से दो अज्ञात थे। लेकिन पुलिस ने बिना किसी ठोस सबूत के नेत्रहीन मोतिया को सह-आरोपी बनाकर गिरफ्तार कर लिया। उसकी निशानदेही पर डंडा बरामद करने का दावा किया गया और चार्जशीट भी दाखिल कर दी गई। मोतिया की जमानत याचिका निचली अदालत ने खारिज कर दी, जिससे उसका परिवार टूटने की कगार पर पहुंच गया।
ट्रेनी IPS ने खोली पुलिस की पोल
मोतिया के भाई की शिकायत पर चूरू एसपी ने एक ट्रेनी IPS को जांच सौंपी। जांच में सनसनीखेज खुलासा हुआ कि मोतिया घटनास्थल पर था ही नहीं। उसे जानबूझकर फंसाया गया था, शायद असली अपराधियों को बचाने के लिए। इसके बाद दोषी जांच अधिकारी को निलंबित किया गया, लेकिन निचली अदालत ने चार्जशीट दाखिल होने का हवाला देकर मोतिया की रिहाई का आवेदन खारिज कर दिया।
हाईकोर्ट ने दिखाया इंसाफ का रास्ता
मोतिया की ओर से अधिवक्ता कौशल गौतम ने हाईकोर्ट में रिव्यू पिटिशन दायर की। जस्टिस मनोज गर्ग ने 11 जुलाई को न केवल मोतिया की रिहाई का आदेश दिया, बल्कि कड़े शब्दों में पुलिस की कारगुजारी पर टिप्पणी भी की। उन्होंने कहा, "कानून-प्रवर्तन अधिकारियों ने जानबूझकर एक निर्दोष को फंसाया। यह न्याय व्यवस्था और नागरिक स्वतंत्रता पर हमला है।" कोर्ट ने चूरू एसपी को दोषी SHO और जांच अधिकारी के खिलाफ विभागीय जांच शुरू करने और चूरू कलेक्टर को मोतिया की मेडिकल जांच करवाने का निर्देश दिया। यदि दृष्टिबाधिता की पुष्टि होती है, तो राज्य सरकार को 15 दिनों में 2 लाख रुपये मुआवजा देना होगा।
एक सबक, एक उम्मीद
यह मामला न केवल एक नेत्रहीन युवक की जीत है, बल्कि उन सभी के लिए उम्मीद की किरण है जो सिस्टम के दुरुपयोग का शिकार होते हैं। हाईकोर्ट का यह फैसला दर्शाता है कि न्याय की राह मुश्किल हो सकती है, लेकिन असंभव नहीं। मोतिया की कहानी अब लाखों लोगों के लिए प्रेरणा बनेगी कि सच की लड़ाई कभी व्यर्थ नहीं जाती।