अमित शाह ने पेश किया गंभीर आरोपों में पद से हटाने वाला विधेयक, विपक्ष ने बताया लोकतंत्र के खिलाफ.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में तीन विधेयक पेश किए, जिनके तहत गंभीर आपराधिक आरोपों (5 साल से अधिक सजा वाले) में 30 दिन तक हिरासत में रहने वाले प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्रियों को पद से हटा दिया जाएगा। शाह ने अपने गुजरात मंत्री पद से इस्तीफे का उदाहरण देकर राजनीति में शुचिता और भ्रष्टाचार रोकने की वकालत की। विपक्ष, जिसमें कांग्रेस, सपा, आरजेडी, और ममता बनर्जी शामिल हैं, ने इसे लोकतंत्र के खिलाफ बताया। लोकसभा में हंगामे के कारण कार्यवाही स्थगित हुई।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 20 अगस्त 2025 को लोकसभा में तीन महत्वपूर्ण विधेयकों को पेश किया, जिनका उद्देश्य गंभीर आपराधिक आरोपों में गिरफ्तार होने वाले प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों और केंद्र शासित प्रदेशों के मंत्रियों को पद से हटाने के लिए कानूनी ढांचा प्रदान करना है। इन विधेयकों में शामिल हैं: संविधान (130वां संशोधन) विधेयक 2025, केंद्र शासित प्रदेश सरकार (संशोधन) विधेयक 2025, और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक 2025। इनके तहत, यदि कोई प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री गंभीर आपराधिक मामले (5 साल या उससे अधिक की सजा वाले) में 30 दिनों तक हिरासत में रहता है, तो 31वें दिन उसे स्वतः पद से हटा दिया जाएगा। हालांकि, हिरासत से रिहा होने पर पुनर्नियुक्ति संभव होगी।
अमित शाह का तर्क और व्यक्तिगत उदाहरण:
अमित शाह ने इन विधेयकों को पेश करते हुए राजनीति में शुचिता (नैतिकता) और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने अपना उदाहरण देते हुए कहा कि जब वे गुजरात के गृह मंत्री थे, तब उन पर आरोप लगे थे। उन्होंने गिरफ्तारी से पहले ही नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे दिया था और अदालत द्वारा निर्दोष साबित होने के बाद ही दोबारा पद संभाला। शाह ने कहा कि यह विधेयक भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण कदम है और यह सुनिश्चित करेगा कि जनप्रतिनिधि अपनी जिम्मेदारी से भाग न सकें। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इन विधेयकों को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेजा जाएगा, जिसमें लोकसभा और राज्यसभा के सांसद शामिल होंगे, ताकि इस पर व्यापक चर्चा हो सके।
विपक्ष का विरोध:
इन विधेयकों को लेकर विपक्ष ने तीखा विरोध जताया है। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी (सपा), राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने इसे लोकतंत्र के खिलाफ बताया। कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा कि संविधान का मूल ढांचा "न्याय का शासन" (Rule of Law) कहता है कि कोई व्यक्ति तब तक निर्दोष है, जब तक उसका अपराध सिद्ध न हो। ओवैसी ने तर्क दिया कि यह विधेयक शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन करता है और कार्यकारी एजेंसियों को तुच्छ आरोपों के आधार पर मनमानी शक्ति देता है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी इन विधेयकों की आलोचना की। उन्होंने कहा कि यह विधेयक विपक्षी सरकारों के खिलाफ हथियार के रूप में इस्तेमाल हो सकता है और यह "सुपर इमरजेंसी" की ओर कदम है, जो देश में लोकतंत्र को खत्म कर देगा। कांग्रेस के उपनेता गौरव गोगोई ने इसे बिहार में राहुल गांधी की "वोट अधिकार यात्रा" से ध्यान भटकाने की साजिश करार दिया।
लोकसभा में हंगामा:
इन विधेयकों के विरोध में लोकसभा में जमकर हंगामा हुआ। कुछ विपक्षी सांसदों ने विधेयक की प्रतियां फाड़कर गृह मंत्री अमित शाह की ओर फेंकी, हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि यह किन सांसदों ने किया। हंगामे के कारण लोकसभा की कार्यवाही दोपहर 3 बजे तक स्थगित कर दी गई।
पृष्ठभूमि और विधेयकों की आवश्यकता:
केंद्र सरकार का कहना है कि वर्तमान संविधान और केंद्र शासित प्रदेश अधिनियम, 1963 में गंभीर आपराधिक आरोपों में गिरफ्तार मंत्रियों या मुख्यमंत्रियों को हटाने का कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है। उदाहरण के तौर पर, दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, जिन्हें 2024 में शराब घोटाले में गिरफ्तार किया गया था, ने जेल से सरकार चलाई थी और जमानत के बाद ही इस्तीफा दिया। इसी तरह, तमिलनाडु के मंत्री वी. सेंथिल बालाजी और दिल्ली के पूर्व मंत्री सत्येंद्र जैन ने भी गिरफ्तारी के बावजूद लंबे समय तक अपने पद बरकरार रखे। इन मामलों ने राजनीति में नैतिकता और शुचिता का सवाल उठाया, जिसके जवाब में ये विधेयक लाए गए हैं।
संभावित प्रभाव:
इन विधेयकों ने राजनीतिक हलकों में तीव्र बहस छेड़ दी है। समर्थकों का मानना है कि यह भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ा कदम है, जबकि विपक्ष इसे सत्तारूढ़ दल द्वारा राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने का हथियार मानता है। विधेयकों को संयुक्त संसदीय समिति में भेजे जाने का प्रस्ताव इस मुद्दे पर और चर्चा की संभावना को दर्शाता है।