पाकिस्तान आर्मी ने खैबर पख्तूनख्वा के बाजौर जिले में ‘ऑपरेशन सरबकाफ’ नाम से एक आतंकवाद विरोधी अभियान शुरू किया है, जिसके चलते 55,000 लोग अपने घर छोड़ने को मजबूर हो गए हैं। इस ऑपरेशन के तहत 27 इलाकों में 72 घंटे का कर्फ्यू लागू किया गया है। यह अभियान अफगानिस्तान सीमा से सटे क्षेत्र में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) और अन्य आतंकवादी समूहों के खिलाफ लक्षित है। स्थानीय लोगों ने इसे मानवीय संकट करार दिया है।
ऑपरेशन सरबकाफ का उद्देश्य
पाकिस्तान आर्मी ने मंगलवार सुबह बाजौर के लोए ममुंड तहसील में ‘ऑपरेशन सरबकाफ’ शुरू किया, जिसे आतंकवादी ठिकानों को नष्ट करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। यह अभियान हेलीकॉप्टर और तोपखाने के समर्थन से चलाया जा रहा है। स्थानीय प्रशासक सईद उल्लाह के अनुसार, यह एक लक्षित ऑपरेशन है, जिसका मकसद नागरिक हताहतों को कम करना है। हालांकि, खैबर पख्तूनख्वा पुलिस प्रमुख जुल्फिकार हमीद ने ऑपरेशन में हताहतों की जानकारी साझा नहीं की।
55,000 लोगों का विस्थापन
ऑपरेशन के कारण बाजौर में लगभग 55,000 लोग विस्थापित हो गए हैं, और कई गांव खाली हो चुके हैं। स्थानीय प्रशासक शाहिद अली ने बताया कि विस्थापितों की संख्या तेजी से बढ़कर 1 लाख तक पहुंच सकती है। 50 साल के गुल वाली जैसे निवासियों ने बताया कि यह उनका दूसरा विस्थापन है, क्योंकि 2009 में भी बाजौर में सैन्य अभियान के कारण उनकी बस्तियां नष्ट हो गई थीं। विस्थापित परिवारों को सरकारी आश्रयों में ठहराया गया है, लेकिन भोजन और चिकित्सा सहायता की कमी की शिकायतें सामने आ रही हैं।
72 घंटे का कर्फ्यू
बाजौर के 27 इलाकों में 72 घंटे का कर्फ्यू लागू किया गया है, जिसके कारण लगभग 4 लाख लोग घरों में कैद हैं। कर्फ्यू के दौरान कोई चिकित्सा सहायता या निकासी योजना उपलब्ध नहीं है, जिससे स्थानीय लोग डरे हुए हैं। अल-खिदमत फाउंडेशन जैसे स्वयंसेवी संगठन विस्थापितों को भोजन वितरित कर रहे हैं, और सरकार ने प्रत्येक परिवार को 50,000 रुपये (175 डॉलर) मुआवजे की घोषणा की है।
अतीत में बाजौर के अभियान
बाजौर पहले भी आतंकवाद विरोधी अभियानों का केंद्र रहा है। 2009 में पाकिस्तान आर्मी ने टीटीपी और विदेशी आतंकवादियों के खिलाफ बड़े पैमाने पर अभियान चलाया था, जिसके कारण लाखों लोग विस्थापित हुए थे। 2010 में सरकार ने जीत का दावा किया था, लेकिन हाल के वर्षों में टीटीपी की गतिविधियां फिर से बढ़ी हैं, क्योंकि अफगान तालिबान के सत्ता में आने के बाद से आतंकवादियों को अफगानिस्तान में सुरक्षित ठिकाने मिले हैं।