ध्वनि प्रदूषण पर लगाम लगाएगी नई तकनीक
मृदुल भटनागर और वर्णाली शर्मा ने ध्वनि प्रदूषण मापने वाली क्लाउड-बेस्ड डिवाइस विकसित की, जिसे भारत सरकार से पेटेंट मिला है। यह रियल-टाइम में शोर के स्रोत और तीव्रता की निगरानी कर स्वास्थ्य मानकों को बेहतर बनाने में मदद करेगी।

राजस्थान की राजधानी जयपुर ने एक बार फिर तकनीकी नवाचार के क्षेत्र में अपनी धाक जमाई है। यहां के मृदुल भटनागर और वर्णाली शर्मा, जो अब पति-पत्नी हैं, ने ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए एक अनूठी डिवाइस विकसित की है। इस डिवाइस को भारत सरकार से पेटेंट मिल चुका है, जो न केवल शोर के स्रोत और उसकी तीव्रता को सटीक रूप से पहचानता है, बल्कि रियल-टाइम डेटा के जरिए अधिकारियों को निगरानी की सुविधा भी देता है। यह तकनीक शहरों और औद्योगिक क्षेत्रों में शोर के स्तर को नियंत्रित करने में क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है।
एक स्टार्टअप से शुरू हुआ सफर
मृदुल और वर्णाली की यह कहानी 2015 में शुरू हुई, जब दोनों ने बीटेक की पढ़ाई के दौरान एक स्टार्टअप की नींव रखी। 2017 में एक रिसर्च प्रोजेक्ट के तहत उन्होंने इस डिवाइस पर काम शुरू किया। मृदुल ने बताया, "हम दोनों को हमेशा से कुछ ऐसा करने की चाह थी, जो समाज के लिए उपयोगी हो। ध्वनि प्रदूषण एक ऐसी समस्या है, जो न केवल स्वास्थ्य को प्रभावित करती है, बल्कि पर्यावरण और जीवन की गुणवत्ता पर भी असर डालती है।"
बीटेक पूरा करने के बाद भी दोनों ने इस प्रोजेक्ट पर अपनी मेहनत और लगन जारी रखी। शुरुआती प्रोटोटाइप को मृदुल ने मुंबई के NMIMS कॉलेज में पढ़ाई के दौरान विकसित किया था। इस डिवाइस को वियरेबल फॉर्म में भी डिज़ाइन किया गया है, जैसे रिस्टबैंड या बैज, जो एक तय दायरे में शोर के स्तर को मापता है और डेटा को क्लाउड पर भेजता है।
कैसे काम करती है यह डिवाइस?
यह डिवाइस ध्वनि प्रदूषण के स्रोत और उसकी तीव्रता (डेसीबल लेवल) को सटीक रूप से मापने में सक्षम है। इसे वाहनों, पीसीयू वैन या ट्रैफिक मॉनिटरिंग सिस्टम में आसानी से लगाया जा सकता है। पूरी तरह क्लाउड बेस्ड तकनीक पर आधारित यह डिवाइस रियल-टाइम डेटा को कंट्रोल रूम तक पहुंचाती है। इससे राज्य और केंद्र सरकार के अधिकारी अपने कार्यालय में बैठे-बैठे शोर के स्रोत की लोकेशन और स्तर की निगरानी कर सकते हैं।
डिवाइस का डिस्प्ले रियल-टाइम नॉइज लेवल को भी दिखाता है, जिसे एक स्पेशलिस्ट टीम द्वारा मॉनिटर किया जाता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने इस तकनीक को हरी झंडी दी है, जिससे इसके व्यावसायिक उपयोग की संभावनाएं और बढ़ गई हैं।
स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए वरदान
ध्वनि प्रदूषण आज के समय में एक गंभीर समस्या बन चुका है। शोर के कारण नींद में खलल, तनाव, सुनने की क्षमता में कमी और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ रही हैं। मृदुल और वर्णाली का लक्ष्य इस डिवाइस के जरिए सार्वजनिक स्थानों और औद्योगिक क्षेत्रों में शोर को नियंत्रित कर स्वास्थ्य मानकों में सुधार करना है।
वर्णाली ने कहा, "हमारा सपना है कि लोग शांत और स्वस्थ वातावरण में रह सकें। हमारी डिवाइस न केवल शोर को मापती है, बल्कि इसके सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव को समझने में भी मदद करेगी।" दोनों अब जयपुर में इस डिवाइस का डेमोंस्ट्रेशन सेटअप करने की तैयारी कर रहे हैं, ताकि इसका वास्तविक प्रभाव देखा जा सके।
कानून प्रवर्तन और साउंड प्रूफिंग के लिए नई राह
इस डिवाइस के उपयोग से कानून प्रवर्तन एजेंसियां और साउंड प्रूफिंग कंपनियां भी लाभ उठा सकती हैं। यह तकनीक शोर के स्रोत को तुरंत पहचानकर उस पर कार्रवाई करने में मदद करेगी। उदाहरण के लिए, ट्रैफिक पुलिस इसे वाहनों से होने वाले अनावश्यक शोर को नियंत्रित करने के लिए इस्तेमाल कर सकती है।
मृदुल और वर्णाली की कहानी केवल तकनीकी नवाचार तक सीमित नहीं है। जब उन्होंने इस डिवाइस पर काम शुरू किया था, तब वे दोस्त थे। समय के साथ उनकी दोस्ती प्यार में बदली और अब दोनों शादीशुदा हैं। यह प्रोजेक्ट उनके लिए बेहद खास है, क्योंकि यह उनकी साझा मेहनत और सपनों का प्रतीक है। मृदुल ने हंसते हुए कहा, "यह डिवाइस हमारी जिंदगी का एक अहम हिस्सा है। यह हमारी दोस्ती, प्यार और लगन की निशानी है।"
जयपुर का नाम फिर से रोशन
इस पेटेंट के साथ जयपुर ने एक बार फिर देश के तकनीकी नवाचार के मानचित्र पर अपनी जगह बनाई है। मृदुल और वर्णाली की इस उपलब्धि ने न केवल स्थानीय स्तर पर, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी ध्यान खींचा है। उनकी यह तकनीक भविष्य में ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने में मील का पत्थर साबित हो सकती है।