कॉलेज में तीन मजारों को लेकर विवाद गहराया, धरोहर बचाओ समिति ने दी उग्र आंदोलन की चेतावनी
कॉलेज में तीन मजारों के कथित अवैध निर्माण को लेकर विवाद गहराया, धरोहर बचाओ समिति ने हनुमान चालीसा पाठ कर विरोध जताया और 18 जुलाई की जांच रिपोर्ट के आधार पर उग्र आंदोलन की चेतावनी दी।

राजस्थान की राजधानी जयपुर के प्रतिष्ठित महारानी कॉलेज में तीन मजारों के कथित अवैध निर्माण को लेकर विवाद ने तूल पकड़ लिया है। मंगलवार को धरोहर बचाओ संघर्ष समिति के बैनर तले समिति के पदाधिकारियों और स्थानीय नागरिकों ने कॉलेज के बाहर सामूहिक रूप से हनुमान चालीसा का पाठ किया और कॉलेज प्रशासन की सद्बुद्धि की कामना की। इस दौरान समिति ने साफ शब्दों में चेतावनी दी कि यदि 18 जुलाई को आने वाली जांच कमेटी की रिपोर्ट उनके पक्ष में नहीं आई, तो वे जयपुर की जनता और छात्राओं के साथ मिलकर उग्र आंदोलन करेंगे, जिसकी पूरी जिम्मेदारी जिला प्रशासन की होगी।
महारानी कॉलेज, जो राजस्थान यूनिवर्सिटी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, में पंप हाउस और पानी की टंकी के पास तीन मजारों के निर्माण की खबर ने शैक्षणिक और सामाजिक हलकों में हलचल मचा दी है। धरोहर बचाओ संघर्ष समिति के अध्यक्ष भारत शर्मा ने इसे 'लैंड जिहाद' करार देते हुए गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा, "जब महारानी कॉलेज की स्थापना 1944 में हुई थी, तब यहां कोई मजार नहीं थी। अचानक शैक्षणिक भूमि पर तीन मजारों का निर्माण अवैध अतिक्रमण है और इसके पीछे गहरी साजिश है।" शर्मा ने यह भी सवाल उठाया कि जिस कॉलेज में पुरुषों की एंट्री पर सख्त पाबंदी है, वहां ये धार्मिक ढांचे कैसे और कब बन गए।
छात्राओं की सुरक्षा पर सवाल
महारानी कॉलेज में प्रतिवर्ष 6,000 से अधिक छात्राएं पढ़ाई करती हैं, और चार गर्ल्स हॉस्टल में लगभग 500 छात्राएं निवास करती हैं। इस तरह के धार्मिक निर्माण ने कॉलेज की सांस्कृतिक संरचना और छात्राओं की सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंताएं खड़ी कर दी हैं। शर्मा ने कहा, "यह मामला हमारी बेटियों की सुरक्षा और भविष्य से जुड़ा है। ये मजारें धार्मिक आयोजनों का केंद्र बन सकती हैं, जिससे भीड़ बढ़ेगी और भविष्य में यह जमीन वक्फ संपत्ति के रूप में कब्जे की ओर बढ़ सकती है।"
जांच कमेटी की भूमिका
विवाद के बढ़ते दबाव को देखते हुए जयपुर जिला कलेक्टर ने छह सदस्यीय जांच कमेटी का गठन किया है, जिसमें एसडीएम जयपुर राजेश जाखड़, ग्रेटर नगर निगम उपायुक्त प्रियव्रत चारण, एडीसीपी बलराम जाट, आर्कियोलॉजी विभाग के नीरज त्रिपाठी, राजस्थान यूनिवर्सिटी से सुभाष बैरवा, और कॉलेज प्रिंसिपल प्रो. पायल लोढ़ा शामिल हैं। कमेटी ने बीते सप्ताह कॉलेज परिसर का दौरा कर मजारों का निरीक्षण किया, जिसमें तस्वीरें और वीडियो रिकॉर्डिंग की गई। कमेटी कॉलेज के सीसीटीवी फुटेज और पूर्व कर्मचारियों व छात्राओं के बयान भी दर्ज कर रही है। इसकी रिपोर्ट 18 जुलाई को जिला कलेक्टर को सौंपी जाएगी, जिसके आधार पर प्रशासन अगला कदम उठाएगा।
कॉलेज प्रशासन और प्रिंसिपल की प्रतिक्रिया
महारानी कॉलेज की प्रिंसिपल प्रो. पायल लोढ़ा ने इस मामले से खुद को अलग करते हुए कहा, "मैंने पिछले साल दिसंबर में प्रिंसिपल के रूप में जॉइन किया था। ये मजारें मेरे जॉइन करने से पहले की हैं, और मुझे उनके निर्माण की जानकारी नहीं है।" उन्होंने बताया कि वर्तमान में एडमिशन प्रक्रिया के कारण परिसर में पुरुष अभिभावकों की आवाजाही हो रही है, लेकिन मजारों को लेकर कोई औपचारिक शिकायत नहीं मिली है।
राजनीतिक रंग लेता विवाद
इस मुद्दे ने राजनीतिक हलकों में भी हलचल मचा दी है। बीजेपी विधायक गोपाल शर्मा और बालमुकुंद आचार्य ने मजारों को तत्काल हटाने की मांग की है, जबकि कांग्रेस विधायक अमीन कागजी ने दावा किया कि ये मजारें 165 साल पुरानी हैं। जयपुर शहर की सांसद मंजू शर्मा ने कागजी के दावों पर सवाल उठाते हुए सबूत सार्वजनिक करने की चुनौती दी। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने भी मजारों के निर्माण का विरोध किया है, जिससे मामला और तूल पकटा है।
धरोहर बचाओ समिति का रुख
धरोहर बचाओ संघर्ष समिति ने इस मुद्दे को लेकर कड़ा रुख अपनाया है। समिति ने मंगलवार को कॉलेज के बाहर हनुमान चालीसा का पाठ कर अपनी मांगों को बल दिया। भारत शर्मा ने कहा, "हम कॉलेज प्रशासन, जयपुर कलेक्टर, पुलिस कमिश्नर, और राजस्थान यूनिवर्सिटी के कुलपति से मिलकर ज्ञापन सौंपेंगे। यदि 18 जुलाई की रिपोर्ट में हमारी मांगों की अनदेखी हुई, तो हम सड़कों पर उतरेंगे।" उन्होंने इसे 'शैक्षणिक भूमि की पवित्रता और बेटियों की सुरक्षा' की लड़ाई करार दिया।
सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो
मामले की शुरुआत तब हुई, जब कॉलेज परिसर में मजारों का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। इसने धार्मिक और सामाजिक संगठनों का ध्यान खींचा। कुछ पूर्व छात्रों का कहना है कि पहले एक मजार थी, लेकिन अब तीन मजारें बन गई ।
जांच कमेटी की रिपोर्ट से यह स्पष्ट होने की उम्मीद है कि मजारें कितनी पुरानी हैं और इनका निर्माण कब और कैसे हुआ। यह विवाद न केवल कॉलेज प्रशासन बल्कि पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बना हुआ है। सभी की निगाहें अब 18 जुलाई की रिपोर्ट पर टिकी हैं, जो इस संवेदनशील मामले में प्रशासन के अगले कदम को तय करेगी। क्या यह विवाद शैक्षणिक संस्थानों की सांस्कृतिक संरचना और सुरक्षा को लेकर नए दिशानिर्देश स्थापित करेगा, यह देखना बाकी है।