क्यों है आज का दिन खास,"गौ-बछड़े" की पूजा के साथ माताएं कर रहीं पुत्रों की दीर्घायु की कामना.

जोधपुर में आज बछ बारस (गोवत्स द्वादशी) का पर्व श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा है। माताएं गाय और बछड़े की पूजा कर अपने पुत्रों की लंबी आयु और सुख-समृद्धि की प्रार्थना कर रही हैं। इस दिन चाकू से कटी सब्जियां और गाय का दूध वर्जित है, जबकि बाजरे की रोटी, मूंग, और मोठ का उपयोग होता है। माताएं अपने बच्चों को तिलक लगाकर लड्डू खिलाती हैं। यह पर्व हिंदू धर्म में गाय की पवित्रता और मातृ-पुत्र स्नेह का प्रतीक है, जो भगवान श्रीकृष्ण और पर्यावरण संरक्षण से भी जुड़ा है।

Aug 20, 2025 - 10:42
क्यों है आज का दिन खास,"गौ-बछड़े" की पूजा के साथ माताएं कर रहीं पुत्रों की दीर्घायु की कामना.

जोधपुर, 20 अगस्त 2025: सूर्य नगरी जोधपुर में आज बछ बारस (गोवत्स द्वादशी) का पर्व धूमधाम और श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा है। यह पर्व भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है, जो इस वर्ष 20 अगस्त को पड़ रहा है। इस अवसर पर माताएं अपने पुत्रों की लंबी आयु, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए गाय और बछड़े की पूजा कर रही हैं। इस दिन गाय के दूध और चाकू से कटी सब्जियों का सेवन वर्जित है, जबकि बाजरे की रोटी, मूंग, मोठ और अंकुरित अनाज का उपयोग भोजन में किया जाता है। साथ ही, माताएं अपने पुत्रों को तिलक लगाकर लड्डू खिलाने की परंपरा का भी पालन कर रही हैं। 

बछ बारस का महत्व और हिंदू धर्म में स्थान

हिंदू धर्म में बछ बारस का विशेष महत्व है, क्योंकि यह पर्व गाय और बछड़े को समर्पित है, जिन्हें सनातन धर्म में पवित्र और पूजनीय माना जाता है। पुराणों के अनुसार, गाय के शरीर में 33 कोटि देवी-देवताओं का वास माना गया है। गाय की पीठ पर ब्रह्मा, गले में विष्णु, मुख में रुद्र, और रोम-रोम में समस्त तीर्थों का निवास बताया जाता है। इस दिन गाय और बछड़े की पूजा करने से भगवान श्रीकृष्ण विशेष रूप से प्रसन्न होते हैं, क्योंकि उनका जीवन गायों और गोपालन के इर्द-गिर्द रहा। श्रीकृष्ण को "गोपाल" के नाम से भी जाना जाता है, जो गायों के प्रति उनके प्रेम को दर्शाता है। 

 मान्यता है कि बछ बारस का व्रत और पूजा करने से माताओं को अपने पुत्रों की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और सुरक्षा का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह व्रत न केवल पुत्रवती माताओं के लिए, बल्कि पुत्र प्राप्ति की इच्छा रखने वाली महिलाओं के लिए भी शुभ माना जाता है। साथ ही, इस दिन गाय की सेवा करने से समस्त तीर्थों के दर्शन और बड़े-बड़े यज्ञों के समान पुण्य प्राप्त होता है।

पूजा विधि: गाय और बछड़े का पूजन

बछ बारस की पूजा में विशेष विधि-विधान का पालन किया जाता है:

स्नान और तैयारी: माताएं सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करती हैं। इसके बाद गाय और बछड़े को स्नान कराया जाता है और उन्हें नए वस्त्र या चुनरी ओढ़ाई जाती है। 

तिलक और सजावट: गाय और बछड़े के माथे पर चंदन का तिलक लगाया जाता है और उनके गले में फूलों की माला पहनाई जाती है।

मंत्र और प्रक्षालन: तांबे के पात्र में अक्षत, तिल, जल, सुगंध और फूल मिलाकर निम्न मंत्र के साथ गाय के पैर धोए जाते हैं

