पहले वकील ने SC/ST एक्ट और फर्जी रेप केस दर्ज किए, फिर मिली उम्रकैद की सजा.
लखनऊ में वकील परमानंद गुप्ता की करतूत ने सबको चौंका दिया! अपने विरोधियों को फंसाने के लिए इस वकील ने एक दलित महिला के साथ मिलकर 29 फर्जी मुकदमे दर्ज कराए, जिनमें रेप और SC/ST एक्ट जैसे गंभीर आरोप शामिल थे। लेकिन सच सामने आया, और लखनऊ की SC/ST कोर्ट ने गुप्ता को उम्रकैद की सजा ठोक दी, साथ में 5.10 लाख का जुर्माना! कोर्ट ने दलित महिला को बरी किया, मगर चेतावनी दी कि कानून का दुरुपयोग बर्दाश्त नहीं होगा। यह मामला कानूनी पेशे की नैतिकता पर बड़ा सवाल खड़ा करता है और फर्जी केस दर्ज करने वालों के लिए सबक है!

लखनऊ की विशेष SC/ST अदालत ने एक सनसनीखेज मामले में वकील परमानंद गुप्ता को 29 फर्जी मुकदमे दर्ज कराने के लिए आजीवन कारावास और 5.10 लाख रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई है। यह ऐतिहासिक फैसला विशेष न्यायाधीश विवेकानंद शरण त्रिपाठी ने 19 अगस्त 2025 को सुनाया। गुप्ता ने अपने विरोधियों को फंसाने के लिए एक दलित महिला पूजा रावत के साथ मिलकर रेप, गैंगरेप और SC/ST एक्ट के तहत झूठे मुकदमे दर्ज कराए थे।
परमानंद गुप्ता ने अपनी पत्नी संगीता गुप्ता के ब्यूटी पार्लर में काम करने वाली पूजा रावत का इस्तेमाल कर अपने विरोधियों, खासकर विभूतिखंड निवासी अरविंद यादव और उनके भाई अवधेश यादव के खिलाफ संपत्ति विवाद में फर्जी मुकदमे दर्ज कराए। जांच में सामने आया कि गुप्ता ने 18 और पूजा ने 11 फर्जी मुकदमे दर्ज कराए, जिनमें ज्यादातर रेप, छेड़छाड़ और SC/ST एक्ट से संबंधित थे। इन मुकदमों का मकसद विरोधियों को कानूनी तौर पर परेशान करना और सरकारी मुआवजे का दुरुपयोग करना था।
जांच में खुलासा
मामले की जांच तत्कालीन एसीपी विभूतिखंड राधा रमण सिंह ने की। फरवरी 2025 में पूजा रावत द्वारा दर्ज एक गैंगरेप और SC/ST एक्ट के मुकदमे की जांच में पाया गया कि महिला के दावे झूठे थे। गवाहों और सबूतों ने साबित किया कि पूजा उस कथित घटनास्थल पर मौजूद ही नहीं थी। जांच से यह भी पता चला कि गुप्ता ने अपनी पत्नी और अरविंद यादव के परिवार के बीच चल रहे संपत्ति विवाद का फायदा उठाने के लिए पूजा को मोहरा बनाया। 4 अगस्त 2025 को पूजा रावत ने कोर्ट में प्रार्थना पत्र देकर स्वीकार किया कि वह गोरखपुर से लखनऊ रोजगार के लिए आई थी और गुप्ता दंपति के प्रभाव में आकर झूठे बयान देने को मजबूर हुई। उसने बताया कि गुप्ता के कहने पर उसने मजिस्ट्रेट के सामने झूठे बयान दिए। कोर्ट ने पूजा को सशर्त माफी दे दी, लेकिन भविष्य में कानून का दुरुपयोग करने पर कड़ी कार्रवाई की चेतावनी दी।
कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
विशेष न्यायाधीश विवेकानंद शरण त्रिपाठी ने गुप्ता को आपराधिक साजिश रचने और कानून का दुरुपयोग करने का दोषी ठहराया। कोर्ट ने कहा कि गुप्ता जैसे लोग न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुंचाते हैं और ऐसे अपराधियों को कठोर सजा देना जरूरी है। सजा के तहत:गुप्ता को धारा 217/49 BNSS के तहत 1 साल की साधारण जेल और 10,000 रुपये जुर्माना।
धारा 248/49 BNSS के तहत 10 साल की कठोर जेल और 2 लाख रुपये जुर्माना।
SC/ST एक्ट की धारा 3(2)(v) के तहत आजीवन कारावास और 3 लाख रुपये जुर्माना।
सभी सजाएं अलग-अलग चलेंगी। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि फैसले की प्रति बार काउंसिल ऑफ इंडिया और यूपी बार काउंसिल को भेजी जाए, ताकि गुप्ता जैसे वकीलों को अदालत में प्रैक्टिस करने से रोका जा सके। साथ ही, लखनऊ पुलिस कमिश्नर को निर्देश दिया गया कि फर्जी मुकदमों से संबंधित किसी भी सरकारी मुआवजे की वसूली की जाए।
कोर्ट की सख्त टिप्पणी
न्यायाधीश ने कहा, “यदि दूध से भरे महासागर में खट्टे पदार्थ की बूंदें गिरने से नहीं रोकी गईं, तो पूरा महासागर खराब हो जाएगा।” कोर्ट ने चेतावनी दी कि फर्जी मुकदमे न केवल निर्दोष लोगों का जीवन बर्बाद करते हैं, बल्कि असली पीड़ितों को न्याय से वंचित करते हैं। यह फैसला कानून के दुरुपयोग को रोकने और न्यायपालिका की पवित्रता बनाए रखने की दिशा में एक मिसाल है।
अभियोजन की भूमिका
विशेष लोक अभियोजक अरविंद मिश्रा और एसीपी राधा रमण सिंह की मजबूत पैरवी और जांच ने इस मामले को सुलझाने में अहम भूमिका निभाई। कोर्ट ने एसीपी की जांच को उच्च कोटि का बताया और ऐसे अधिकारियों को पुरस्कृत करने की सलाह दी।
सामाजिक संदेश
यह फैसला न केवल परमानंद गुप्ता के लिए सजा है, बल्कि उन सभी के लिए एक चेतावनी है जो कानून का दुरुपयोग कर निर्दोष लोगों को फंसाते हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि फर्जी मुकदमे समाज के लिए खतरा हैं और इनसे सख्ती से निपटा जाएगा। यह मामला कानूनी पेशे की नैतिकता पर भी सवाल उठाता है और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कड़े कदम उठाने की जरूरत को रेखांकित करता है।