इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप, संसद में शुरू हुई हटाने की प्रक्रिया महाभियोग प्रस्ताव को लोकसभा स्पीकर की मंजूरी

लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ कैश कांड में महाभियोग प्रस्ताव को मंजूरी दी, तीन सदस्यीय जांच समिति गठित।

Aug 12, 2025 - 12:54
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप, संसद में शुरू हुई हटाने की प्रक्रिया महाभियोग प्रस्ताव को लोकसभा स्पीकर की मंजूरी

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ कैश कांड मामले में बड़ा कदम उठाते हुए लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने मंगलवार को उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी है। इस प्रस्ताव को 146 सांसदों का समर्थन प्राप्त है, जिसमें केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद और विपक्ष के नेता जैसे प्रमुख नाम शामिल हैं। इस मामले की गंभीरता को देखते हुए स्पीकर ने तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन किया है, जो जस्टिस वर्मा के खिलाफ लगे आरोपों की जांच करेगी।

क्या है कैश कांड मामला?

यह विवाद 14 मार्च 2025 की रात को शुरू हुआ, जब जस्टिस यशवंत वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी आवास में आग लगी। आग बुझाने के दौरान फायर ब्रिगेड और पुलिस को उनके स्टोररूम में भारी मात्रा में जले हुए नोट मिले। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, यह नकदी इतनी अधिक थी कि यह लगभग डेढ़ फीट ऊंची थी। उस समय जस्टिस वर्मा दिल्ली हाईकोर्ट में जज थे और घटना के दौरान वह अपने आवास पर मौजूद नहीं थे।

इस घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना ने मामले की गंभीरता को देखते हुए तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन किया। इस समिति में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस जी.एस. संधावलिया और कर्नाटक हाईकोर्ट की जज अनु शिवरामन शामिल थीं। समिति ने अपनी जांच में पाया कि स्टोररूम, जहां जले हुए नोट मिले, पर जस्टिस वर्मा और उनके परिवार का नियंत्रण था। समिति ने इसे कदाचार का गंभीर मामला मानते हुए जस्टिस वर्मा को पद से हटाने की सिफारिश की।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला और महाभियोग की शुरुआत

जस्टिस वर्मा ने जांच समिति की रिपोर्ट और CJI की सिफारिश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, लेकिन 7 अगस्त 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी। जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ए.जी. मसीह की पीठ ने कहा कि जस्टिस वर्मा का आचरण विश्वास पैदा नहीं करता और जांच समिति ने निर्धारित प्रक्रियाओं का पालन किया है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि तत्कालीन CJI द्वारा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजा गया पत्र संवैधानिक दायरे में था।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद संसद में महाभियोग की प्रक्रिया तेज हो गई। 21 जुलाई 2025 को शुरू हुए संसद के मानसून सत्र के पहले दिन 152 लोकसभा सांसदों और 54 राज्यसभा सांसदों ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का समर्थन किया। संविधान के अनुच्छेद 124, 217 और 218 के तहत यह प्रस्ताव भाजपा, कांग्रेस, टीडीपी, जेडीयू और सीपीएम जैसे विभिन्न दलों के सांसदों के समर्थन से आगे बढ़ा।

लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने मंगलवार को इस प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए कहा, "मुझे 146 सांसदों के हस्ताक्षर के साथ प्रस्ताव प्राप्त हुआ है। हमने न्यायाधीश जांच अधिनियम और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का अध्ययन किया है। इस मामले में भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं, जो न्यायपालिका में विश्वास की नींव को कमजोर करते हैं। इसलिए, मैंने इस प्रस्ताव को स्वीकृति दी है।"

जांच समिति का गठन,जस्टिस वर्मा का पक्ष

स्पीकर ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ लगे आरोपों की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित की है। इस समिति में शामिल हैं:

  • जस्टिस अरविंद कुमार: सुप्रीम कोर्ट के जज

  • जस्टिस मनिंदर मोहन श्रीवास्तव: मद्रास हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस

  • बी.वी. आचार्य: कर्नाटक हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता

यह समिति जस्टिस वर्मा के खिलाफ लगे भ्रष्टाचार और कदाचार के आरोपों की गहन जांच करेगी। जांच पूरी होने और समिति की रिपोर्ट आने तक यह महाभियोग प्रस्ताव लंबित रहेगा।

जस्टिस यशवंत वर्मा ने अपने खिलाफ लगे सभी आरोपों से इनकार किया है। सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका में उन्होंने दावा किया था कि जांच समिति ने उन्हें अपना पक्ष रखने का उचित अवसर नहीं दिया। उन्होंने यह भी कहा कि स्टोररूम पर उनका कोई नियंत्रण नहीं था और नकदी का स्रोत स्पष्ट करने की जिम्मेदारी उनकी नहीं थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने उनकी दलीलों को खारिज करते हुए जांच समिति की प्रक्रिया को वैध ठहराया।

कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला न्यायपालिका की विश्वसनीयता और पारदर्शिता के लिए महत्वपूर्ण है। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, जो जस्टिस वर्मा का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, ने तर्क दिया था कि जांच समिति का दायरा केवल सलाह देने तक सीमित है और उसे जज को हटाने की सिफारिश करने का अधिकार नहीं है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को खारिज करते हुए CJI के अधिकारों का समर्थन किया।

इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल तिवारी ने भी इस मामले में सख्त रुख अपनाया है। उन्होंने कहा, "जस्टिस वर्मा को किसी भी हाईकोर्ट में नहीं भेजा जाना चाहिए। कानूनी प्रक्रिया का पालन होना चाहिए, वरना जनता का न्यायपालिका पर विश्वास टूट जाएगा।"

Yashaswani Journalist at The Khatak .