जोधपुर में ब्राह्मण समाज के उत्पीड़न से परेशान तीन लोगों ने मांगी इच्छा मृत्यु, हाईकोर्ट में याचिका दायर.

जोधपुर के इस मामले ने सामाजिक रूढ़ियों और व्यक्तिगत अधिकारों के बीच एक गंभीर बहस को जन्म दिया है। क्या परंपराएं व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर हावी हो सकती हैं? क्या सामाजिक पंचायतों को इस तरह के दंड देने का अधिकार है? इन सवालों का जवाब राजस्थान उच्च न्यायालय में चल रही सुनवाई में मिल सकता है। तब तक, यह खबर सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखी जा रही है।

Aug 20, 2025 - 11:59
जोधपुर में ब्राह्मण समाज के उत्पीड़न से परेशान तीन लोगों ने मांगी इच्छा मृत्यु, हाईकोर्ट में याचिका दायर.

जोधपुर, राजस्थान में पालीवाल ब्राह्मण समाज के तीन व्यक्तियों—लोलावास के राजाराम, काकेलाव के दलाराम और खींवसर के जेठाराम—ने सामाजिक बहिष्कार और उत्पीड़न से तंग आकर जिला कलेक्टर अग्रवाल के सामने इच्छा मृत्यु की गुहार लगाई है। इन तीनों ने पालीवाल ब्राह्मण समाज के भीतर ही विवाह किया था, लेकिन समाज के पंचों ने उनके इस निर्णय को स्वीकार नहीं किया। पंचों ने न केवल उन पर भारी जुर्माना लगाया, बल्कि उन्हें समाज से बाहर भी कर दिया। इस अन्याय के खिलाफ तीनों ने लूणी और डांगियावास पुलिस थानों में मुकदमे दर्ज कराए हैं और राजस्थान उच्च न्यायालय में रिट याचिका भी दायर की है।

पृष्ठभूमि और उत्पीड़न का कारण:

पालीवाल ब्राह्मण समाज, जो अपनी परंपराओं और सामाजिक नियमों के लिए जाना जाता है, में विवाह संबंधी कड़े नियम हैं। राजाराम, दलाराम और जेठाराम ने समाज के भीतर ही विवाह किया था, लेकिन पंचों ने इसे नियमों का उल्लंघन मानते हुए उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की। आरोप है कि पंचों ने इन तीनों पर सामाजिक दबाव बनाया, जुर्माना लगाया और अंततः उन्हें समाज से बहिष्कृत कर दिया। इस उत्पीड़न ने तीनों को मानसिक और सामाजिक रूप से इस कदर तोड़ दिया कि उन्होंने इच्छा मृत्यु की मांग उठाई।

जिला कलेक्टर के सामने गुहार:

तीनों पीड़ितों ने जोधपुर के जिला कलेक्टर अग्रवाल के सामने अपनी व्यथा सुनाई और इच्छा मृत्यु की अनुमति मांगी। उनका कहना है कि समाज के इस बहिष्कार और उत्पीड़न ने उनकी जिंदगी को असहनीय बना दिया है। सामाजिक बहिष्कार के कारण उनके परिवारों को भी कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, जिससे उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति और खराब हो गई है।

कानूनी कार्रवाई:

पीड़ितों ने इस अन्याय के खिलाफ कानूनी रास्ता भी अपनाया है। लूणी और डांगियावास पुलिस थानों में पंचों और समाज के कुछ प्रभावशाली लोगों के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए गए हैं। इसके अलावा, तीनों ने राजस्थान उच्च न्यायालय में रिट याचिका दायर की है, जिसमें सामाजिक उत्पीड़न और बहिष्कार को चुनौती दी गई है। याचिका में उन्होंने समाज के इस तरह के अलोकतांत्रिक और अमानवीय व्यवहार पर रोक लगाने की मांग की है।

सामाजिक और कानूनी मंथन:

यह मामला न केवल पालीवाल ब्राह्मण समाज बल्कि पूरे राजस्थान में सामाजिक परंपराओं और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच टकराव को उजागर करता है। सामाजिक पंचायतों द्वारा इस तरह के बहिष्कार और दंड की घटनाएं समय-समय पर सामने आती रही हैं, जो आधुनिक कानून और संविधान के मूल्यों के खिलाफ हैं। राजस्थान उच्च न्यायालय में दायर याचिका से इस मामले में कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण निर्णय की उम्मीद की जा रही है।

 जोधपुर के इस मामले ने सामाजिक रूढ़ियों और व्यक्तिगत अधिकारों के बीच एक गंभीर बहस को जन्म दिया है। क्या परंपराएं व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर हावी हो सकती हैं? क्या सामाजिक पंचायतों को इस तरह के दंड देने का अधिकार है? इन सवालों का जवाब राजस्थान उच्च न्यायालय में चल रही सुनवाई में मिल सकता है। तब तक, यह खबर सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखी जा रही है।