ड्रोन से कृत्रिम बारिश का पहला प्रयोग असफल, दो महीने तक चलेगा पायलट प्रोजेक्ट
रामगढ़ बांध में ड्रोन से कृत्रिम बारिश का पहला प्रयास तकनीकी खामियों और भीड़ के कारण असफल रहा। अगले दो महीनों में 60 और प्रयोग किए जाएंगे।

जयपुर के रामगढ़ बांध इलाके में मंगलवार (12 अगस्त 2025) को ड्रोन के जरिए कृत्रिम बारिश करवाने का पहला प्रयास विफल रहा। राजस्थान सरकार और बेंगलुरु-अमेरिका आधारित कंपनी जेनएक्स एआई के सहयोग से इस पायलट प्रोजेक्ट की पूरी तैयारी की गई थी। इस अनोखे प्रयोग को देखने के लिए स्थानीय लोग बड़ी संख्या में पहुंचे, लेकिन तकनीकी खामियों और भीड़ के कारण यह प्रयास सफल नहीं हो सका।
प्रयोग में क्या हुआ,क्यों खास है यह प्रयोग?
दोपहर में राजस्थान के कृषि मंत्री डॉ. किरोड़ीलाल मीणा भी मौके पर मौजूद थे। पहले प्रयास में ड्रोन के पंखे चलाए गए, लेकिन ड्रोन जमीन से उड़ा ही नहीं। दूसरे प्रयास में ड्रोन कुछ ऊंचाई तक गया, लेकिन जल्द ही बांध के नीचे झाड़ियों में अटक गया। जेनएक्स एआई के फाउंडर और एमडी राकेश अग्रवाल ने बताया कि भीड़ के कारण जीपीएस सिग्नल में व्यवधान आया, जिसके चलते ड्रोन पर्याप्त ऊंचाई तक नहीं पहुंच पाया।
इस दौरान नीचे मौजूद लोगों ने ड्रोन का वीडियो बनाना शुरू कर दिया, जिससे स्थिति और जटिल हो गई। भीड़ और पुलिस के बीच हल्की झड़प भी हुई, लेकिन बाद में समझा-बुझाकर मामला शांत कर लिया गया।
यह भारत में ड्रोन के जरिए प्रिसीजन-बेस्ड तकनीक से कृत्रिम बारिश करवाने का पहला प्रयास है। अब तक देश में कृत्रिम बारिश के लिए बड़े विमानों का उपयोग होता रहा है, जो बड़े क्षेत्रों को कवर करते हैं। लेकिन जयपुर का यह प्रयोग छोटे और सीमित दायरे में बारिश करवाने की तकनीक पर आधारित है। जेनएक्स एआई और एक्सेल-1 कंपनी की इस तकनीक में बादलों पर केमिकल छिड़कने से लेकर सभी प्रक्रियाएं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) द्वारा नियंत्रित होती हैं।
राकेश अग्रवाल ने बताया, "हमारी तकनीक पिन-पॉइंट बारिश करवाने में सक्षम है। मौसम विभाग के डेटा और बादलों की नमी का विश्लेषण कर हम तय इलाके में बारिश करवाने की कोशिश कर रहे हैं। यह हमारी पेटेंट तकनीक है, जो कहीं और उपलब्ध नहीं है।"
दो महीने तक चलेगा पायलट प्रोजेक्ट
यह प्रयोग अगले दो महीनों तक चलेगा, जिसमें कुल 60 टेस्ट ड्राइव किए जाएंगे। जेनएक्स एआई और एक्सेल-1 कंपनी अपने खर्च पर यह प्रोजेक्ट चला रही हैं और इसके डेटा को राजस्थान सरकार के साथ साझा करेंगी। राकेश अग्रवाल ने कहा, "अगले दो-तीन दिन में हम ड्रोन को और ऊंचाई पर उड़ाने की कोशिश करेंगे। एक सप्ताह के भीतर हमें अधिक ऊंचाई की अनुमति भी मिल जाएगी।"
एक्सेल-1 के चीफ क्लाइमेट इंजीनियर ऑफिसर डॉ. एन साई भास्कर रेड्डी ने बताया कि मंगलवार को ड्रोन को केवल 400 फीट की ऊंचाई तक उड़ाने की योजना थी, लेकिन बादल डेढ़ किलोमीटर की ऊंचाई पर थे। यह एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि क्लाउड सीडिंग के लिए ड्रोन को बादलों तक पहुंचना जरूरी है। सीनियर साइंटिस्ट कल्याण चक्रवर्ती ने कहा, "हम पिछले 20 दिनों से जयपुर के मौसम का अध्ययन कर रहे हैं। यह प्रयोग अमेरिका में पहले हो चुका है, और अब हम इसे भारत में लागू कर रहे हैं।"
क्या होगा अगर यह प्रयोग सफल रहा?
राजस्थान में मानसून के बावजूद कई इलाके सूखे रह जाते हैं, जिससे फसलों को नुकसान होता है। अगर यह प्रयोग सफल होता है, तो सीमित इलाकों में कृत्रिम बारिश करवाकर फसलों को बचाया जा सकेगा। यह तकनीक खेती और पानी की कमी से जूझ रहे क्षेत्रों के लिए वरदान साबित हो सकती है।
लोगों का उत्साह और उम्मीदें,मंजूरी और सहयोग
रामगढ़ बांध पर प्रयोग देखने के लिए आसपास के गांवों से लोग तिरंगे झंडे लेकर पहुंचे। स्थानीय लोगों ने कहा, "हम भगवान से प्रार्थना करते हैं कि यह प्रयोग सफल हो और रामगढ़ बांध भर जाए। इससे हमारे गांवों का विकास होगा और पानी की समस्या हल होगी।"
इस प्रयोग के लिए केंद्र और राज्य सरकार के सभी विभागों से मंजूरी ली जा चुकी है। कृषि विभाग, मौसम विभाग, जिला प्रशासन और डायरेक्टरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन ने जुलाई में ही इसकी अनुमति दे दी थी। वैज्ञानिकों की एक टीम कई दिनों से जयपुर में इसकी तैयारियों में जुटी हुई थी।
कंपनी ने बताया कि मौसम की स्थिति को ध्यान में रखते हुए महीने में 4 से 5 बार ड्रोन उड़ाने की योजना है। दो महीने बाद इस प्रयोग का पूरा डेटा और रिपोर्ट सरकार के साथ साझा की जाएगी। अगर यह तकनीक सफल होती है, तो भविष्य में राजस्थान के बड़े क्षेत्रों में इसका उपयोग किया जा सकता है।