जानिए नरेश मीणा के जीवन के बारे,एक ही घर में है इतने नेता,कैसे हुई थी शुरुआत
नरेश मीणा, राजस्थान सियासत के बागी सितारे, ने थप्पड़ कांड से सुर्खियाँ बटोरीं और 11 जुलाई 2025 को जमानत मिलने के बाद समर्थकों में उत्साह जगा। छात्र नेता से निर्दलीय उम्मीदवार तक, उनकी जमीनी पकड़ और विवादास्पद छवि उन्हें एक आंदोलन का प्रतीक बनाती है।

रेगिस्तान की तपती धूप में जब हवाएँ चलती हैं, तो धूल के गुबार में कई कहानियाँ उभरती हैं। राजस्थान की सियासत भी कुछ ऐसी ही है यहाँ हर कोने से एक नई कहानी, एक नया किरदार उभरता है, जो चर्चाओं के तूफान में अपनी जगह बनाता है। इस रेतीले प्रदेश की राजनीति का इतिहास गवाह है कि जो शख्स सुर्खियों में रहा, वह सियासत का सितारा बना। और इन्हीं सितारों में चमकता है एक नाम नरेश मीणा.....
यह वह शख्सियत है, जिसने एक थप्पड़ से न केवल राजस्थान की सियासत को हिलाया, बल्कि अपने बागी तेवर और करिश्माई व्यक्तित्व से लाखों दिलों में जगह बनाई। 13 नवंबर 2024 को देवली-उनियारा उपचुनाव के दौरान मालपुरा के एसडीएम अमित चौधरी को थप्पड़ मारने की घटना ने नरेश मीणा को रातोंरात राष्ट्रीय सुर्खियों में ला दिया। यह एक ऐसा क्षण था, जिसने उन्हें जनता के नायक और सियासत के खलनायक, दोनों की छवि दी। आज यानि 11 जुलाई 2025 को राजस्थान हाई कोर्ट से जमानत मिलने के बाद उनके समर्थकों में उत्साह की लहर दौड़ पड़ी। सड़कों पर रैलियाँ, महापंचायतों का शोर, और सोशल मीडिया पर वायरल तस्वीरें नरेश मीणा अब केवल एक नेता नहीं, बल्कि एक आंदोलन बन चुके हैं। उनकी जिंदगी और सियासी सफर की कहानी अनसुने और रोमांचक किस्सों से भरी है, जो उन्हें राजस्थान की सियासत का एक अनूठा किरदार बनाती है। आइए, इस बागी सितारे की कहानी को और करीब से जानें।
नरेश मीणा की कहानी जयपुर के राजस्थान विश्वविद्यालय के उन गलियारों से शुरू होती है, जहाँ सियासत की चिंगारी पहली बार भड़की। 1990 के दशक के आखिरी सालों में, जब वह विश्वविद्यालय में छात्र नेता के रूप में उभरे, तो उनकी बेबाकी और जोश ने उन्हें भीड़ से अलग कर दिया। बतौर महासचिव,उन्होंने कई छात्र आंदोलनों का नेतृत्व किया चाहे वह फीस वृद्धि के खिलाफ प्रदर्शन हो या छात्रों के हक की लड़ाई। नरेश की आवाज में वह आग थी, जो सत्ता के गलियारों को चुनौती देती थी। यहीं से उन्होंने सियासत की उस कला को सीखा, जो उन्हें बाद में एक बागी नेता के रूप में स्थापित करेगी।विश्वविद्यालय की सियासत ने नरेश को न केवल नेतृत्व का अनुभव दिया, बल्कि युवाओं के बीच उनकी पकड़ को भी मजबूत किया। उनकी तेज-तर्रार शैली और बिना डरे अपनी बात रखने का अंदाज उन्हें छात्रों का चहेता बना गया। यह वह दौर था, जब नरेश ने समझ लिया कि सियासत में बने रहने के लिए केवल वोट नहीं, बल्कि जनता का भरोसा और उसका जोश चाहिए।
