थार के रेतीले रेगिस्तान में छिपा 20 करोड़ साल पुराना रहस्य, मगरमच्छ जैसा दिखने वाला जीवाश्म मिला...
जैसलमेर के मेघा गांव में थार के रेगिस्तान ने 20 करोड़ साल पुराना रहस्य उजागर किया! वैज्ञानिकों को मिला फाइटोसॉर का अनोखा जीवाश्म, जो मगरमच्छ जैसा दिखता है। डेढ़ से दो मीटर लंबा यह प्राचीन सरीसृप और इसके पास मिला अंडा जुरासिक युग के जलीय जीवन की कहानी बयां करता है। गांववाले इसे पिंजरे में बंद कर 24 घंटे पहरा दे रहे हैं, जबकि वैज्ञानिक जांच में जुटे हैं। भारत की यह पहली ऐसी खोज वैज्ञानिकों और ग्रामीणों के सहयोग का शानदार नमूना है!

जैसलमेर, राजस्थान: थार के रेतीले रेगिस्तान में एक ऐसी खोज हुई है, जो भारत के भूवैज्ञानिक इतिहास में मील का पत्थर साबित हो सकती है। जैसलमेर जिले के फतेहगढ़ उपखंड के मेघा गांव में एक तालाब की खुदाई के दौरान वैज्ञानिकों को 20 करोड़ साल पुराना फाइटोसॉर (Phytosaur) जीवाश्म मिला है, जो देखने में मगरमच्छ जैसा है। यह भारत में अपनी तरह का पहला और सबसे अच्छी तरह संरक्षित जीवाश्म माना जा रहा है। इस खोज ने न केवल वैज्ञानिकों को उत्साहित किया है, बल्कि स्थानीय ग्रामीणों में भी कौतूहल पैदा कर दिया है, जो इसे पिंजरे में बंद कर 24 घंटे पहरा दे रहे हैं।
खोज की शुरुआत: ग्रामीणों की नजर और वैज्ञानिकों की मेहनत
मेघा गांव में 21 अगस्त 2025 को तालाब की सफाई और खुदाई के दौरान स्थानीय निवासी श्याम सिंह ने सबसे पहले हड्डियों जैसी संरचना और पत्थरों पर असामान्य छाप देखी। शुरुआत में ग्रामीणों को लगा कि यह किसी ऊंट या मवेशी का पुराना कंकाल हो सकता है। लेकिन जब तस्वीरें और जानकारी जिला प्रशासन और पुरातत्व विभाग तक पहुंची, तो भूवैज्ञानिकों की एक टीम तुरंत मौके पर पहुंची। इस टीम का नेतृत्व जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर के अर्थ सिस्टम साइंस फैकल्टी के डीन और वरिष्ठ जीवाश्म वैज्ञानिक प्रोफेसर वी.एस. परिहार ने किया। उनके साथ भूजल वैज्ञानिक डॉ. नारायण दास इणखिया, अंशुल हर्ष और पवन कुमार भी शामिल थे।प्रोफेसर परिहार ने जांच के बाद पुष्टि की कि यह जीवाश्म फाइटोसॉर का है, जो जुरासिक युग (लगभग 20.14 करोड़ साल पहले) का एक सरीसृप था। यह जीव मगरमच्छ जैसी बनावट वाला था, जिसकी लंबाई डेढ़ से दो मीटर के बीच थी। इसके पास एक जीवाश्मीकृत अंडा भी मिला, जो इस प्रजाति के प्रजनन व्यवहार को समझने में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।
फाइटोसॉर क्या है? मगरमच्छ से समानता और अंतर
फाइटोसॉर एक प्राचीन सरीसृप प्रजाति थी, जो देर ट्राइऐसिक और शुरुआती जुरासिक काल में नदियों और जंगलों के आसपास पाई जाती थी। इसकी बनावट मगरमच्छ जैसी थी—छोटे पैर, मजबूत शरीर, बख्तरबंद त्वचा, लंबी पूंछ और नुकीले दांतों वाला थूथन। लेकिन एक बड़ा अंतर यह था कि मगरमच्छ की नाक थूथन के छोर पर होती है, जबकि फाइटोसॉर की नाक आंखों के ठीक सामने उभरी हुई जगह पर होती थी। वैज्ञानिकों के अनुसार, फाइटोसॉर मुख्य रूप से मछलियां खाकर जीवित रहता था और नदी तंत्र में इसका महत्वपूर्ण योगदान था। प्रोफेसर परिहार के अनुसार, यह मध्यम आकार का फाइटोसॉर संभवतः नदी किनारे रहता
