धौलपुर नदी किनारे जुआ खेलते लोगों को पकड़ने आई पुलिस ,तो कुद गए नदी में दो की मौत

धौलपुर में पार्वती नदी के किनारे जुआ खेल रहे कुछ लोगों को पकड़ने के लिए पुलिस ने छापेमारी की। पुलिस को देखकर कुछ जुआरी नदी में कूद गए, जिसके परिणामस्वरूप दो लोगों की मौत हो गई। यह घटना पुलिस की कार्रवाई के दौरान हुई, जब जुआरियों ने भागने की कोशिश की।

May 25, 2025 - 18:07
धौलपुर नदी किनारे जुआ खेलते लोगों को पकड़ने आई पुलिस ,तो कुद गए नदी में दो की मौत

राजस्थान के धौलपुर जिले में एक छापेमारी ने एक ऐसी घटना  को जन्म दिया, जिसने न केवल दो युवा जिंदगियों को लील लिया, बल्कि पुलिस की जवाबदेही और जुआरियों की लापरवाही पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए। पुलिस की कार्रवाई अवैध जुआ रोकने की जिम्मेदारी थी या अनावश्यक जोखिम को न्योता? जुआरी गलत राह पर चल रहे थे, मगर क्या उनकी सजा इतनी भयावह होनी चाहिए थी? पार्वती नदी में डूबकर मरने वाले दो युवकों की मौत का जिम्मेदार कौन है—पुलिस, जुआरी, या दोनों का मिश्रित दायित्व? यह घटना समाज के सामने एक जटिल सवाल छोड़ गई है।

पुलिस को धौलपुर के एक ग्रामीण इलाके में अवैध जुआ चलने की सूचना मिली थी। रविवार की शाम को इस सूचना पर कार्रवाई करते हुए पुलिस ने जुआरियों के ठिकाने पर छापेमारी की। पुलिस को देखते ही वहां मौजूद लोग भागने लगे। इस भगदड़ में दो युवक, जो जुआ खेलने में शामिल थे, पुलिस की गिरफ्त से बचने के लिए पास बह रही पार्वती नदी में कूद गए। नदी का तेज बहाव और गहराई उनके लिए जानलेवा साबित हुई। स्थानीय ग्रामीणों ने कड़ी मेहनत के बाद दोनों के शव नदी से निकाले, लेकिन तब तक उनकी मौत हो चुकी थी।

पुलिस: सही या गलत?

पुलिस की कार्रवाई को एक तरफ से देखें तो यह उनका कर्तव्य था। जुआ एक अवैध गतिविधि है, जो न केवल सामाजिक बुराई को बढ़ावा देता है, बल्कि अपराध और आर्थिक नुकसान का कारण भी बनता है। पुलिस का दावा है कि उनकी छापेमारी नियमित कार्रवाई का हिस्सा थी, जिसका मकसद समाज को इस बुराई से बचाना था। सूचना के आधार पर त्वरित कार्रवाई करना उनकी जिम्मेदारी थी, और जुआरियों को पकड़ने के लिए दबिश देना कानूनन उचित था।
लेकिन दूसरी तरफ, पुलिस की रणनीति और कार्रवाई के तौर-तरीकों पर सवाल उठ रहे हैं। क्या पुलिस ने छापेमारी के दौरान स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त सावधानी बरती? क्या यह अनुमान लगाया गया था कि लोग नदी की ओर भाग सकते हैं, जो पहले से ही खतरनाक मानी जाती है? ग्रामीणों का आरोप है कि पुलिस की अचानक और आक्रामक कार्रवाई ने युवकों को घबराहट में नदी में कूदने के लिए मजबूर किया। अगर पुलिस ने अधिक संयम और योजना के साथ कार्रवाई की होती, तो शायद यह हादसा टल सकता था।

जुआरी: गलत राह, मगर असमय अंत

जुआरियों की भूमिका को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। जुआ खेलना न केवल गैरकानूनी है, बल्कि यह सामाजिक और आर्थिक रूप से हानिकारक भी है। ये युवक उस गतिविधि में शामिल थे, जो उन्हें कानून के दायरे में ला सकती थी। पुलिस से बचने के लिए उनकी भागमभाग और नदी में कूदने का फैसला उनकी अपनी गलती थी। जुआ जैसी बुराई में लिप्त होने के कारण वे उस स्थिति में थे, जहां उन्हें पुलिस से भागना पड़ा।
हालांकि, यह सवाल भी उठता है कि क्या जुआ खेलने की सजा इतनी बड़ी होनी चाहिए थी? ये युवक शायद सामाजिक दबाव, आर्थिक तंगी, या लत के शिकार थे। कई बार युवा ऐसी गतिविधियों में इसलिए पड़ जाते हैं, क्योंकि उन्हें बेहतर विकल्प नहीं मिलते। उनकी मृत्यु ने उनके परिवारों को असहनीय दुख दिया है, और यह समाज के सामने एक सवाल रखता है कि क्या ऐसी बुराइयों को रोकने के लिए केवल सजा ही काफी है, या जागरूकता और पुनर्वास जैसे कदमों की जरूरत है?

मौत का जिम्मेदार कौन?

इस त्रासदी का जिम्मेदार तय करना आसान नहीं है। पुलिस ने अपनी जिम्मेदारी निभाने की कोशिश की, लेकिन उनकी कार्रवाई की रणनीति में खामियां उजागर हुईं। जुआरियों ने गलत रास्ता चुना, मगर उनकी गलती की कीमत उनकी जान बन गई। यह हादसा दोनों पक्षों की कमियों का परिणाम है—पुलिस की ओर से बेहतर योजना और संवेदनशीलता की कमी, और जुआरियों की ओर से गैरकानूनी गतिविधि में शामिल होने और जोखिम भरा फैसला लेने की गलती।

ग्रामीणों का आक्रोश और प्रशासन की चुनौती

घटना के बाद ग्रामीणों में भारी गुस्सा है। वे पुलिस की कार्रवाई को इस त्रासदी का कारण मान रहे हैं और मृतकों के परिवारों के लिए न्याय और आर्थिक सहायता की मांग कर रहे हैं। पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी मौके पर मौजूद हैं और ग्रामीणों को समझाने की कोशिश कर रहे हैं। प्रशासन ने मामले की निष्पक्ष जांच का आश्वासन दिया है, और मृतकों के परिवारों को सहायता देने का वादा किया है।

यह घटना न केवल पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाती है, बल्कि समाज में जुआ जैसी बुराइयों को रोकने के लिए व्यापक उपायों की जरूरत को भी रेखांकित करती है। पुलिस को अपनी कार्रवाइयों में अधिक संवेदनशीलता और रणनीति अपनाने की जरूरत है, ताकि ऐसी त्रासदियां न हों। साथ ही, समाज को जुआ जैसी गतिविधियों से बचाने के लिए जागरूकता, शिक्षा, और रोजगार के अवसरों पर ध्यान देना होगा।

कानून का पालन और सामाजिक सुधार दोनों में संतुलन जरूरी है। इस त्रासदी का जिम्मेदार एक पक्ष नहीं, बल्कि परिस्थितियों और फैसलों का जटिल मिश्रण है।

Ashok Shera "द खटक" एडिटर-इन-चीफ