अब्दुल मलिक:"20 वर्षों से नदी पार कर बच्चों का भविष्य संवारने वाले केरल के गणित गुरु"
केरल के एक समर्पित गणित शिक्षक पिछले 20 वर्षों से हर दिन कडलुंडी नदी को तैरकर पार करते हैं, चाहे बारिश हो या धूप, ताकि बच्चों को शिक्षा दे सकें और उनके उज्ज्वल भविष्य का निर्माण कर सकें। उनकी यह प्रेरक यात्रा दृढ़ संकल्प, समर्पण और शिक्षा के प्रति उनके अटूट जुनून को दर्शाती है।

केरल के मलप्पुरम जिले के पडिंजत्तेमुरी गांव में रहने वाले गणित शिक्षक अब्दुल मलिक पिछले 20 वर्षों से अपने समर्पण और साहस की अनोखी मिसाल पेश कर रहे हैं। बारिश हो या तेज धूप, वे हर दिन कडालुंडी नदी को तैरकर पार करते हैं ताकि अपने स्कूल में बच्चों को पढ़ा सकें। एक रबर ट्यूब और प्लास्टिक बैग में सामान बांधकर वे इस खतरनाक सफर को अंजाम देते हैं। बच्चे उन्हें "ट्यूब मास्टर" कहकर पुकारते हैं। यह कहानी उनके जुनून, निष्ठा और बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए उनके अटूट संकल्प की गवाही देती है।
अब्दुल मलिक का साहसी सफर
40 वर्षीय अब्दुल मलिक एक प्राइमरी स्कूल में गणित पढ़ाते हैं। उनकी कहानी तब शुरू हुई जब उन्होंने अपनी शिक्षक की नौकरी शुरू की। स्कूल पहुंचने के लिए सड़क मार्ग से 24 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती थी, जिसमें तीन बसें बदलनी पड़ती थीं और 3 घंटे लगते थे। समय और मेहनत बचाने के लिए, एक सहकर्मी की सलाह पर, उन्होंने 100 मीटर चौड़ी कडालुंडी नदी को तैरकर पार करने का फैसला किया। इस रास्ते से वे मात्र 15 मिनट में स्कूल पहुंच जाते हैं।
हर सुबह, अब्दुल अपने कपड़े, किताबें और अन्य सामान एक प्लास्टिक बैग में बांधकर सिर पर रखते हैं और एक रबर ट्यूब के सहारे नदी पार करते हैं। नदी के उस पार पहुंचकर वे कपड़े बदलते हैं और स्कूल के लिए तैयार हो जाते हैं। 20 साल में उन्होंने एक भी दिन छुट्टी नहीं ली और न ही कभी स्कूल देर से पहुंचे। उनकी यह दिनचर्या बच्चों के लिए शिक्षा का दीया जलाए रखने का प्रतीक है।
कडालुंडी नदी को तैरना कोई आसान काम नहीं है। बारिश के मौसम में नदी का प्रवाह तेज हो जाता है, और कई बार पानी में सांप या अन्य खतरे भी होते हैं। फिर भी, अब्दुल का हौसला कभी नहीं डगमगाया। वे कहते हैं, "बच्चों का भविष्य मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण है। नदी का खतरा उससे बड़ा नहीं।" उनकी यह निष्ठा उन्हें न केवल एक शिक्षक, बल्कि एक सच्चा नायक बनाती है।
बच्चों और पर्यावरण के लिए योगदान
अब्दुल का योगदान केवल कक्षा तक सीमित नहीं है। उन्होंने नदी को साफ रखने के लिए अभियान शुरू किया और अपने छात्रों को इसके लिए प्रेरित किया। वे बच्चों के साथ मिलकर नदी से कचरा और प्लास्टिक हटाते हैं, जिससे पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी फैलता है। इसके अलावा, उन्होंने कई बच्चों को तैराकी सिखाई, जिससे वे स्वस्थ रहने और आत्मनिर्भर बनने का महत्व समझ सकें।
सामाजिक प्रभाव और सम्मान
अब्दुल की कहानी ने स्थानीय समुदाय और उससे आगे के लोगों को प्रेरित किया है। उनकी कहानी द हिंदू, योरस्टोरी, और रेडिफ.कॉम जैसे प्लेटफॉर्म्स पर छपी है। 2016 में तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता ने उन्हें उनके समर्पण के लिए सम्मानित किया। 2014 में उन्हें एक नाव दी गई थी, लेकिन वे अक्सर तैरकर ही स्कूल जाना पसंद करते हैं, क्योंकि यह उनकी दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है।
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तैराकी की उपलब्धि: अब्दुल अब तक लगभग 700 किलोमीटर तैर चुके हैं, जो इंग्लिश चैनल की दूरी के बराबर है।
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समय की बचत: सड़क मार्ग की 3 घंटे की यात्रा को उन्होंने 15 मिनट में बदल दिया।
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शिक्षा का जुनून: उनकी प्रेरणा से कई बच्चे तैराकी सीख चुके हैं और शिक्षा के महत्व को समझते हैं।
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पर्यावरण योद्धा: नदी की सफाई के उनके प्रयासों ने स्थानीय समुदाय को पर्यावरण के प्रति जागरूक किया है।
अब्दुल मलिक की कहानी हमें सिखाती है कि सच्चा समर्पण और मेहनत किसी भी बाधा को पार कर सकती है। बारिश, धूप या नदी का तेज प्रवाह, कुछ भी उनके इरादों को नहीं रोक सका। बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए अपनी जान जोखिम में डालकर हर दिन नदी तैरकर स्कूल जाने वाले इस शिक्षक की कहानी हर किसी के लिए प्रेरणा है। "ट्यूब मास्टर" अब्दुल मलिक केवल एक शिक्षक नहीं, बल्कि एक जीवंत उदाहरण हैं कि शिक्षा का प्रकाश कितना शक्तिशाली हो सकता है।