होटल की रातों से बॉलीवुड की चमक तक: कहां गुम हो गया बॉलीवुड का सितारा, जानिए

दिन में प्रोड्यूसर्स के चक्कर और रात में होटल की नौकरी से शुरू हुआ सफर 'आशिकी' जैसे किरदारों तक पहुंचा। उनकी कहानी हर सपने देखने वाले को हिम्मत देती है।

Aug 27, 2025 - 20:06
होटल की रातों से बॉलीवुड की चमक तक: कहां गुम हो गया बॉलीवुड का सितारा, जानिए

बॉलीवुड की चकाचौंध भरी दुनिया में हर चेहरा अपनी कहानी लिए चलता है। कोई अपनी मेहनत को चमकता सितारा बनाता है, तो कोई गुमनामी में खो जाता है। लेकिन कुछ ऐसे भी हैं, जो अपनी जिद और जुनून से हर मुश्किल को पार कर जाते हैं। दीपक तिजोरी ऐसी ही एक शख्सियत हैं, जिनका बॉलीवुड सफर किसी प्रेरणादायक फिल्म की स्क्रिप्ट से कम नहीं।

मामूली शुरुआत, असाधारण सपने

28 अगस्त 1961 को मुंबई में जन्मे दीपक तिजोरी का परिवार गुजरात के मेहसाणा से ताल्लुक रखता था। उनके परदादा तिजोरियां बनाने का काम करते थे, जिससे उनका सरनेम 'तिजोरीवाला' पड़ा, जो बाद में 'तिजोरी' हो गया। दीपक के पिता गुजराती वैष्णव थे, जबकि मां पारसी-ईरानी। उनकी मां को अभिनय का शौक था, लेकिन रूढ़ियों ने उनके सपनों को पंख नहीं लगने दिए। फिर भी, उन्होंने अपने बेटे को सपनों की उड़ान भरने का हौसला दिया।

दीपक की पढ़ाई मुंबई के नरसी मोनजी कॉलेज में हुई, जहां थिएटर ने उनके दिल में अभिनय की चिंगारी जलाई। कॉलेज के नाटकों में वह हमेशा हीरो बनकर तालियां बटोरते थे। आमिर खान, आशुतोष गोवारिकर और परेश रावल जैसे दोस्तों के साथ थिएटर में बिताए पल उनके लिए अनमोल थे। उन्हें यकीन था कि कॉलेज खत्म होते ही बॉलीवुड में उनकी राह आसान होगी, लेकिन हकीकत ने उनके सपनों को कड़वा सच दिखाया।

दिन का संघर्ष, रात का काम

बॉलीवुड में बिना सिफारिश के जगह बनाना आसान नहीं था। दीपक का परिवार आर्थिक तंगी से जूझ रहा था। पिता की कमाई सीमित थी, और बड़े भाई पर घर की जिम्मेदारी थी। ऐसे में दीपक ने हिम्मत नहीं हारी। दिन में वह प्रोड्यूसर्स के दफ्तरों के चक्कर लगाते और रात में बांद्रा के एक होटल में फ्रंट डेस्क पर काम करते। यह दौर उनके लिए सबसे मुश्किल था, लेकिन यही वह समय था जिसने उन्हें स्टील की तरह मजबूत बनाया।

'आशिकी' से मिली पहचान

लंबे इंतजार और मेहनत के बाद दीपक को मॉडलिंग के छोटे-मोटे मौके मिलने लगे। फिर एक दिन अभिनेता अवतार गिल का फोन आया, जिन्होंने बताया कि महेश भट्ट उन्हें ढूंढ रहे हैं। दीपक ने मौके को दोनों हाथों से थामा और 1990 की ब्लॉकबस्टर 'आशिकी' में एक छोटा लेकिन यादगार रोल हासिल किया। इस किरदार ने उन्हें रातोंरात इंडस्ट्री में पहचान दिलाई। इसके बाद 'सड़क', 'दिल है कि मानता नहीं', 'खिलाड़ी', 'जो जीता वही सिकंदर', और 'कभी हां कभी ना' जैसी फिल्मों में उनके सहायक किरदारों ने दर्शकों का दिल जीता।

लीड रोल का सपना और 'पहला नशा'

सहायक किरदारों में चमकने के बाद दीपक को 1993 में 'पहला नशा' में मुख्य अभिनेता बनने का मौका मिला। इस फिल्म में शाहरुख खान और आमिर खान जैसे सितारे मेहमान भूमिकाओं में थे। मगर बॉक्स ऑफिस पर फिल्म का जादू नहीं चला, और दीपक का हीरो बनने का सपना अधूरा रह गया। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और एक नई राह चुनी—निर्देशन।

डायरेक्शन और टीवी की दुनिया में कदम

2003 में दीपक ने 'ऑप्स' के साथ बतौर डायरेक्टर डेब्यू किया। फिल्म को बोल्ड कंटेंट की वजह से आलोचना मिली और गलत प्रचार ने इसे गलत रोशनी में पेश किया। इसके बाद 'टॉम डिक एंड हैरी' और 'खामोशी: खौफ की एक रात' जैसी फिल्में भी बनाईं, लेकिन ये कमर्शियल कामयाबी नहीं पा सकीं।

दीपक ने टीवी की दुनिया में भी हाथ आजमाया। उनके प्रोड्यूस किए शो 'सैटरडे सस्पेंस' और 'थ्रिलर एट 10 फरेब' ने खूब वाहवाही बटोरी और अवॉर्ड भी जीते। लेकिन जब टीवी पर सास-बहू ड्रामों का बोलबाला हुआ, तो दीपक ने इस माध्यम से दूरी बना ली।

वापसी और प्रेरणा का स्रोत

हाल के वर्षों में दीपक ने फिर से अभिनय में कदम रखा। 'इत्तर' जैसी फिल्मों में उन्होंने मध्यम आयु के प्रेमी की भूमिका निभाकर दर्शकों को प्रभावित किया। भले ही उन्हें बड़े अवॉर्ड्स न मिले, लेकिन उनका जुनून और मेहनत आज भी सिनेमा प्रेमियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

दीपक तिजोरी की कहानी उन तमाम लोगों के लिए सबक है, जो सपनों को सच करने की जिद रखते हैं। बॉलीवुड में उनकी यात्रा सिखाती है कि कामयाबी का रास्ता मेहनत, हिम्मत और हौसले से बनता है। चाहे वह छोटे किरदार हों या बड़े सपने, दीपक ने हर कदम पर जिंदगी को गले लगाया और साबित किया कि असली हीरो वही है, जो कभी हार नहीं मानता।

Yashaswani Journalist at The Khatak .