*वक़्फ़ संशोधन बिल: सुधार की राह या सियासी भंवर? नया कानून, संसद में हंगामा और नेताओं की जुबानी जंग*

*वक़्फ़ संशोधन बिल: सुधार की राह या सियासी भंवर? नया कानून, संसद में हंगामा और नेताओं की जुबानी जंग*
**नई दिल्ली, 3 अप्रैल 2025**: वक़्फ़, जो कभी इस्लामिक परंपरा में धार्मिक दान का प्रतीक था, आज भारत की संसद और सियासत में तूफान का केंद्र बन चुका है। 2 अप्रैल को लोकसभा में "वक़्फ़ (संशोधन) विधेयक, 2024" 288-232 वोटों से पास हुआ। इस बिल को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच 12 घंटे की तीखी बहस, कागज फाड़ने की घटना और बड़े नेताओं के बयानों ने इसे देश की सबसे चर्चित खबर बना दिया। यह बिल अब सिर्फ कानून नहीं, बल्कि भावनाओं, अधिकारों और शासन का सवाल बन गया है। आइए, इस खबर को हर पहलू से विस्तार से समझते हैं।
#### क्या है वक़्फ़?
एक गहराई से नजर वक़्फ़ इस्लामिक कानून का वह सिद्धांत है, जिसमें कोई मुस्लिम अपनी संपत्ति—जमीन, मकान, दुकान, खेत या अन्य संसाधन—को स्थायी रूप से धार्मिक, सामाजिक या परोपकारी कार्यों के लिए दान कर देता है। एक बार वक़्फ़ घोषित होने के बाद यह संपत्ति न तो बेची जा सकती है, न हस्तांतरित की जा सकती है, और न ही उस पर व्यक्तिगत दावा किया जा सकता है। इसका उद्देश्य मस्जिदों, मदरसों, कब्रिस्तानों, अनाथालयों, अस्पतालों और गरीबों की मदद जैसे कार्यों को बढ़ावा देना है। भारत में वक़्फ़ संपत्तियों की संख्या 8,72,351 है, जो 9 लाख एकड़ से ज्यादा क्षेत्र में फैली हैं। इनकी अनुमानित कीमत 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक है। यह आंकड़ा वक़्फ़ बोर्ड को भारतीय रेलवे और सशस्त्र बलों के बाद देश का तीसरा सबसे बड़ा भूस्वामी बनाता है। दिल्ली की जामा मस्जिद, मुंबई का हाजी अली दरगाह और लखनऊ की बड़ी इमामबाड़ा जैसी ऐतिहासिक संपत्तियां इसके उदाहरण हैं। लेकिन इन संपत्तियों का प्रबंधन हमेशा से विवादों में रहा है। भ्रष्टाचार, अतिक्रमण, फर्जी दस्तावेज और पारदर्शिता की कमी की शिकायतें सालों से सुर्खियों में हैं, जिसने इसे कानूनी और राजनीतिक बहस का मुद्दा बना दिया।
#### समय-समय पर हुए संशोधन: एक लंबा और जटिल सफर
वक़्फ़ को कानूनी रूप देने की शुरुआत ब्रिटिश काल से हुई। इसका इतिहास और संशोधन इस प्रकार हैं:
- **1913**: "मुसलमान वक़्फ़ वैलिडेटिंग एक्ट" लाया गया। इसने वक़्फ़ बैनाम (परिवार के लिए बनाए गए वक़्फ़) को वैधता दी, जिससे मुस्लिम परिवार अपनी संपत्ति को संरक्षित कर सकें।
- **1923**: "मुसलमान वक़्फ़ एक्ट" ने संपत्तियों के पंजीकरण को अनिवार्य किया। इसका मकसद दुरुपयोग पर नजर रखना और व्यवस्था को पारदर्शी बनाना था।
- **1954**: "वक़्फ़ एक्ट" के तहत केंद्रीय वक़्फ़ परिषद और राज्य वक़्फ़ बोर्डों की स्थापना हुई। यह वक़्फ़ को संगठित करने का पहला बड़ा कदम था, जिसमें प्रशासनिक ढांचा तैयार किया गया।