जैसलमेर: जुरासिक युग का गवाह
यह खोज इस बात का प्रमाण है कि करीब 20-25 करोड़ साल पहले थार का रेगिस्तानी इलाका एक समृद्ध जलीय वातावरण था, जहां नदियां और समुद्र हुआ करते थे। वैज्ञानिकों का मानना है कि उस समय यह क्षेत्र टेथिस सागर का हिस्सा था, जहां डायनासोर और अन्य प्राचीन जीव खाने की तलाश में आते थे। जैसलमेर में पहले भी डायनासोर के जीवाश्म, पैरों के निशान और 2023 में एक डायनासोर का अंडा मिल चुका है। मेघा गांव की यह खोज इस क्षेत्र की पांचवीं बड़ी जीवाश्म खोज मानी जा रही है।डॉ. नारायण दास इणखिया ने बताया कि जैसलमेर के चट्टानी ढांचे लगभग 18-20 करोड़ साल पुराने हैं, जो जुरासिक काल से संबंधित हैं। इस खोज से यह भी साफ होता है कि थार का यह इलाका कभी जलीय जीवन और घने जंगलों से भरा हुआ था।
ग्रामीणों का योगदान और संरक्षण के प्रयास
मेघा गांव के लोगों ने इस जीवाश्म की खोज में अहम भूमिका निभाई। श्याम सिंह और राम सिंह भाटी जैसे ग्रामीणों ने तुरंत प्रशासन को सूचित किया, जिसके बाद जीवाश्म को सुरक्षित करने के लिए तारबंदी की गई। ग्रामीणों ने इसे एक पिंजरे में बंद कर दिया और 24 घंटे पहरा दे रहे हैं, ताकि यह ऐतिहासिक धरोहर सुरक्षित रहे। जिला कलेक्टर प्रताप सिंह और फतेहगढ़ उपखंड अधिकारी इसकी निगरानी कर रहे हैं, और जल्द ही इसे आम जनता के लिए प्रदर्शन के लिए संरक्षित किया जाएगा।
वैज्ञानिक जांच और भविष्य की संभावनाएं
भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) की एक टीम जल्द ही इस जीवाश्म की विस्तृत जांच करेगी। कार्बन डेटिंग और अन्य वैज्ञानिक विश्लेषणों से इसकी सटीक उम्र और प्रजाति की पुष्टि होगी। प्रोफेसर परिहार ने इसे भारत के भूवैज्ञानिक इतिहास में एक ऐतिहासिक खोज बताया और कहा कि यह इंग्लैंड के बाद जुरासिक युग की खोज करने वाला भारत दूसरा देश है।वैज्ञानिकों का मानना है कि मेघा गांव और आसपास के क्षेत्रों में भविष्य में और भी जीवाश्म मिल सकते हैं। इससे पहले जैसलमेर के थियाट गांव में डायनासोर की हड्डियां, पैरों के निशान और आकल गांव में 18 करोड़ साल पुराने पेड़ों के जीवाश्म मिले थे, जिन्हें अब 'वुड फॉसिल पार्क' में संरक्षित किया गया है।
भारत के लिए गर्व का पल
यह खोज न केवल जैसलमेर, बल्कि पूरे भारत के लिए गर्व का क्षण है। यह पहली बार है कि भारत में फाइटोसॉर का इतनी अच्छी तरह संरक्षित जीवाश्म मिला है। 2023 में बिहार-मध्यप्रदेश सीमा पर फाइटोसॉर के कुछ अवशेष मिले थे, लेकिन जैसलमेर का यह नमूना अब तक का सबसे बेहतर संरक्षित है। यह खोज भारत की पुरातत्व और भूगर्भीय धरोहर को और समृद्ध करेगी, साथ ही वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए नई संभावनाएं खोलेगी।
मेघा गांव की यह खोज जैसलमेर को वैज्ञानिक अनुसंधान के नक्शे पर और मजबूती से स्थापित करती है। फाइटोसॉर का यह जीवाश्म न केवल प्राचीन जीवन के रहस्यों को उजागर करता है, बल्कि यह भी बताता है कि करोड़ों साल पहले थार का रेगिस्तान जीवन से भरा हुआ था। ग्रामीणों की सजगता, वैज्ञानिकों की मेहनत और प्रशासन के सहयोग से यह ऐतिहासिक धरोहर अब दुनिया के सामने आएगी।
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