भारत का असली महानायक , सुचित्रा सेन संग 29 हिट फिल्में, एक घटना ने डराया तो छोड़ा कोलकाता

उत्तम कुमार, बंगाली सिनेमा के पहले सुपरस्टार और महानायक, जिन्होंने संघर्षों से शुरूआत कर सुपरहिट फिल्मों और सत्यजीत रे की नायक जैसी कालजयी कृतियों से अमर पहचान बनाई। उनकी लोकप्रियता का सम्मान कोलकाता के 'महानायक उत्तम कुमार' मेट्रो स्टेशन के रूप में आज भी जीवित है।

Sep 2, 2025 - 15:52
भारत का असली महानायक , सुचित्रा सेन संग 29 हिट फिल्में, एक घटना ने डराया तो छोड़ा कोलकाता

3 सितंबर को बंगाली सिनेमा के पहले सुपरस्टार और महानायक उत्तम कुमार की जयंती है। बॉलीवुड में जहां अमिताभ बच्चन को 'सदी का महानायक' कहा जाता है, वहीं उत्तम कुमार ने बंगाली सिनेमा में वह मुकाम हासिल किया, जिसने उन्हें इस उपाधि का पहला हकदार बनाया। उनकी लोकप्रियता इतनी थी कि कोलकाता के टॉलीगंज मेट्रो स्टेशन का नाम उनके सम्मान में 'महानायक उत्तम कुमार' रखा गया। आइए, उनके जीवन, संघर्ष, और सिनेमा में अतुलनीय योगदान की कहानी को करीब से जानते हैं।

साधारण शुरुआत से सुपरस्टार तक का सफर

1926 में कोलकाता के एक साधारण बंगाली परिवार में जन्मे उत्तम कुमार का असली नाम अरुण कुमार चटोपाध्याय था। बचपन से ही कला और अभिनय के प्रति उनका रुझान था। घर का माहौल ऐसा था कि थिएटर और कला उनके जीवन का हिस्सा बन गए। लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति ने उन्हें क्लर्क की नौकरी करने को मजबूर किया। दिन में ऑफिस और शाम को थिएटर—उत्तम कुमार का यह जुनून ही था, जिसने उन्हें सिनेमा की दुनिया में कदम रखने के लिए प्रेरित किया।

हालांकि, उनकी शुरुआत आसान नहीं थी। उत्तम ने एक के बाद एक सात फ्लॉप फिल्में दीं, जिसके बाद उन्हें 'फ्लॉप जनरल मास्टर' तक कहा जाने लगा। लेकिन हार मानना उनकी फितरत में नहीं था। 1952 में आई बंगाली फिल्म बासु परिवार ने उनके करियर को पहली बार सफलता का स्वाद चखाया। इसके बाद 1953 में Sharey Chuattor ने उन्हें रातोंरात स्टार बना दिया। इस फिल्म में उनकी जोड़ी अभिनेत्री सुचित्रा सेन के साथ बनी, जिन्हें उत्तम अपनी 'लकी चार्म' मानते थे।

सुचित्रा सेन: उत्तम की किस्मत की चाबी

उत्तम कुमार ने एक इंटरव्यू में कहा था, "अगर सुचित्रा सेन से मेरी मुलाकात न हुई होती, तो शायद मैं महानायक न बन पाता।" इस जोड़ी ने 30 फिल्मों में साथ काम किया, जिनमें से 29 सुपरहिट रहीं। उनकी ऑन-स्क्रीन केमिस्ट्री ने दर्शकों को दीवाना बना दिया। सुचित्रा के साथ उनकी फिल्में न सिर्फ कमर्शियल सक्सेस थीं, बल्कि कला और भावनाओं का भी बेहतरीन संगम थीं।

हिंदी और बंगाली सिनेमा में अमिट छाप

उत्तम कुमार ने न सिर्फ बंगाली सिनेमा में अपनी धाक जमाई, बल्कि हिंदी सिनेमा में भी उनका योगदान अविस्मरणीय रहा। 1966 में सत्यजीत रे की फिल्म नायक ने उनके करियर को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। इस फिल्म का एक सीन, जहां उत्तम का किरदार अरिंदम एक सुपरस्टार के तौर पर अपनी छवि को राजनीति से दूर रखना चाहता है, उनकी वास्तविक जिंदगी से भी मेल खाता है। उत्तम हमेशा विवादों और राजनीति से खुद को अलग रखना चाहते थे।

निजी जिंदगी और राजनीति से दूरी

उत्तम कुमार की निजी जिंदगी भी उतनी ही रोचक थी। उन्होंने दो शादियां कीं—पहली गौरी चटर्जी से, जिनसे उनका बेटा गौतम चटर्जी हुआ, और दूसरी मशहूर बंगाली अभिनेत्री सुप्रिया देवी से। लेकिन उनकी जिंदगी का एक ऐसा पहलू भी था, जिसने उन्हें सुर्खियों में ला दिया। 1971 में कवि और नक्सली नेता सरोज दत्ता की हत्या की घटना में उत्तम चश्मदीद बताए गए। इस घटना ने उन्हें इतना प्रभावित किया कि उन्होंने लगभग दो महीने के लिए कोलकाता छोड़ दिया। नक्सली कार्यकर्ताओं ने उन्हें 'पलायनवादी' कहकर ताने मारे, लेकिन उत्तम ने हमेशा खुद को राजनीति से दूर रखा।

कहा जाता है कि कई राजनीतिक दल उनकी लोकप्रियता का फायदा उठाना चाहते थे, लेकिन उत्तम ने कभी किसी पार्टी का खुलकर समर्थन नहीं किया। उनकी यही सादगी और सिद्धांतों ने उन्हें और भी खास बना दिया।

महानायक की विरासत

उत्तम कुमार सिर्फ एक अभिनेता नहीं थे; वे एक निर्माता, निर्देशक, और बंगाली सिनेमा के प्रतीक थे। उनकी फिल्मों ने न सिर्फ मनोरंजन किया, बल्कि समाज को आईना भी दिखाया। कोलकाता के मेट्रो स्टेशन का उनके नाम पर होना उनके योगदान का सबसे बड़ा सम्मान है।

आज उनकी जयंती पर, हम उस महानायक को याद करते हैं, जिसने अपने जुनून, मेहनत, और कला से बंगाली और हिंदी सिनेमा को नई पहचान दी। उत्तम कुमार की कहानी हर उस इंसान के लिए प्रेरणा है, जो सपनों के पीछे भागने की हिम्मत रखता है।

Yashaswani Journalist at The Khatak .