"कंकालों का गांव: निगेटिव एनर्जी के डर से 150 परिवारों ने 3 दिन तक छोड़ा घर, खेतों में बनाया ठिकाना"

रिपोर्ट जसवंत सिंह शिवकर - चित्तौड़गढ़ से करीब 70 किलोमीटर दूर बड़ीसादड़ी के पास स्थित देवदा गांव हाल ही में एक अनोखी घटना के कारण सुर्खियों में आया। इस गांव के 150 परिवारों ने अपने घरों को ताले लगाकर खाली कर दिया और मवेशियों समेत तीन दिन तक खेतों में डेरा डाला। वजह थी गांव में फैली "निगेटिव एनर्जी" की आशंका, जिसे लेकर ग्रामीणों में लंबे समय से चर्चा चल रही थी। इस डर को दूर करने के लिए बड़े-बुजुर्गों की सलाह पर गांव को तीन दिन के लिए पूरी तरह खाली कर दिया गया, और हवन व पूजा-पाठ के बाद ही लोग वापस अपने घरों में लौटे।
कंकाल और हड्डियों का रहस्य
90 साल के भैरूलाल, जो गांव के सबसे बुजुर्गों में से एक हैं, बताते हैं कि यह कोई नई बात नहीं है। उनका कहना है, "जब भी गांव में कोई मकान बनाने के लिए नींव खोदता है, 5-6 फीट की गहराई पर कंकाल और हड्डियां निकलना शुरू हो जाती हैं। यह सिलसिला वर्षों से चला आ रहा है।" ग्रामीणों का मानना है कि इन कंकालों और हड्डियों की मौजूदगी ही गांव में नकारात्मक शक्तियों का कारण है, जिससे उनकी खुशहाली प्रभावित हो रही है।
निगेटिव एनर्जी से निपटने का अनोखा तरीका
इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए ग्रामीणों ने एक अनूठा कदम उठाया। गांव में 15 लाख रुपये की लागत से हनुमान मंदिर का निर्माण करवाया गया। इसके बाद, 27 मार्च 2025 को गांव को पूरी तरह खाली कर दिया गया। लोग अपने सामान और मवेशियों के साथ खेतों में चले गए और वहां तीन दिन तक रहे। इस दौरान गांव में कोई नहीं रहा। 30 मार्च को वैदिक मंत्रोच्चार और विधि-विधान के साथ ग्रामीणों ने दोबारा गांव में प्रवेश किया। इस अवसर पर आठ दिनों तक भागवत कथा और सिद्ध श्रीमहावीर हनुमान प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव का आयोजन भी किया गया।
ग्रामीणों की परेशानी और विश्वास
देवदा गांव के लोगों का कहना है कि नकारात्मक शक्तियों के कारण उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। एक ग्रामीण ने बताया, "नींव की खुदाई में मानव कंकाल और पशुओं की हड्डियां मिलना आम बात हो गई है। इससे गांव में अशांति और डर का माहौल रहता है।" उनका मानना है कि इन शक्तियों के प्रभाव को खत्म करने के लिए यह आध्यात्मिक कदम जरूरी था। हवन और पूजा-पाठ के बाद ग्रामीणों को लगता है कि अब गांव में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होगा।
अंधविश्वास या परंपरा?
कई लोग इसे अंधविश्वास कह सकते हैं, लेकिन ग्रामीणों के लिए यह उनकी आस्था और समुदाय की एकजुटता का प्रतीक है। तीन दिन तक खेतों में रहने और पूजा-पाठ के बाद अब गांव में सामान्य जीवन शुरू हो गया है। यह घटना न केवल देवदा गांव की अनोखी कहानी बयां करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि आधुनिक युग में भी परंपराएं और विश्वास कितने गहरे प्रभाव रखते हैं।
इस घटना ने एक बार फिर सवाल उठाया है कि क्या यह वाकई निगेटिव एनर्जी का असर था या फिर एक गहरी जड़ें जमाए हुए विश्वास का परिणाम? जवाब चाहे जो भी हो, देवदा गांव की यह कहानी लोगों के बीच कौतूहल का विषय बनी रहेगी।