खाटूश्यामजी में जल झुलनी एकादशी पर उमड़ा आस्था का सैलाब,लाखों भक्त बाबा के दर्शन करने पहुंचे.

जल झुलनी एकादशी पर खाटूश्यामजी धाम में लाखों भक्तों का सैलाब उमड़ा। बाबा श्याम और गोपीनाथ भगवान के दर्शन के लिए भक्तों की लंबी कतारें लगीं। रींगस से दंडवत यात्रा और चांदी की पालकी में गोपीनाथ की शोभा यात्रा ने भक्ति का अद्भुत माहौल बनाया। भगवान विष्णु की कृपा से यह पर्व पापों का नाश और मोक्ष प्रदान करता है।

Sep 3, 2025 - 15:37
खाटूश्यामजी में जल झुलनी एकादशी पर उमड़ा आस्था का सैलाब,लाखों भक्त बाबा के दर्शन करने पहुंचे.

सीकर, राजस्थान: जल झुलनी एकादशी के पावन अवसर पर खाटूश्यामजी धाम में भक्ति, श्रद्धा और विश्वास का अनुपम संगम देखने को मिला। देश के कोने-कोने से लाखों श्याम भक्त बाबा श्याम के दर्शन के लिए खाटू नगरी पहुंचे, जिससे यह तीर्थ स्थल भक्तों की भीड़ से खचाखच भर गया। मंदिर परिसर से लेकर आसपास की गलियों तक पैर रखने की जगह नहीं बची। होटल, गेस्ट हाउस और धर्मशालाएं भक्तों से भरी हुई हैं, और कई भक्त रींगस से दंडवत यात्रा करते हुए बाबा के दरबार तक पहुंचे। इस पवित्र दिन पर बाबा श्याम के साथ-साथ गोपीनाथ भगवान की चांदी की पालकी में निकलने वाली शोभा यात्रा ने भक्तों के मन को मोह लिया।

जल झुलनी एकादशी का धार्मिक महत्व

हिंदू धर्म में जल झुलनी एकादशी का विशेष महत्व है, क्योंकि इसका संबंध भगवान श्रीकृष्ण के जन्म से जोड़ा जाता है। मान्यताओं के अनुसार, भगवान कृष्ण के जन्म के बाद इस दिन उनकी प्रतिमा को गाजे-बाजे के साथ जल विहार के लिए ले जाया जाता है। इस अवसर पर खाटूश्यामजी मंदिर में बाबा श्याम को नई और आकर्षक पोशाक धारण कराकर उनका भव्य श्रृंगार किया जाता है। कई भक्त सालों तक अपनी बारी का इंतजार करते हैं ताकि वे अपने आराध्य को पोशाक भेंट कर सकें। यह एकादशी भगवान विष्णु की कृपा से समस्त पापों का नाश करने और मोक्ष प्रदान करने वाली मानी जाती है। इसे परिवर्तिनी, पद्मा और वामन एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु अपनी योग निद्रा में करवट लेते हैं। 

महिलाओं के लिए यह एकादशी विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। इस दिन व्रत रखने वाली महिलाएं देर शाम भगवान के जल विहार के दर्शन के बाद ही अपना व्रत खोलती हैं। इस पर्व को लेकर भक्तों में गहरी आस्था है, और मान्यता है कि इस दिन बाबा श्याम की पूजा-अर्चना से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

गोपीनाथ भगवान की चांदी की पालकी में शोभा यात्रा

खाटूश्यामजी धाम में इस बार जल झुलनी एकादशी का उत्सव और भी खास रहा, क्योंकि भक्तों को बाबा श्याम के साथ-साथ गोपीनाथ भगवान के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। खाटू श्याम मंदिर परिसर में स्थित गोपीनाथ मंदिर से बुधवार को गोपीनाथ भगवान चांदी की पालकी में सवार होकर जल विहार के लिए निकले। इस भव्य शोभा यात्रा में लाखों भक्तों ने हिस्सा लिया। गाजे-बाजे, भक्ति भजनों और जयकारों के बीच यह शोभा यात्रा खाटू नगरी की गलियों में निकली, जिसने सभी के मन को आनंद और भक्ति से सराबोर कर दिया। 

दंडवत यात्रा और भक्तों की श्रद्धा

जल झुलनी एकादशी पर खाटूश्यामजी धाम में भक्तों की श्रद्धा चरम पर थी। कई भक्त रींगस से खाटू नगरी तक दंडवत प्रणाम करते हुए बाबा श्याम के दरबार पहुंचे। यह दंडवत यात्रा भक्तों की गहरी आस्था और समर्पण का प्रतीक है। मंदिर के बाहर लंबी-लंबी कतारें लगीं, और भक्त घंटों इंतजार कर बाबा के दर्शन को आतुर दिखे। मंदिर परिसर को विदेशी फूलों से सजाया गया, जिनकी खुशबू और रंग-बिरंगी छटा ने भक्ति के माहौल को और भी मनमोहक बना दिया। 

प्रशासन और मंदिर कमेटी की व्यवस्थाएं

लाखों भक्तों की भीड़ को देखते हुए प्रशासन और श्री श्याम मंदिर कमेटी ने सुरक्षा और दर्शन व्यवस्था के पुख्ता इंतजाम किए। ठंडे पानी, छाया, पंखों और कारपेट की व्यवस्था की गई ताकि भक्तों को किसी तरह की असुविधा न हो। मंदिर के आसपास यातायात और पार्किंग की व्यवस्था पर विशेष ध्यान दिया गया। मंदिर कमेटी ने भक्तों से व्यवस्था में सहयोग करने की अपील की, ताकि यह पवित्र आयोजन शांतिपूर्ण और सुचारू रूप से संपन्न हो सके। 

खाटूश्यामजी: हारे का सहारा

खाटूश्यामजी को भगवान श्रीकृष्ण का कलयुगी अवतार माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, बर्बरीक, जो भीम के पौत्र थे, ने महाभारत युद्ध में भाग लेने की इच्छा जताई थी। भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी शक्ति को देखते हुए उनसे उनका शीश दान में मांगा, जिसे बर्बरीक ने सहर्ष दे दिया। प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि कलियुग में वे श्याम के नाम से पूजे जाएंगे। आज खाटूश्यामजी को "हारे का सहारा" और "शीश का दानी" कहा जाता है, और उनकी कृपा से भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है। 

जल झुलनी एकादशी के अवसर पर खाटूश्यामजी धाम में उमड़ी भक्तों की भीड़ और गोपीनाथ भगवान की चांदी की पालकी में निकली शोभा यात्रा ने इस पवित्र स्थल को आस्था का केंद्र बना दिया। बाबा श्याम के दर्शन और जल विहार की इस परंपरा ने भक्तों के मन में भक्ति और श्रद्धा का संचार किया। यह पर्व न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि भक्तों के बीच एकता और विश्वास का प्रतीक भी है।