राजस्थान में लाश पर राजनीति और सड़क जाम करने का दौर समाप्त: 'मृतक शरीर के सम्मान अधिनियम' के नए नियम लागू, 24 घंटे में अंतिम संस्कार अनिवार्य

राजस्थान में अब शव को सड़क पर रखकर प्रदर्शन या राजनीति करना अपराध होगा। मृतक शरीर के सम्मान अधिनियम-2023 के नियम लागू, 24 घंटे में अंतिम संस्कार अनिवार्य, नहीं करने पर पुलिस खुद करवा सकेगी। प्रदर्शन करने, शव देने या राजनीतिक उपयोग करने पर परिजनों-नेताओं को 1 से 5 साल तक जेल और जुर्माना।

Dec 7, 2025 - 12:35
राजस्थान में लाश पर राजनीति और सड़क जाम करने का दौर समाप्त: 'मृतक शरीर के सम्मान अधिनियम' के नए नियम लागू, 24 घंटे में अंतिम संस्कार अनिवार्य

जयपुर। राजस्थान में अब मृतक के शव को सड़क पर रखकर विरोध प्रदर्शन करना, लाश के साथ राजनीति करना या बिना किसी उचित कारण के अंतिम संस्कार में देरी करना अपराध माना जाएगा। राज्य सरकार ने पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के कार्यकाल में बने 'राजस्थान मृतक शरीर के सम्मान अधिनियम, 2023' के नियमों को औपचारिक रूप से अधिसूचित (नोटिफाई) कर दिया है। इन नियमों के लागू होने से अब न केवल प्रदर्शनकारी या राजनीतिक नेता, बल्कि परिजन भी इस कानून के दायरे में आ जाएंगे। उल्लंघना करने पर 1 से 5 साल तक की सश्रम कारावास और भारी जुर्माने की सजा का प्रावधान है।इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य मृतकों के सम्मान की रक्षा करना और सड़कों पर शव रखकर होने वाले अवैध प्रदर्शनों को रोकना है। अब तक राजस्थान में चिकित्सा सुविधाओं की कमी, दुर्घटनाओं या अन्य कारणों से मौत होने पर परिजन अक्सर शव को अस्पतालों या सड़कों पर रखकर विरोध जताते रहे हैं। इससे यातायात बाधित होता है, सार्वजनिक व्यवस्था प्रभावित होती है और मृतक का अपमान होता है। नए नियमों से ऐसी घटनाओं पर लगाम लगेगी, और पुलिस को त्वरित कार्रवाई का अधिकार मिलेगा।

अधिनियम के प्रमुख प्रावधान: क्या है नया नियम? 24 घंटे के अंदर अंतिम संस्कार अनिवार्य: मृत्यु के प्रमाण-पत्र जारी होने के 24 घंटे के भीतर शव का अंतिम संस्कार या दाह संस्कार किया जाना जरूरी होगा। यदि परिजन या जिम्मेदार व्यक्ति ऐसा नहीं करते, तो जिला मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी शव को अपने कब्जे में ले सकता है और सरकारी खर्चे पर अंतिम संस्कार करवा सकता है। 

शव रखकर प्रदर्शन पर सख्ती: सड़क, सार्वजनिक स्थल या सरकारी भवनों पर शव रखकर कोई विरोध प्रदर्शन, धरना या जुलूस निकालना पूरी तरह प्रतिबंधित है। ऐसा करने वाले व्यक्ति को 1 से 3 साल की जेल और 50,000 रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। यदि यह राजनीतिक लाभ के लिए किया जाता है, तो सजा 5 साल तक बढ़ाई जा सकती है।

परिजनों की जिम्मेदारी: मृतक के परिजनों को शव प्राप्त करने के बाद तुरंत अंतिम संस्कार की व्यवस्था करनी होगी। यदि वे जानबूझकर शव को प्रदर्शन के लिए उपलब्ध कराते हैं या देरी करते हैं, तो उन्हें भी 1 साल की सश्रम कारावास और 25,000 रुपये का जुर्माना झेलना पड़ सकता है।