- **1995**: सबसे व्यापक बदलाव आया। "वक़्फ़ एक्ट, 1995" ने पुराने सभी कानूनों को निरस्त कर दिया। वक़्फ़ बोर्ड को मजबूत अधिकार मिले, जैसे धारा 40 के तहत किसी भी संपत्ति को बिना पुख्ता सबूत के वक़्फ़ घोषित करने की शक्ति। साथ ही, विवाद निपटारे के लिए ट्रिब्यूनल्स बनाए गए। लेकिन यह धारा बाद में विवादों का कारण बनी, क्योंकि कई निजी संपत्तियों पर बोर्ड ने दावा ठोक दिया।
- **2013**: यूपीए सरकार ने छोटे संशोधन किए। इसमें संपत्तियों के ऑडिट और अतिक्रमण रोकने के नियम जोड़े गए, लेकिन बड़े सुधारों की कमी रही।
इन संशोधनों के बावजूद, वक़्फ़ संपत्तियों का प्रबंधन एक चुनौती बना रहा। उत्तर प्रदेश में 1.5 लाख संपत्तियों में से 30% पर अतिक्रमण की रिपोर्ट्स हैं, तो दिल्ली में कई कब्रिस्तानों की जमीन पर अवैध निर्माण हो चुके हैं। इन समस्याओं ने नए बदलावों की मांग को तेज किया।
#### क्या हैं नया प्रस्ताव? वक़्फ़ में क्रांति का दावा
8 अगस्त, 2024 को केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने लोकसभा में "वक़्फ़ (संशोधन) विधेयक, 2024" और "मुसलमान वक़्फ़ (निरसन) विधेयक, 2024" पेश किया। इसे अब "समेकित वक़्फ़ प्रबंधन, सशक्तिकरण, दक्षता और विकास अधिनियम, 1995" (UMEED) नाम दिया गया है। इस बिल में 44 संशोधन प्रस्तावित हैं, जो वक़्फ़ के प्रबंधन को पूरी तरह बदलने का दावा करते हैं। प्रमुख प्रावधान इस प्रकार हैं:
- **समावेशी प्रतिनिधित्व**: केंद्रीय वक़्फ़ परिषद और राज्य वक़्फ़ बोर्डों में कम से कम दो महिलाएं और गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति होगी।
- **अलग बोर्ड की व्यवस्था**: बोहरा और आगाखानी जैसे विशिष्ट मुस्लिम समुदायों के लिए अलग वक़्फ़ बोर्ड बनाए जाएंगे।
- **संपत्ति सर्वे का नया ढांचा**: अब कलेक्टर संपत्तियों का सर्वे करेंगे, ताकि विवादित दावों पर लगाम लगे और निष्पक्षता सुनिश्चित हो।
- **धारा 40 का अंत**: बोर्ड की वह शक्ति खत्म होगी, जिसके तहत वह मनमाने ढंग से किसी भी संपत्ति को वक़्फ़ घोषित कर सकता था।
- **नया ट्रिब्यूनल ढांचा**: इस्लामिक विद्वानों की जगह जिला न्यायाधीश और संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी विवादों का निपटारा करेंगे।
- **डिजिटल क्रांति**: सभी वक़्फ़ संपत्तियों का एक केंद्रीकृत डिजिटल पोर्टल बनेगा, जिसमें पंजीकरण, ऑडिट और विवादों का पूरा डेटा उपलब्ध होगा।
- **कठोर सजा का प्रावधान**: संपत्ति के दुरुपयोग या अतिक्रमण पर सजा और भारी जुर्माने लगाए जाएंगे।
- **पारदर्शी दान प्रक्रिया**: संपत्ति को वक़्फ़ बनाने के लिए सख्त दस्तावेजीकरण और सत्यापन अनिवार्य होगा।
संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी), जिसके अध्यक्ष बीजेपी सांसद जगदंबिका पाल थे, ने 99 बैठकों में 1,200 से ज्यादा सुझावों पर विचार किया और 14 संशोधनों को अंतिम रूप दिया।
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क्यों जरूरी है संशोधन?
