"73 की उम्र में हनुमान सिंह इंदा ने PHD कर साबित किया, शिक्षा प्राप्त करने की कोई उम्र नहीं"

जोधपुर के हनुमान सिंह इंदा ने 73 साल की उम्र में अर्थशास्त्र में पीएचडी हासिल कर एक प्रेरणादायक मिसाल कायम की है। 41 साल तक विद्यार्थियों को पढ़ाने के बाद, रिटायरमेंट को उन्होंने नई शुरुआत बनाया और अपने जुनून व मेहनत से यह साबित किया कि शिक्षा की कोई उम्र नहीं होती। उनकी कहानी विद्यार्थियों और समाज के लिए प्रेरणा है कि लगन से कोई भी लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।

Jul 16, 2025 - 17:27
Jul 16, 2025 - 17:28
"73 की उम्र में हनुमान सिंह इंदा ने PHD कर साबित किया, शिक्षा प्राप्त करने की कोई उम्र नहीं"

जोधपुर के हनुमान सिंह इंदा ने अपनी जिंदगी की एक ऐसी उपलब्धि हासिल की है, जो न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि यह भी साबित करती है कि शिक्षा और ज्ञान अर्जन की कोई उम्र सीमा नहीं होती। 73 साल की उम्र में उन्होंने अर्थशास्त्र में PHD पूरी कर एक अनुकरणीय मिसाल कायम की है। यह उपलब्धि इसलिए और भी खास है, क्योंकि हनुमान सिंह ने 41 साल तक स्कूल और कॉलेज में शिक्षक विद्यार्थियों को अर्थशास्त्र पढ़ाया और रिटायरमेंट के बाद भी अपने सीखने के जुनून को बरकरार रखा।

शिक्षा के प्रति समर्पण और लंबा सफर:

हनुमान सिंह इंदा का जीवन शिक्षा के प्रति उनके अटूट समर्पण का जीवंत उदाहरण है। उन्होंने अपने करियर के 41 साल विद्यार्थियों को पढ़ाने में बिताए, जहां उन्होंने न केवल अर्थशास्त्र जैसे जटिल विषय को सरल बनाकर समझाया, बल्कि अनगिनत छात्रों को अपने सपनों को पूरा करने के लिए प्रेरित भी किया। लेकिन उनकी अपनी पढ़ाई की भूख कभी कम नहीं हुई। रिटायरमेंट, जो आमतौर पर लोगों के लिए आराम का समय माना जाता है, हनुमान सिंह के लिए एक नई शुरुआत बन गया। उन्होंने फैसला किया कि वह अपने ज्ञान को और गहरा करेंगे और पीएचडी की डिग्री हासिल करेंगे।

 73 की उम्र में पीएचडी: एक असाधारण उपलब्धि

73 साल की उम्र में PHD करना कोई आसान काम नहीं है। इस उम्र में जहां लोग शारीरिक और मानसिक चुनौतियों का सामना करते हैं, वहीं हनुमान सिंह ने दृढ़ संकल्प और मेहनत के बल पर यह साबित किया कि अगर इच्छाशक्ति हो तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं। अर्थशास्त्र जैसे विषय में पीएचडी के लिए गहन शोध, अध्ययन और समर्पण की जरूरत होती है। हनुमान सिंह ने न केवल इस चुनौती को स्वीकार किया, बल्कि इसे पूरे उत्साह के साथ पूरा भी किया। उनकी इस उपलब्धि ने जोधपुर ही नहीं, बल्कि पूरे देश में लोगों को प्रेरित किया है।

प्रेरणा का स्रोत: उम्र केवल एक संख्या है

हनुमान सिंह इंदा की कहानी हर उस व्यक्ति के लिए एक प्रेरणा है, जो यह सोचता है कि उम्र या परिस्थितियां शिक्षा में बाधा बन सकती हैं। उनकी जिंदगी का यह अध्याय हमें सिखाता है कि सीखने की प्रक्रिया कभी खत्म नहीं होती। चाहे आप किसी भी उम्र में हों, अगर आपके मन में जुनून और लगन है, तो आप कोई भी मुकाम हासिल कर सकते हैं। हनुमान सिंह ने यह दिखाया कि रिटायरमेंट जिंदगी का अंत नहीं, बल्कि नए सपनों को पूरा करने का एक अवसर हो सकता है।

विद्यार्थियों और समाज के लिए संदेश:

हनुमान सिंह की इस उपलब्धि का संदेश साफ है: शिक्षा का रास्ता कभी बंद नहीं होता। उनकी कहानी उन विद्यार्थियों के लिए खासतौर पर प्रेरणादायक है, जो पढ़ाई में आने वाली चुनौतियों से हार मान लेते हैं। उनकी मेहनत और दृढ़ता हमें यह विश्वास दिलाती है कि अगर आप अपने लक्ष्य के प्रति ईमानदार हैं, तो उम्र, समय या संसाधनों की कमी आपको रोक नहीं सकती। इसके अलावा, हनुमान सिंह ने यह भी दिखाया कि शिक्षक न केवल दूसरों को सिखाते हैं, बल्कि खुद भी ताउम्र सीखने के लिए प्रतिबद्ध रह सकते हैं।

हनुमान सिंह इंदा ने जोधपुर के लिए एक गौरवपूर्ण पल रचा है। उनकी इस उपलब्धि ने न केवल उनके परिवार और स्थानीय समुदाय को गर्व से भर दिया है, बल्कि यह देश भर के उन लोगों के लिए एक प्रेरणा बन गई है, जो उम्र के किसी भी पड़ाव पर अपने सपनों को पूरा करना चाहते हैं। उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि शिक्षा और ज्ञान की तलाश में लगन और मेहनत ही सबसे बड़ा हथियार है।

उनकी यह उपलब्धि न केवल व्यक्तिगत जीत है, बल्कि समाज के लिए एक ऐसा उदाहरण है, जो हमें यह विश्वास दिलाता है कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती। हनुमान सिंह इंदा आज हर विद्यार्थी और सपने देखने वाले के लिए एक प्रेरणा का प्रतीक बन चुके हैं।