नरेश मीणा का जन्म बारां जिले के नयागांव में हुआ, जहाँ उनका परिवार स्थानीय सियासत में गहरी जड़ें रखता है। उनके पिता, कल्याण सिंह मीणा, 30 साल तक सरपंच रहे, जिसने ग्रामीण स्तर पर उनकी लोकप्रियता को एक मजबूत आधार दिया। उनकी माँ वर्तमान में सरपंच हैं, पत्नी सुनीता बारां में जिला परिषद सदस्य हैं, और छोटे भाई की पत्नी पंचायत समिति की सदस्य हैं। यह सियासी परिवार नरेश के लिए एक मजबूत ढाल रहा, लेकिन उनकी बागी छवि ने उन्हें इस विरासत से कहीं आगे ले जाया।नरेश का निजी जीवन भी उनकी सियासी छवि की तरह रोचक है। वह पेशे से पेट्रोल पंप संचालक हैं और हिंदुस्तान पेट्रोलियम से एक पंप लीज पर लिया हुआ है। उनकी संपत्ति 79 लाख रुपये की है, लेकिन 67 लाख रुपये से अधिक का कर्ज भी है, जो उनकी सामान्य पृष्ठभूमि को दर्शाता है। यह सादगी और जमीनी जुड़ाव ही उन्हें जनता के करीब लाता है।
नरेश मीणा ने अपने सियासी करियर की शुरुआत कांग्रेस के साथ की और जल्द ही सचिन पायलट के करीबी समर्थक के रूप में पहचाने गए। उनकी बेबाकी और युवाओं के बीच लोकप्रियता ने उन्हें पार्टी में एक उभरता सितारा बनाया। लेकिन 2023 में बारां जिले की छबड़ा विधानसभा सीट से टिकट न मिलने पर उनका बागी तेवर सामने आया। नरेश ने कांग्रेस को छोड़कर निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने का फैसला किया। इस चुनाव में उन्हें 43,921 वोट मिले, जो उनकी जमीनी ताकत का सबूत था, भले ही वह तीसरे स्थान पर रहे।2024 में देवली-उनियारा उपचुनाव में इतिहास फिर दोहराया गया। कांग्रेस से टिकट की उम्मीद टूटने पर नरेश ने फिर से बगावत की और निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरे। इस बार उन्होंने 59,478 वोट हासिल किए और दूसरे स्थान पर रहे। यह नतीजा न केवल उनकी लोकप्रियता को दर्शाता था, बल्कि यह भी दिखाता था कि मीणा समाज और युवा मतदाताओं में उनकी गहरी पैठ है। इस उपचुनाव में कांग्रेस को तीसरे स्थान पर धकेलकर नरेश ने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी।
13 नवंबर 2024 को देवली-उनियारा उपचुनाव के दौरान समरावता गाँव में हुई एक घटना ने नरेश मीणा को सियासत के केंद्र में ला दिया। समरावता के ग्रामीणों ने अपने गाँव को उनियारा उपखंड में शामिल करने की मांग को लेकर मतदान का बहिष्कार किया था। नरेश मीणा, जो ग्रामीणों के समर्थन में धरने पर थे, ने आरोप लगाया कि मालपुरा के एसडीएम अमित चौधरी जबरन फर्जी वोटिंग करवा रहे थे। गर्मागर्म बहस के दौरान नरेश ने एसडीएम को थप्पड़ जड़ दिया। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर आग की तरह फैल गया, और राजस्थान की सियासत में तूफान मच गया। नरेश के समर्थकों ने इसे जनता की आवाज के खिलाफ प्रशासन के दमन के प्रतीक के रूप में देखा। उनके लिए यह एक बगावत थी, जो सिस्टम के खिलाफ उनकी लड़ाई को दर्शाती थी। दूसरी ओर, विरोधियों ने इसे गुंडागर्दी और सियासी नौटंकी करार दिया। थप्पड़ कांड के बाद समरावता में हिंसा भड़क उठी। नरेश के समर्थकों ने पुलिस पर पथराव किया, वाहनों में आग लगा दी, और टोंक-सवाई माधोपुर हाईवे को जाम कर दिया। पुलिस ने लाठीचार्ज और हवाई फायरिंग का सहारा लिया, और नरेश को गिरफ्तार कर टोंक जेल भेज दिया गया।जेल में नरेश की एक तस्वीर, जिसमें वह फर्श पर सोते दिखे, सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। यह तस्वीर उनके समर्थकों के लिए एक भावनात्मक प्रतीक बन गई, जो उनकी सादगी और संघर्ष को दर्शाती थी। उनके समर्थकों ने सड़कों पर उतरकर उनकी रिहाई की मांग की, और मीणा समाज के साथ-साथ सर्व समाज ने रैलियाँ और महापंचायतें आयोजित कीं। यह उनके करिश्माई व्यक्तित्व और समुदाय में प्रभाव का प्रमाण था।
