सेना के 15 ऑफिसर्स और सरकारी अधिकारियों के संपर्क में था पाकिस्तानी जासूस,CRPF के ASI मामले में बड़ा खुलासा I

सीआरपीएफ के सहायक उप-निरीक्षक (एएसआई) मोती राम जाट को एनआईए ने मई 2025 में दिल्ली से गिरफ्तार किया, जो पाकिस्तानी एजेंट सलीम अहमद को गोपनीय जानकारी साझा कर रहा था। जांच में खुलासा हुआ कि वह 15 अन्य भारतीय सेना, अर्धसैनिक बलों और सरकारी कर्मचारियों के नंबरों से जुड़ा था। मोती राम ने हनीट्रैप के जरिए फंसकर सुरक्षाकर्मियों की तैनाती और मल्टी-एजेंसी सेंटर की रिपोर्ट्स लीक कीं। उसे 12,000 रुपये की रकम विभिन्न राज्यों के खातों से मिलती थी। कोलकाता से खरीदा गया सिम और शहजाद नामक तस्कर इस जासूसी नेटवर्क का हिस्सा थे। यह मामला राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा दर्शाता है।

Aug 28, 2025 - 14:30
सेना के 15 ऑफिसर्स और सरकारी अधिकारियों के संपर्क में था पाकिस्तानी जासूस,CRPF के ASI मामले में बड़ा खुलासा I

नई दिल्ली: राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने मई 2025 में एक सनसनीखेज मामले में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) के सहायक उप-निरीक्षक (ASI) मोती राम जाट को दिल्ली से गिरफ्तार किया। मोती राम पर पाकिस्तानी खुफिया एजेंटों को गोपनीय जानकारी साझा करने का गंभीर आरोप है। जांच में अब चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि मोती राम जिस पाकिस्तानी एजेंट के संपर्क में था, वह न केवल उससे, बल्कि भारतीय सेना, अर्धसैनिक बलों और केंद्र सरकार के 15 अन्य कर्मचारियों के फोन नंबरों के साथ भी संवाद में था। इस मामले ने राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।

मोती राम जाट की गिरफ्तारी और पृष्ठभूमि

मोती राम जाट, जो राजस्थान का निवासी है, जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में CRPF की 116वीं बटालियन में तैनात था। 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में हुए आतंकी हमले, जिसमें 26 नागरिकों की मौत हुई थी, से ठीक पांच दिन पहले उसका तबादला दिल्ली कर दिया गया था। NIA ने 27 मई 2025 को उसे दिल्ली से गिरफ्तार किया और विशेष अदालत ने उसे 6 जून तक NIA की हिरासत में भेज दिया। गिरफ्तारी के बाद CRPF ने 21 मई 2025 को मोती राम को सेवा से बर्खास्त कर दिया।

पाकिस्तानी हैंडलर सलीम अहमद और 15 अन्य नंबर

जांच में पता चला कि मोती राम एक पाकिस्तानी खुफिया एजेंट, जिसका कोड नाम सलीम अहमद बताया गया, के संपर्क में था। तकनीकी निगरानी के जरिए खुफिया एजेंसियों ने पाया कि सलीम अहमद मोती राम के अलावा 15 अन्य भारतीय फोन नंबरों से भी बातचीत कर रहा था। कॉल डिटेल रिकॉर्ड (CDR) और इंटरनेट प्रोटोकॉल डिटेल रिकॉर्ड (IPDR) की जांच से यह सामने आया कि इनमें से चार नंबर सेना के जवानों के, चार अर्धसैनिक बलों के और सात केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों के कर्मचारियों के थे। खुफिया एजेंसियां इन नंबरों से हुई बातचीत का विश्लेषण कर रही हैं ताकि इस जासूसी नेटवर्क की पूरी गहराई का पता लगाया जा सके।

कोलकाता कनेक्शन और सिम कार्ड की कहानी

जांच में एक और महत्वपूर्ण जानकारी सामने आई। मोती राम से संपर्क करने के लिए जिस फोन नंबर का इस्तेमाल हुआ, उसका सिम कार्ड कोलकाता से खरीदा गया था। इस सिम को खरीदने वाले व्यक्ति ने सिम एक्टिवेशन के लिए OTP को लाहौर में बैठे पाकिस्तानी एजेंट के साथ साझा किया था। इस व्यक्ति ने 2007 में एक पाकिस्तानी नागरिक से शादी की थी और 2014 में पाकिस्तान चला गया था। वह साल में दो बार कोलकाता आता था, जिससे संदेह होता है कि वह सीमा पार के इस जासूसी नेटवर्क का हिस्सा हो सकता है।

कौन-कौन सी जानकारी साझा की गई?