सरकार का पक्ष सरकार का दावा है कि वक़्फ़ संपत्तियों का दशकों से दुरुपयोग हो रहा है। किरेन रिजिजू ने कहा, "कई संपत्तियां माफियाओं, नेताओं और बिचौलियों के कब्जे में हैं। ऑडिट का कोई हिसाब नहीं, आय का पता नहीं। यह बिल पारदर्शिता लाएगा और मुस्लिम समुदाय के हाशिए पर पड़े वर्गों को सशक्त करेगा।" बीजेपी का तर्क है कि धारा 40 ने बोर्ड को अनियंत्रित शक्ति दी थी, जिसके चलते निजी संपत्तियों पर भी दावे किए गए।
क्यों हो रहा है संशोधन का विरोध? विपक्ष की आपत्तियां
विपक्ष ने इस बिल को "मुस्लिम विरोधी" और "संविधान के खिलाफ" करार दिया है। AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, "यह अनुच्छेद 14 (समानता), 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) और 26 (धार्मिक मामलों के प्रबंधन का अधिकार) का उल्लंघन है। गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति धार्मिक स्वायत्तता पर हमला है।" सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने इसे "बीजेपी की सांप्रदायिक सियासत" और "वोट बैंक की चाल" बताया। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा, "यह अल्पसंख्यकों के अधिकारों को कुचलने की कोशिश है। सरकार को इसे वापस लेना चाहिए।"
विपक्ष का आरोप है कि यह बिल वक़्फ़ संपत्तियों को सरकारी नियंत्रण में लाने की साजिश है। तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोइत्रा ने कहा, "यह धार्मिक संस्थानों पर नौकरशाही का कब्जा है।" विपक्षी नेताओं का मानना है कि इससे वक़्फ़ बोर्ड की स्वतंत्रता खत्म हो जाएगी।
क्या नुकसान, क्या नफा? दोनों पक्षों का विश्लेषण
**नफा**:
- **पारदर्शिता में सुधार**: डिजिटल पोर्टल और ऑडिट से संपत्तियों का सही रिकॉर्ड बनेगा, भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी।
- **सशक्तिकरण**: महिलाओं और हाशिए के समुदायों को बोर्ड में प्रतिनिधित्व मिलेगा।
- **अतिक्रमण पर रोक**: कलेक्टर की निगरानी और सजा के प्रावधान से संपत्तियों की सुरक्षा बढ़ेगी।
- **निष्पक्ष न्याय**: ट्रिब्यूनल में प्रशासनिक और न्यायिक अधिकारियों की मौजूदगी से फैसले तटस्थ होंगे।
**नुकसान**:
- **धार्मिक भावनाओं पर चोट**: गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति से मुस्लिम समुदाय में नाराजगी हो सकती है।
- **स्वायत्तता का ह्रास**: बोर्ड के अधिकार कम होने से उसकी स्वतंत्रता प्रभावित होगी।
- **नए विवादों का खतरा**: संपत्ति सर्वे से पुराने दावों पर झगड़े बढ़ सकते हैं।
- **राजनीतिक तनाव**: यह मुद्दा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा दे सकता है।
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बहस के दौरान ओवैसी की प्रति फाड़ने की घटना और विपक्ष के वॉकआउट की धमकी ने माहौल को गरमा दिया। वोटिंग में एनडीए की जीत हुई, लेकिन तनाव बरकरार रहा।
#### अब आगे क्या होता? राज्यसभा और उससे आगे
लोकसभा से पास होने के बाद बिल राज्यसभा में जाएगा, जहां एनडीए के 293 सांसदों का बहुमत इसे पारित करा सकता है। अगर यह कानून बनता है, तो अगले छह महीनों में डिजिटल पोर्टल शुरू होगा और एक साल में संपत्ति सर्वे पूरा होने की उम्मीद है। लेकिन विपक्ष ने इसे लागू न होने देने की चेतावनी दी है। ओवैसी ने कहा, "हम इसे कोर्ट में चुनौती देंगे।"
क्या यह बिल वक़्फ़ को आधुनिक और पारदर्शी बनाएगा, या यह सियासी और कानूनी जंग का नया मैदान बनेगा? यह सवाल हर किसी के जेहन में है। सरकार इसे लागू करने के लिए प्रतिबद्ध दिख रही है, लेकिन विपक्ष का रुख इसे आसान नहीं बनने देगा।
*एक अधूरी कहानी का नया अध्याय*
वक़्फ़ संशोधन बिल अब सिर्फ कानून नहीं, बल्कि विश्वास, शासन और सियासत का जटिल मिश्रण बन चुका है। लोकसभा से शुरू हुई यह जंग अब राज्यसभा और उससे आगे तक जाएगी। यह सुधार की राह बनेगा या सियासी भंवर में फंसेगा, यह आने वाला वक्त तय करेगा। फिलहाल, यह खबर देश की नजरों में है—हर नया दिन इसके साथ नया मोड़ ला रहा है।