बाढ़ का इतना कहर कि World Famous अमरूद की फसल पानी की तरह बह गई ,5000 हेक्टेयर बगीचे तबाह.
सवाई माधोपुर में बाढ़ ने विश्व प्रसिद्ध अमरूद की फसल को भारी नुकसान पहुंचाया है। करीब 4 करोड़ रुपये की फसल पानी में बह गई, और 5000 हेक्टेयर के बगीचे तबाह हो गए। यह आपदा किसानों के लिए गहरा आघात है, जिनकी आजीविका इस स्वादिष्ट फल पर टिकी थी। खेतों में गहरे गड्ढे, उखड़े पेड़ और बहते फल इस प्राकृतिक कहर की दर्दनाक तस्वीर पेश करते हैं। प्रशासन से मुआवजे की मांग तेज हो रही है, ताकि किसान इस संकट से उबर सकें।

सवाई माधोपुर, राजस्थान: राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में हाल ही में आई भीषण बाढ़ ने अमरूद की खेती को भारी नुकसान पहुंचाया है। इस प्राकृतिक आपदा ने जिले के किसानों के लिए गंभीर संकट खड़ा कर दिया है, जिनके लिए अमरूद की खेती न केवल आजीविका का मुख्य स्रोत है, बल्कि क्षेत्र की पहचान भी है। अनुमान के मुताबिक, इस बाढ़ के कारण लगभग 4 करोड़ रुपये की अमरूद की फसल बर्बाद हो गई है, और करीब 5000 हेक्टेयर में फैले अमरूद के बगीचों को व्यापक क्षति पहुंची है।
बाढ़ ने मचाई तबाही
पिछले कुछ दिनों में सवाई माधोपुर जिले में मूसलाधार बारिश ने हालात को बेकाबू कर दिया। जिले की प्रमुख नदियाँ जैसे बनास, चंबल, और गलवा नदी उफान पर आ गईं, जिसके कारण कई गांवों में बाढ़ जैसे हालात बन गए। सूरवाल, जड़ावता, और चौथ का बरवाड़ा जैसे क्षेत्रों में बांधों के ओवरफ्लो होने से पानी खेतों और बगीचों में घुस गया। इस तेज बहाव ने अमरूद के पेड़ों को जड़ से उखाड़ दिया और पेड़ों पर लगे फलों को बहा ले गया। कई जगहों पर खेतों में गहरी खाइयाँ बन गईं, जिससे मिट्टी का कटाव हुआ और बगीचों की संरचना को भारी नुकसान पहुंचा।
अमरूद की खेती: सवाई माधोपुर की शान
सवाई माधोपुर पूरे देश में अपनी उच्च गुणवत्ता और स्वादिष्ट अमरूदों के लिए प्रसिद्ध है। जिले में करीब 12,500 हेक्टेयर क्षेत्र में अमरूद की खेती होती है, जिसमें बर्फखान गोला, लखनऊ 49, इलाहाबादी, और सफेदा जैसी किस्में शामिल हैं। ये बगीचे न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था का आधार हैं, बल्कि उत्तर प्रदेश की नर्सरियों को भी कड़ी टक्कर देते हैं। करमोदा, सूरवाल, गंगापुर सिटी, और बामनवास जैसे क्षेत्रों में अमरूद की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है, जो किसानों को करोड़ों रुपये की आय देती है। लेकिन इस बार बाढ़ ने इस समृद्ध परंपरा को गहरी चोट पहुंचाई है।
किसानों की बदहाली
बाढ़ के कारण जड़ावता गांव जैसे क्षेत्रों में हालात सबसे ज्यादा खराब हैं। यहाँ खेतों में 50 फीट तक गहरे गड्ढे बन गए हैं, और कई मकान, दुकानें, और यहाँ तक कि मंदिर भी पानी के तेज बहाव में बह गए। ग्रामीणों का कहना है कि प्रशासन को बार-बार सूचित करने के बावजूद समय पर सहायता नहीं मिली। कुछ राहत कार्य आपदा प्रबंधन मंत्री डॉ. किरोड़ी लाल मीणा के हस्तक्षेप के बाद शुरू हुए, जिन्होंने स्वयं मौके पर जाकर स्थिति का जायजा लिया और पानी के बहाव को मोड़ने के लिए मशीनों का उपयोग किया। फिर भी, ग्रामीणों का कहना है कि नुकसान इतना व्यापक है कि इसे भरपाई करना आसान नहीं होगा।
प्रशासन का प्रयास और चुनौतियाँ
जिला प्रशासन ने बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में राहत कार्य शुरू किए हैं। कलेक्टर कानाराम ने लोगों से जलभराव वाले क्षेत्रों से दूर रहने की अपील की है और कंट्रोल रूम के माध्यम से सहायता उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया है। एनडीआरएफ की टीमें भी राहत कार्यों में जुटी हैं, लेकिन ग्रामीणों का आरोप है कि अतिक्रमण और अपर्याप्त जल निकासी व्यवस्था के कारण स्थिति और बिगड़ी। भगवतगढ़ मार्ग पर छोटे पाइपों के कारण पानी की निकासी बाधित हुई, जिससे सड़कों पर 3-4 फीट पानी जमा हो गया।
आर्थिक और सामाजिक प्रभाव
इस बाढ़ ने न केवल अमरूद की फसल को नष्ट किया, बल्कि जिले की अर्थव्यवस्था पर भी गहरा असर डाला है। अमरूद की खेती सवाई माधोपुर की आर्थिक रीढ़ है, और इस नुकसान से किसानों की आय पर लंबे समय तक प्रभाव पड़ सकता है। इसके अलावा, बाढ़ ने सड़कों, घरों, और बुनियादी ढांचे को भी क्षति पहुंचाई है। सवाई माधोपुर-लालसोट मेगा हाईवे पर पानी भरने से यातायात ठप हो गया, और रेलवे स्टेशन पर पटरियों के डूबने से ट्रेनें घंटों लेट हुईं।
भविष्य की चिंता
मौसम विभाग ने अभी और बारिश की संभावना जताई है, जिससे किसानों में और अधिक चिंता बढ़ गई है। पहले से ही कीड़े और जलभराव के कारण प्रभावित अमरूद की फसल को और नुकसान होने का खतरा है। किसानों का कहना है कि अगर प्रशासन समय पर बांधों का रखरखाव और जल निकासी की बेहतर व्यवस्था करता, तो शायद नुकसान को कम किया जा सकता था।
सवाई माधोपुर में बाढ़ ने अमरूद की खेती को अभूतपूर्व नुकसान पहुंचाया है, जिससे किसानों की आजीविका पर संकट मंडरा रहा है। प्रशासन से मुआवजे और पुनर्वास की मांग तेज हो रही है, ताकि किसान इस आपदा से उबर सकें। यह घटना न केवल एक प्राकृतिक आपदा है, बल्कि जल प्रबंधन और आपदा तैयारियों में सुधार की आवश्यकता को भी उजागर करती है।