मोती राम पर आरोप है कि उसने 2023 से पाकिस्तानी एजेंटों को संवेदनशील जानकारी मुहैया कराई। इनमें शामिल हैं:सुरक्षाकर्मियों की तैनाती से संबंधित गोपनीय दस्तावेज। 

मल्टी-एजेंसी सेंटर (MAC) की रिपोर्ट्स, जो आधिकारिक वॉट्सऐप ग्रुपों पर साझा की जाती थीं।

सैनिकों की आवाजाही और आतंकी गतिविधियों की जानकारी।

जांच में यह भी पाया गया कि मोती राम ने अपने फोन में पाकिस्तानी हैंडलरों के साथ बातचीत के सारे संदेश सहेज कर रखे थे, जिससे जांच एजेंसियों को सबूत जुटाने में मदद मिली।

हनीट्रैप का शिकार बना मोती राम

मोती राम ने पूछताछ में दावा किया कि उसे हनीट्रैप के जरिए फंसाया गया। शुरुआत में उससे एक महिला ने संपर्क किया, जो खुद को चंडीगढ़ के एक प्रमुख टीवी चैनल की पत्रकार बताती थी। फोन और वीडियो कॉल के जरिए बातचीत के बाद उसने मोती राम का भरोसा जीत लिया। कुछ महीनों बाद एक पुरुष, जो संभवतः पाकिस्तानी खुफिया अधिकारी था, ने उसी पत्रकार की आड़ में बात शुरू की। इसके बाद मोती राम ने गोपनीय दस्तावेज साझा करना शुरू कर दिया।

पैसे का लेन-देन और शहजाद की भूमिका

पिछले दो वर्षों में मोती राम ने अपने लाहौर स्थित हैंडलर को कई संवेदनशील दस्तावेज भेजे, जिसके बदले उसे नियमित रूप से 12,000 रुपये तक की रकम मिलती थी। यह पैसा उसके और उसकी पत्नी के बैंक खातों में दिल्ली, महाराष्ट्र, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, असम और पश्चिम बंगाल जैसे विभिन्न राज्यों के खातों से जमा किया गया। इस लेन-देन में एक शख्स, शहजाद, का नाम भी सामने आया, जिसे मई 2025 में उत्तर प्रदेश एटीएस ने गिरफ्तार किया था। शहजाद पर कपड़े, मसाले और कॉस्मेटिक्स की तस्करी के जरिए ISI को गोपनीय जानकारी देने का आरोप है। उसने बताया कि एक बार उसने पंजाब से दिल्ली जाने वाली ट्रेन में एक सहयात्री के कहने पर मोती राम को 3,500 रुपये भेजे थे, जिसके लिए उसे नकद राशि दी गई थी।

जासूसी नेटवर्क की गहराई

NIA ने इस मामले में 15 स्थानों पर छापेमारी की, जिसमें दिल्ली, कोलकाता और चंडीगढ़ शामिल हैं। कोलकाता में अलीपुर, खिद्दरपुर और पार्क सर्कस जैसे इलाकों में दुकानों और ट्रैवल एजेंसियों पर तलाशी ली गई। जांच में कई इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स और संवेदनशील वित्तीय दस्तावेज जब्त किए गए हैं। यह भी सामने आया कि पाकिस्तानी एजेंटों ने सामान्य भारतीय नागरिकों को अनजाने में इस जासूसी नेटवर्क का हिस्सा बनाया, जिन्हें व्यापारिक लेन-देन के बहाने मोती राम के खाते में पैसे जमा करने को कहा गया।

राष्ट्रीय सुरक्षा पर सवाल

इस मामले ने भारत की सुरक्षा व्यवस्था में सेंधमारी की गंभीर संभावना को उजागर किया है। एक सेवारत CRPF अधिकारी का इस तरह की जासूसी में शामिल होना और 15 अन्य सैन्य और सरकारी कर्मचारियों के साथ पाकिस्तानी एजेंट का संपर्क चिंता का विषय है। खुफिया एजेंसियां अब इस नेटवर्क के पूरे दायरे को उजागर करने के लिए गहन जांच कर रही हैं।

आगे की जांच

NIA और अन्य केंद्रीय एजेंसियां इस मामले में और गिरफ्तारियों की संभावना जता रही हैं। कॉल रिकॉर्ड और वित्तीय लेन-देन की जांच से यह स्पष्ट होने की उम्मीद है कि इस जासूसी नेटवर्क में और कितने लोग शामिल हैं। साथ ही, पहलगाम हमले के साथ मोती राम के कनेक्शन की भी गहन जांच की जा रही है।यह मामला न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियां भारतीय सुरक्षा तंत्र में सेंध लगाने के लिए कितने परिष्कृत तरीकों का इस्तेमाल कर रही हैं।