क्या भारत-रूस की दोस्ती ने बढ़ाई अमेरिका की बेचैनी?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ट्वीट कर सनसनी मचा दी, दावा किया कि भारत और रूस अब चीन के पाले में चले गए हैं! ट्रंप ने तियानजिन में हुई एससीओ बैठक की तस्वीर साझा कर तंज कसा, जिसमें पीएम मोदी, पुतिन और जिनपिंग साथ नजर आए। यह बयान भारत-अमेरिका टैरिफ युद्ध के बीच आया, जहां ट्रंप ने भारत पर 50% टैरिफ थोपा, कारण बताया- रूस से तेल खरीद। भारत ने जवाब में कहा, "हमें कुछ नहीं कहना!" क्या यह नई वैश्विक तिकड़ी अमेरिका की नींद उड़ा रही है?

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में अपने सोशल मीडिया मंच 'ट्रुथ सोशल' पर एक बयान देकर वैश्विक कूटनीति में हलचल मचा दी है। उन्होंने लिखा कि ऐसा लगता है कि अमेरिका ने भारत और रूस को "सबसे गहरे और अंधकारमय" चीन के हाथों खो दिया है। इस पोस्ट के साथ उन्होंने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की एक तस्वीर साझा की। ट्रंप ने तंज भरे लहजे में कहा, "ईश्वर करे कि उनका भविष्य दीर्घ और समृद्ध हो!" यह बयान ऐसे समय में आया है जब अमेरिका और भारत के बीच टैरिफ को लेकर तनाव चरम पर है।
टैरिफ युद्ध और भारत पर दबाव
ट्रंप का यह बयान 31 अगस्त से 1 सितंबर, 2025 तक चीन के तियानजिन में आयोजित एससीओ शिखर सम्मेलन के ठीक बाद आया है। इस सम्मेलन में भारत, रूस और चीन के नेताओं की मुलाकात ने वैश्विक ध्यान खींचा। ट्रंप ने भारत पर 50% टैरिफ लगाने का फैसला किया है, जिसका कारण उन्होंने भारत द्वारा रूस से तेल खरीदना बताया। उनका दावा है कि भारत का यह कदम रूस को यूक्रेन युद्ध में आर्थिक मदद दे रहा है। इसके अलावा, ट्रंप ने यह भी आरोप लगाया कि भारत अमेरिकी सामानों पर 100% टैरिफ लगाता है, जो विश्व में सबसे अधिक है, और दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्ते "एकतरफा" रहे हैं।हालांकि, भारत ने इन आरोपों का जवाब देते हुए कहा है कि उसकी ऊर्जा नीति राष्ट्रीय हितों पर आधारित है। विदेश मंत्रालय ने ट्रंप के ताजा बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "हमारे पास इस पर कहने के लिए कुछ नहीं है।" भारत ने यह भी स्पष्ट किया कि वह रूस के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को जारी रखेगा, क्योंकि ये संबंध भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं।
एससीओ सम्मेलन: नई वैश्विक धुरी का संकेत?
तियानजिन में आयोजित एससीओ शिखर सम्मेलन में भारत, रूस और चीन के नेताओं की गर्मजोशी और एकजुटता ने कई सवाल खड़े किए हैं। इस बैठक में पीएम मोदी ने न केवल आतंकवाद के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया, बल्कि रूस और चीन के साथ द्विपक्षीय वार्ताएं भी कीं। खास तौर पर, मोदी और पुतिन की मुलाकात ने अमेरिका की चिंताएं बढ़ा दीं। दोनों नेता एक ही कार में बैठक स्थल तक गए, जिसकी तस्वीर ने वैश्विक मीडिया में सुर्खियां बटोरीं। इसके अलावा, 3 सितंबर को चीन की सैन्य परेड में पुतिन और जिनपिंग एक मंच पर नजर आए, जिसे ट्रंप ने चुनौती के रूप में देखा। इस परेड में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ भी मौजूद थे, लेकिन उनकी उपस्थिति को विश्लेषकों ने "मामूली" करार दिया। यह दर्शाता है कि चीन अपनी कूटनीति में भारत और रूस को प्राथमिकता दे रहा है।
भारत-चीन-रूस की तिकड़ी: ट्रंप की चिंता का कारण
ट्रंप का बयान इस बात का संकेत है कि भारत, रूस और चीन की बढ़ती नजदीकियां अमेरिका के लिए खतरे की घंटी बन रही हैं। एससीओ सम्मेलन में इन तीनों देशों ने न केवल व्यापार और आतंकवाद जैसे मुद्दों पर एकजुटता दिखाई, बल्कि अमेरिकी टैरिफ नीतियों के खिलाफ भी एक संदेश दिया। भारत ने पहलगाम आतंकी हमले की निंदा को एससीओ के साझा बयान में शामिल करवाकर एक बड़ी कूटनीतिक जीत हासिल की, भले ही पाकिस्तान इस बैठक में मौजूद था।विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप की टैरिफ नीति ने भारत को रूस और चीन के करीब ला दिया है। न्यूयॉर्क टाइम्स ने इस मुलाकात को भारत-चीन संबंधों में सुधार का संकेत बताया, जबकि रूसी राजनयिकों ने इसे "नए विश्व व्यवस्था की शुरुआत" करार दिया। ट्रंप की नीतियों ने न केवल भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव पैदा किया है, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन को भी प्रभावित किया है।
भारत की स्वतंत्र विदेश नीति
भारत ने बार-बार स्पष्ट किया है कि उसकी विदेश नीति स्वतंत्र है और वह किसी भी देश के दबाव में नहीं झुकेगा। रूस से तेल खरीदने के मामले में भारत ने कहा है कि यह उसकी ऊर्जा जरूरतों के लिए जरूरी है। साथ ही, भारत ने यूक्रेन युद्ध में शांति के लिए मध्यस्थता की पेशकश की है, लेकिन ट्रंप के युद्धविराम के दावों को खारिज कर दिया। पीएम मोदी ने पुतिन के साथ बातचीत में यूक्रेन मुद्दे पर शांति के प्रयासों का समर्थन करने की बात दोहराई।
क्या है आगे की राह?
ट्रंप की टिप्पणी और टैरिफ नीति ने वैश्विक कूटनीति में एक नया मोड़ ला दिया है। भारत, रूस और चीन की बढ़ती नजदीकियां न केवल अमेरिकी प्रभुत्व को चुनौती दे रही हैं, बल्कि एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की ओर इशारा कर रही हैं। हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि भारत अपनी स्वतंत्र नीति के तहत रूस और चीन के साथ सहयोग बढ़ा रहा है, लेकिन वह अमेरिका के साथ अपने रणनीतिक संबंधों को भी बनाए रखेगा।ट्रंप का यह बयान भले ही तंज भरा हो, लेकिन यह साफ है कि भारत-रूस-चीन की एकजुटता ने अमेरिका को असहज कर दिया है। आने वाले दिन इस बात का खुलासा करेंगे कि क्या यह तिकड़ी वैश्विक शक्ति संतुलन को बदल देगी।