थप्पड़ कांड के बाद नरेश मीणा के खिलाफ कई मामले दर्ज किए गए, जिनमें हत्या के प्रयास (बीएनएस धारा 109(1)) जैसी गंभीर धाराएँ शामिल थीं। पुलिस ने उनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल की, और 8 महीनों तक वह जेल में रहे। लेकिन नरेश का बागी तेवर जेल की सलाखों के पीछे भी नहीं टूटा। उन्होंने दावा किया कि वह पुलिस कस्टडी से नहीं भागे थे, बल्कि उनके समर्थकों ने उन्हें छुड़ाया था। उन्होंने इस घटना की न्यायिक जाँच की मांग की और पुलिस पर ग्रामीणों के साथ बर्बरता का आरोप लगाया।11 जुलाई 2025 यानि आज राजस्थान हाई कोर्ट ने नरेश मीणा को कई मामलों में जमानत दे दी। 30 मई 2025 को उनकी दूसरी जमानत याचिका मंजूर हुई थी और 11 जुलाई 2025 को आगजनी के मामले में भी उन्हें राहत मिली। कोर्ट ने माना कि जांच पूरी हो चुकी है और लंबे ट्रायल के दौरान उन्हें जेल में रखना उचित नहीं होगा। जमानत के बाद उनके समर्थकों में उत्साह का माहौल छा गया। मीणा समाज और अन्य समुदायों ने उनके समर्थन में रैलियाँ निकालीं, जिनमें कांग्रेस नेता प्रह्लाद गुंजल और किरोड़ी लाल मीणा जैसे दिग्गजों का समर्थन भी देखने को मिला।
नरेश मीणा का व्यक्तित्व दो ध्रुवों में बँटा हुआ है। उनके समर्थक उन्हें "जनता की आवाज" मानते हैं—एक ऐसा नेता, जो सत्ता और प्रशासन के खिलाफ बगावत करने से नहीं डरता। उनकी बेबाकी और जमीनी जुड़ाव ने उन्हें मीणा समाज और युवाओं के बीच एक नायक बनाया है। दूसरी ओर, उनके आलोचक उन्हें उपद्रवी और सियासी नौटंकीबाज कहते हैं। थप्पड़ कांड ने उनकी सियासी पहचान को और मजबूत किया, लेकिन यह सवाल भी उठता है कि क्या यह विवाद उन्हें लंबे समय तक सियासत में टिकाए रखेगा?कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नरेश मीणा ने थप्पड़ कांड का इस्तेमाल अपनी सियासी छवि को मजबूत करने के लिए किया। उनकी तुलना किरोड़ी लाल मीणा, सचिन पायलट, और हनुमान बेनीवाल जैसे नेताओं से की जाती है, जो अपनी बेबाकी और जनता के बीच पकड़ के लिए जाने जाते हैं। नरेश के समर्थकों का दावा है कि वह न केवल एक नेता हैं, बल्कि एक आंदोलन हैं, जो गरीबों और वंचितों के हक के लिए लड़ता है। सोशल मीडिया पर उनके समर्थक उन्हें "चमकता सितारा" कहते हैं, और उनके बेटे अनिरुद्ध ने यहाँ तक आरोप लगाया कि सरकार उनके पिता का एनकाउंटर करवाने की साजिश रच रही थी।
नरेश मीणा की कहानी राजस्थान की सियासत में एक नया अध्याय लिख रही है। वह एक ऐसे नेता हैं, जिन्होंने विवादों को अपनी ताकत बनाया। थप्पड़ कांड ने उन्हें सुर्खियों में ला दिया, लेकिन उनकी जमीनी पकड़ और समर्थकों का जोश उन्हें एक बड़े नेता के रूप में स्थापित कर सकता है। जेल से रिहाई के बाद उनकी अगली रणनीति क्या होगी, यह देखना बाकी है। क्या वह अपनी बागी छवि को सियासी जीत में बदल पाएँगे, या विवादों की आँधी में कहीं खो जाएँगे? नरेश मीणा का नाम अब केवल एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि एक विचार का प्रतीक बन चुका है—बगावत, जोश, और जनता के हक की लड़ाई। राजस्थान की सियासत में यह बवंडर अभी और कितने तूफान लाएगा, यह वक्त ही बताएगा। लेकिन एक बात तय है—नरेश मीणा की कहानी अभी खत्म नहीं हुई है; यह तो बस शुरुआत है।