राजनीतिक दुरुपयोग पर कड़ी सजा: यदि कोई राजनीतिक दल, नेता या संगठन मृतक के शव का उपयोग राजनीतिक प्रचार, चुनावी लाभ या सामाजिक आंदोलन के लिए करता है, तो यह 'मृतक के सम्मान का अपमान' माना जाएगा। ऐसे मामलों में न्यूनतम 3 साल और अधिकतम 5 साल की सजा तथा 1 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।

ये प्रावधान 'राजस्थान मृतक शरीर के सम्मान अधिनियम, 2023' की धारा 4 से 8 के तहत परिभाषित हैं। अधिनियम के अनुसार, 'अंतिम संस्कार' में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई या अन्य धर्मों के अनुसार दाह-संस्कार, दफन या अन्य रीति-रिवाज शामिल हैं।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: गहलोत सरकार का योगदान यह अधिनियम पूर्व कांग्रेस सरकार के दौरान 2023 में विधानसभा में पारित हुआ था, जब अशोक गहलोत मुख्यमंत्री थे। उस समय राज्य में कई घटनाएं घटीं, जहां परिजनों ने चिकित्सा लापरवाही के आरोप लगाते हुए शवों को सड़कों पर रख दिया था। उदाहरण के लिए, 2022-23 में जोधपुर और उदयपुर में ऐसी घटनाएं सुर्खियां बनीं, जहां सैकड़ों लोग सड़कों पर उतर आए। गहलोत सरकार ने इसे मानवाधिकार और सार्वजनिक शांति का मुद्दा मानते हुए कानून बनाया।हालांकि, अधिनियम पारित होने के बाद नियमों का नोटिफिकेशन लंबित था। वर्तमान भाजपा सरकार ने दिसंबर 2025 में इन्हें अंततः लागू कर दिया। स्वास्थ्य मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा, "यह कदम मृतकों के सम्मान को सुनिश्चित करेगा और सड़क जाम की प्रवृत्ति को रोकेगा। अब परिजनों को चिकित्सा सहायता के लिए अलग-अलग मंचों का उपयोग करना होगा।"

कौन आएंगे कानून के दायरे में? प्रभावित पक्ष परिजन और परिवार: सबसे पहले प्रभावित परिजन होंगे। उन्हें अब शव प्राप्ति के तुरंत बाद दाह-संस्कार की जिम्मेदारी निभानी होगी। यदि आर्थिक तंगी या अन्य कारण से देरी हो, तो वे जिला प्रशासन से सहायता मांग सकते हैं, लेकिन प्रदर्शन का रास्ता बंद है। 

राजनीतिक नेता और दल: कई बार विपक्षी दल सरकार पर आरोप लगाने के लिए शवों का उपयोग करते रहे हैं। अब नेता भी सतर्क रहेंगे। उदाहरणस्वरूप, यदि कोई विधायक या सांसद शव यात्रा को राजनीतिक रैली में बदलता है, तो उसे व्यक्तिगत रूप से सजा का सामना करना पड़ेगा।

सामाजिक संगठन और प्रदर्शनकारी: एनजीओ या सामाजिक कार्यकर्ता जो न्याय की मांग में प्रदर्शन करते हैं, वे भी इस कानून से बंधे होंगे। हालांकि, शांतिपूर्ण तरीके से अधिकारियों से शिकायत दर्ज कराना वैध रहेगा।

पुलिस और प्रशासन: नियम लागू होने से पुलिस को शव कब्जे में लेने और अंतिम संस्कार कराने का अधिकार मिला है। जिला कलेक्टर को मामलों की निगरानी करनी होगी।

लागू होने के बाद संभावित चुनौतियां और समाधान नए नियमों से सकारात्मक बदलाव की उम्मीद है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता की कमी एक चुनौती हो सकती है। सरकार ने जिला स्तर पर जागरूकता अभियान चलाने का निर्देश दिया है। साथ ही, चिकित्सा सुविधाओं को मजबूत करने के लिए 'मुख्यमंत्री निशुल्क दवा योजना' के तहत अंतिम संस्कार सहायता कोष भी बढ़ाया जाएगा।वकीलों का कहना है कि यह कानून मौलिक अधिकारों (जैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) का उल्लंघन नहीं करता, क्योंकि यह केवल मृतकों के सम्मान से जुड़ा है। सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों में भी सड़क जाम प्रदर्शनों को असंवैधानिक माना गया है।