गुरु' की वो कहानी जो दिल को छू जाती है, डॉ. राधाकृष्णन से सावित्रीबाई फुले तक की अनसुनी दास्तां
शिक्षक दिवस 1962 में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन पर शुरू हुआ, जिन्होंने इसे शिक्षकों को समर्पित किया। सावित्रीबाई फुले, भारत की पहली महिला शिक्षिका, और राधाकृष्णन जैसे महान शिक्षाविदों की विरासत आज भी प्रेरणा देती है।

आज जब पूरा देश शिक्षक दिवस मना रहा है, तो हमारी आंखों के सामने वो चेहरे घूम जाते हैं जिन्होंने हमें सिर्फ किताबी ज्ञान नहीं, बल्कि जीवन का सबक सिखाया। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये दिन कैसे शुरू हुआ? या भारत की पहली महिला शिक्षिका कौन थीं जिन्होंने समाज की दीवारें तोड़ीं? आइए, आज हम आपको ले चलते हैं शिक्षा की उन अनकही कहानियों में, जहां इतिहास और इंसानियत का मेल है। ये सिर्फ फैक्ट्स नहीं, बल्कि वो भावनाएं हैं जो हर शिक्षक के दिल में बसती हैं।
पहला शिक्षक दिवस: एक राष्ट्रपति का अनोखा फैसला जो इतिहास बन गया
कल्पना कीजिए, साल 1962। देश आजाद हुए अभी ज्यादा वक्त नहीं बीता था। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, जो उस वक्त भारत के राष्ट्रपति बने थे, का जन्मदिन था – 5 सितंबर। उनके छात्र और प्रशंसक बड़े धूमधाम से जश्न मनाना चाहते थे। लेकिन डॉ. राधाकृष्णन ने कहा, "मेरा जन्मदिन मनाने की बजाय, इसे शिक्षकों को समर्पित कर दो।" बस, यहीं से भारत में शिक्षक दिवस की शुरुआत हुई। ये वो पल था जब एक व्यक्ति ने अपनी शान को छोड़कर, पूरे शिक्षक समुदाय को सम्मान दिया। आज 63 साल बाद भी ये दिन हमें याद दिलाता है कि शिक्षक सिर्फ क्लासरूम में नहीं, बल्कि समाज की नींव में हैं।
डॉ. राधाकृष्णन: दार्शनिक से राष्ट्रपति तक का सफर, जो हर शिक्षक को प्रेरित करता है
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 1888 में तमिलनाडु के एक छोटे से गांव में हुआ था। गरीबी से जूझते हुए भी उन्होंने पढ़ाई नहीं छोड़ी। वे न सिर्फ भारत के दूसरे राष्ट्रपति (1962-1967) बने, बल्कि पहले उपराष्ट्रपति भी थे। लेकिन उनका असली प्यार शिक्षा था। वे ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रहे, और भारतीय दर्शन को दुनिया के मानचित्र पर लाए। एक बार उन्होंने कहा था, "शिक्षण एक पेशा नहीं, बल्कि जीवन जीने का एक तरीका है।" ये शब्द आज भी हर शिक्षक के लिए मंत्र हैं – जैसे कोई पिता अपने बच्चे को सिखाता है, वैसे ही शिक्षक समाज को आकार देते हैं। उनके बारे में ये कथन बिल्कुल सही है कि वे शिक्षा के माध्यम से राष्ट्र निर्माण में योगदान देने वाले महान विचारक थे।
शिक्षा आयोग की नींव: 1948 का वो कदम जो आज भी शिक्षा की दिशा तय करता है
स्वतंत्र भारत में उच्च शिक्षा को मजबूत बनाने के लिए 1948 में विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग की स्थापना हुई, जिसकी अध्यक्षता डॉ. राधाकृष्णन ने की। ये आयोग सिर्फ एक कमिटी नहीं था, बल्कि एक विजन था – जहां शिक्षा को समावेशी और गुणवत्तापूर्ण बनाने पर जोर दिया गया। आज जब हम IIT और IIM जैसी संस्थाओं को देखते हैं, तो उसकी जड़ें इसी आयोग में मिलती हैं। डॉ. राधाकृष्णन मानते थे कि शिक्षा से ही देश का भविष्य बदलेगा, और ये बात आज भी कितनी प्रासंगिक है!
आंध्र विश्वविद्यालय का कुलपति बनना: 1931 की वो उपलब्धि जो इतिहास रच गई
1931 में डॉ. राधाकृष्णन आंध्र विश्वविद्यालय के कुलपति बने – ये वो दौर था जब भारत ब्रिटिश शासन में था, और शिक्षा में सुधार की सख्त जरूरत थी। उन्होंने विश्वविद्यालय को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया, रिसर्च को बढ़ावा दिया और छात्रों को वैश्विक सोच सिखाई। ये पद उनके लिए सिर्फ जिम्मेदारी नहीं, बल्कि एक मिशन था। आज जब हम देखते हैं कि कैसे यूनिवर्सिटीज छात्रों के सपनों को पंख देती हैं, तो डॉ. राधाकृष्णन का योगदान याद आ जाता है।
भारत की पहली महिला शिक्षिका: सावित्रीबाई फुले की वो लड़ाई जो आज भी जारी है
शिक्षा की बात हो और सावित्रीबाई फुले का नाम न आए, ये हो ही नहीं सकता। 19वीं सदी में जब महिलाओं को पढ़ना तक मना था, तब सावित्रीबाई ने 1848 में पुणे में लड़कियों का पहला स्कूल खोला। वे भारत की पहली महिला शिक्षिका बनीं, और अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर दलित और महिलाओं के लिए शिक्षा का दरवाजा खोला। सोचिए, उस जमाने में कितना साहस चाहिए होगा! वे गोबर और पत्थरों से हमलों का सामना करतीं, लेकिन रुकीं नहीं। आज शिक्षक दिवस पर उन्हें याद करना जरूरी है, क्योंकि उनकी विरासत हमें बताती है कि शिक्षा समानता की कुंजी है।
शिक्षक दिवस सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि वो एहसास है जो हमें हमारे गुरुओं की याद दिलाता है। मेरे जैसे कई लोगों की जिंदगी में कोई न कोई शिक्षक रहा होगा, जिसने हमें गिरकर उठना सिखाया। आज के डिजिटल दौर में, जहां AI और ऑनलाइन क्लासेस हैं, लेकिन वो गर्मजोशी जो एक शिक्षक की मुस्कान में है, वो कभी नहीं बदलेगी। तो चलिए, आज अपने शिक्षकों को थैंक यू कहें, और वादा करें कि उनकी सीख को आगे बढ़ाएंगे। हैप्पी टीचर्स डे!