प्रसाद अर्पण: गाय और बछड़े को बाजरे की रोटी (सोगरा), भीगे हुए चने, मूंग, मोठ, गुड़ और हरे फल अर्पित किए जाते हैं। ये प्रसाद पोषक और धार्मिक रूप से शुभ माने जाते हैं।

कथा और आरती: पूजा के बाद बछ बारस की पौराणिक कथा सुनी जाती है, जिसमें गाय और बछड़े की महिमा का वर्णन होता है। इसके बाद गाय की आरती की जाती है।

पुत्रों को लड्डू: माताएं अपने पुत्रों को तिलक लगाकर लड्डू खिलाती हैं, जो इस पर्व की विशेष परंपरा है। 

पौराणिक कथा: बछ बारस की उत्पत्ति

बछ बारस की एक प्रचलित कथा के अनुसार, प्राचीन समय में सुवर्णपुर नगर में देवदानी नाम का राजा रहता था। उसकी दो रानियां, सीता और गीता, थीं। सीता को भैंस से और गीता को गाय और बछड़े से प्रेम था। एक दिन भैंस ने सीता से शिकायत की कि गीता उससे ईर्ष्या करती है। सीता ने भैंस को खुश करने के लिए गीता के बछड़े को गेहूं में दबा दिया। अगले दिन गोवत्स द्वादशी थी। भैंस ने सुझाव दिया कि गाय और बछड़े की पूजा करने और गाय के दूध का त्याग करने से पाप नष्ट हो जाएगा। ऐसा करने पर बछड़ा जीवित हो गया। तभी से इस दिन गाय-बछड़े की पूजा की परंपरा शुरू हुई। 

 एक अन्य कथा में, एक सास ने अपनी बहू से "गंवलिया और जंवलिया" पकाने को कहा। नादान बहू ने गाय के बछड़ों को काटकर पकाने की भूल कर दी। सास ने भगवान से प्रार्थना की, और उनकी कृपा से बछड़े जीवित हो गए। इस घटना ने बछ बारस के महत्व को और बढ़ाया।

भोजन और परहेज

इस दिन गाय का दूध, दही, घी और गेहूं से बने पदार्थों का सेवन नहीं किया जाता। इसके बजाय भैंस या बकरी के दूध का उपयोग होता है। भोजन में बाजरे की रोटी (सोगरा), अंकुरित चना, मूंग, मोठ, और बेसन से बने व्यंजन जैसे कढ़ी, पकौड़े और मिठाई खाई जाती है। चाकू से कटी सब्जियों और सुई से सिले वस्त्रों का उपयोग भी वर्जित है। 

जोधपुर में उत्साह

जोधपुर के चण्डकावाड़ी, नया दरवाजा, काठड़ियों का चौक, लोहिया चौक और अन्य क्षेत्रों में महिलाएं सुबह से ही गोशालाओं और घरों के बाहर गाय-बछड़े की पूजा कर रही हैं। कई महिलाएं इस दिन व्रत रखकर सूर्य और तुलसी को जल अर्पित करती हैं। पूजा के बाद कथा सुनकर और पुत्रों को लड्डू खिलाकर उत्सव को पूर्ण किया जाता है। कुछ स्थानों पर गोबर से कुएं का प्रतीक बनाकर उसकी पूजा की जाती है। 

उद्यापन की परंपरा

जिस वर्ष पुत्र का जन्म हो या उसकी शादी हो, उस वर्ष बछ बारस का उद्यापन विशेष रूप से किया जाता है। उद्यापन में 13 महिलाओं और एक साक्षीदार को भोजन कराया जाता है। थाली में भीगे हुए मूंग, मोठ, बाजरा, खीरे के टुकड़े, और साड़ी-ब्लाउज जैसे उपहार रखकर सास को भेंट किए जाते हैं। 

बछ बारस का पर्व हिंदू धर्म में गाय की महिमा और मातृ-पुत्र स्नेह का प्रतीक है। जोधपुर में यह पर्व श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जा रहा है, जहां माताएं अपने बच्चों की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए गाय और बछड़े की पूजा कर रही हैं। यह पर्व न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से भी महत्वपूर्ण है, जो गाय के प्रति सम्मान और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है।