नागौर में BJP विधायक का अवैध खनन का काला खेल, 4 लाख टन पत्थर बेचने का आरोप...
नागौर, राजस्थान में अवैध खनन का सनसनीखेज मामला सामने आया है, जिसमें भाजपा विधायक रेवंतराम डांगा पर 4 लाख टन पत्थर अवैध रूप से निकालने और बेचने का आरोप है। उन पर 60 करोड़ रुपये का जुर्माना लगा, जिससे बचने के लिए उन्होंने कथित तौर पर जमीन अपने साले के बेटे के नाम कर दी। इस मामले में कांग्रेस, आप, RLP नेताओं और पूर्व सरपंचों के नाम भी शामिल हैं। यह खुलासा सरकार के अवैध खनन रोकने के दावों पर सवाल उठाता है।

नागौर, राजस्थान: राजस्थान में अवैध खनन का मुद्दा एक बार फिर सुर्खियों में है, और इस बार मामला और भी सनसनीखेज है क्योंकि इसमें सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) के एक विधायक का नाम सामने आया है। खींवसर से भाजपा विधायक रेवंतराम डांगा पर आरोप है कि उन्होंने अवैध रूप से 4 लाख टन पत्थर का खनन कर बेचा, जिसके चलते उन पर 60 करोड़ रुपये का भारी-भरकम जुर्माना लगाया गया है। लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती—जुर्माने से बचने के लिए विधायक ने कथित तौर पर अपनी जमीन अपने साले के बेटे के नाम ट्रांसफर कर दी। इस मामले में न केवल भाजपा विधायक, बल्कि कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (आप), राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (RLP) के नेताओं और कुछ पूर्व सरपंचों के नाम भी उजागर हुए हैं, जिसने पूरे क्षेत्र में हड़कंप मचा दिया है।
अवैध खनन का काला कारोबार
नागौर जिले में अवैध खनन लंबे समय से एक गंभीर समस्या रही है। खींवसर क्षेत्र में खनिज संपदा की प्रचुरता के कारण यह इलाका खनन माफियाओं का गढ़ बन गया है। ताजा खुलासे के अनुसार, भाजपा विधायक रेवंतराम डांगा और उनके पुत्र पर 4 लाख टन पत्थर अवैध रूप से निकालने और बेचने का आरोप है। इस गैरकानूनी गतिविधि में पटवारी और तहसीलदार जैसे स्थानीय अधिकारियों की मिलीभगत की भी बात सामने आई है, जो इस पूरे खेल को और जटिल बनाती है। जांच में पता चला कि खनन के लिए बिना अनुमति के भारी मात्रा में पत्थर निकाला गया, जिससे सरकारी खजाने को करोड़ों का नुकसान हुआ।
जुर्माने से बचने की चाल
जब खान और भूविज्ञान विभाग ने इस अवैध खनन की जांच शुरू की, तो विधायक पर 60 करोड़ रुपये का जुर्माना ठोका गया। लेकिन रेवंतराम डांगा ने इस जुर्माने से बचने के लिए एक चाल चली। सूत्रों के अनुसार, उन्होंने अपनी संपत्ति को अपने साले के बेटे के नाम ट्रांसफर कर दिया ताकि संपत्ति जब्ती से बचा जा सके। यह कदम न केवल कानूनी प्रक्रिया को चकमा देने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है, बल्कि यह भी सवाल उठाता है कि क्या सत्ताधारी दल के नेता खुलेआम नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं।
विपक्षी दलों और पूर्व सरपंचों की भी संलिप्तता
यह मामला केवल भाजपा तक सीमित नहीं है। जांच में कांग्रेस, आप और RLP के कुछ नेताओं के साथ-साथ क्षेत्र के पूर्व सरपंचों के नाम भी सामने आए हैं। इन लोगों पर भी अवैध खनन में शामिल होने या इसे बढ़ावा देने का आरोप है। यह खुलासा राजस्थान की राजनीति में एक नए विवाद को जन्म दे सकता है, क्योंकि सभी प्रमुख दल इस गंभीर मुद्दे में फंसते नजर आ रहे हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि खनन माफिया और नेताओं की सांठगांठ के कारण क्षेत्र की प्राकृतिक संपदा का दोहन बेरोकटोक जारी है, जिससे पर्यावरण को भी भारी नुकसान हो रहा है।
सरकार का दावा और जमीनी हकीकत
भाजपा सरकार बार-बार दावा करती रही है कि वह अवैध खनन पर रोक लगाने के लिए कड़े कदम उठा रही है। हाल ही में जयपुर में हुई बैठकों में अधिकारियों को अवैध खनन पर नकेल कसने के निर्देश दिए गए थे। लेकिन नागौर का यह मामला सरकार के दावों की पोल खोलता है। जब सत्ताधारी दल का विधायक ही इस तरह के काले कारनामों में लिप्त हो, तो आम जनता में सरकार की मंशा पर सवाल उठना स्वाभाविक है
पर्यावरण और स्थानीय लोगों पर असर
अवैध खनन का यह खेल न केवल सरकारी राजस्व को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि पर्यावरण को भी भारी क्षति पहुंचा रहा है। अनियंत्रित खनन के कारण खींवसर और आसपास के क्षेत्रों में भूमि का कटाव, जल स्तर में कमी और वनस्पति का नुकसान जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं। स्थानीय निवासियों का कहना है कि खनन माफिया की गतिविधियों के कारण उनकी खेती योग्य जमीन बंजर हो रही है, और रात-रात भर चलने वाली भारी मशीनों के शोर से उनकी नींद हराम हो गई है।
नागौर में अवैध खनन का यह मामला राजस्थान की राजनीति और प्रशासनिक व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करता है। जब सत्ताधारी और विपक्षी दलों के नेता, स्थानीय अधिकारी और पूर्व सरपंच तक इस गैरकानूनी धंधे में लिप्त हों, तो आम जनता का भरोसा टूटना लाजमी है। यह देखना बाकी है कि सरकार इस मामले में कितनी सख्ती बरतती है और क्या दोषियों को सजा मिल पाएगी।