कुरजां पक्षियों ने जैसलमेर में दी दस्तक: सर्दियों के मेहमान लाए प्रकृति प्रेमियों के चेहरों पर रौनक
कुरजां पक्षी, जो मंगोलिया और साइबेरिया से जैसलमेर के देगराय ओरण में सर्दियों के लिए आते हैं, ने दस्तक दे दी है, जिससे स्थानीय पक्षी प्रेमियों में उत्साह की लहर है। ये खूबसूरत प्रवासी पक्षी छह महीने यहां रहकर प्रकृति को जीवंत करते हैं।

राजस्थान के जैसलमेर जिले में सर्दियों के आगमन के साथ ही प्रकृति ने एक बार फिर अपने रंग बिखेरे हैं। मंगोलिया, चीन और कजाकिस्तान से हर साल शीतकालीन प्रवास के लिए आने वाले खूबसूरत कुरजां पक्षियों ने इस बार भी देगराय ओरण में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। इन प्रवासी मेहमानों की पहली झलक ने स्थानीय पक्षी प्रेमियों के चेहरों पर खुशी की लहर दौड़ा दी है।
सुबह की गूंज, आकाश में उड़ान
स्थानीय वन्यजीव प्रेमी ने बताया कि सुबह-सुबह जब कुरजां की मधुर आवाज गूंजी, तो वे छत पर पहुंचे। आकाश में करीब 150-200 पक्षियों का समूह ऊंचाई पर उड़ता नजर आया। "इन पक्षियों का आना हमारे लिए उत्सव जैसा है। ये हर साल सितंबर के पहले सप्ताह में आते हैं और मार्च तक हमारे साथ रहकर प्रकृति को और जीवंत बना देते हैं,"
कुरजां का यह झुंड दिनभर देगराय ओरण के आसपास मंडराता रहा। लोग इन खूबसूरत पक्षियों की एक झलक पाने के लिए उत्सुक नजर आए। कुरजां शुरुआती कुछ दिन जमीन पर नहीं उतरते। वे सुरक्षा की दृष्टि से आकाश में ही उड़ते हुए इलाके की पूरी जांच-पड़ताल करते हैं। इसके बाद ही वे तालाबों और खुले मैदानों में उतरकर अपनी दिनचर्या शुरू करते हैं।
प्रकृति का अनमोल तोहफा: कुरजां का जीवन और भोजन
कुरजां पक्षी, जिनका वजन लगभग 2 से 2.5 किलोग्राम होता है, पानी के आसपास के खुले मैदानों और समतल जमीन पर अपना अस्थायी ठिकाना बनाते हैं। इनका मुख्य भोजन मोतिया घास और पानी के आसपास पाए जाने वाले कीड़े-मकोड़े हैं। अच्छी बारिश के बाद खेतों में उगने वाली मतीरे की फसल भी इनके लिए स्वादिष्ट भोजन है। ये पक्षी लाठी, देगराय ओरण, खेतोलाई, भादरिया चाचा, धोलिया, डेलासर और लोहटा गांव के तालाबों और खड़ीनों के आसपास देखे जा सकते हैं।
लंबी उड़ान, अनोखा सफर
कुरजां पक्षी साइबेरिया, ब्लैक समुद्र और मंगोलिया जैसे दूरदराज के क्षेत्रों से हिमालय की ऊंचाइयों को पार करते हुए भारत पहुंचते हैं। ये पक्षी 5 से 8 किलोमीटर की ऊंचाई पर उड़ान भरते हैं, जो उनकी ताकत और सहनशक्ति का प्रतीक है। राजस्थान में करीब 50 स्थानों पर कुरजां का आगमन होता है, लेकिन जैसलमेर के लाठी और देगराय क्षेत्र में इनकी संख्या सबसे अधिक होती है।
स्थानीय संस्कृति में कुरजां की गूंज
कुरजां का जैसलमेर के परिवेश के साथ गहरा नाता है। ये पक्षी यहां की संस्कृति में इस कदर रच-बस गए हैं कि इनके नाम पर कई लोकगीत रचे गए हैं। सितंबर में शुरू होने वाला इनका छह महीने का प्रवास क्षेत्र को पर्यटक स्थल का रूप दे देता है। तालाबों के किनारे इनका मधुर कलरव दूर-दूर तक सुनाई देता है, जो प्रकृति प्रेमियों के लिए किसी संगीत से कम नहीं।
पक्षी प्रेमियों की बढ़ी चहल-पहल
कुरजां के आगमन के साथ ही जैसलमेर में पक्षी प्रेमियों की सक्रियता बढ़ गई है। जैसे-जैसे तापमान में गिरावट आएगी, इन पक्षियों की संख्या में और इजाफा होगा। ये पक्षी रात में तालाबों के पास विश्राम करते हैं और दिन में आसपास के मैदानों में भोजन की तलाश करते हैं। स्थानीय लोग और पर्यटक इनके रंग-बिरंगे झुंडों को देखने के लिए उत्साहित हैं।
कुरजां का आगमन न केवल प्रकृति की सुंदरता को दर्शाता है, बल्कि हमें पर्यावरण संरक्षण का महत्व भी याद दिलाता है। इन प्रवासी पक्षियों का स्वागत करते हुए जैसलमेर के लोग एक बार फिर प्रकृति के साथ अपने अटूट रिश्ते को मजबूत कर रहे हैं।