झालावाड़ स्कूल हादसे के बाद पिपलोद गांव के किसान ने स्कूल के लिए छोड़ा पक्का घर, परिवार संग अपनाई झोपड़ी.
पिपलोद गांव में एक हादसा, जिसने सबको झकझोर दिया। स्कूल की जर्जर इमारत ढहने से सात मासूमों की जान चली गई। लेकिन इस अंधेरे में एक किसान की कहानी ने रोशनी बिखेरी। मोर सिंह ने अपने पक्के घर को बच्चों की पढ़ाई के लिए दान कर दिया और खुद परिवार संग झोपड़ी में चले गए। क्या गांव के बच्चे अब फिर से सपने देख पाएंगे? उनकी यह कहानी हर किसी को सोचने पर मजबूर कर देगी।

झालावाड़ जिले के पिपलोदी गांव में एक साधारण किसान की असाधारण कहानी ने न केवल गांव, बल्कि पूरे क्षेत्र को प्रेरणा दी है। मोर सिंह, एक गरीब किसान, ने अपने पुश्तैनी पक्के मकान को गांव के बच्चों की शिक्षा के लिए दान कर दिया और खुद अपने आठ सदस्यों वाले परिवार के साथ खेत के पास तिरपाल और लकड़ी से बनी एक साधारण झोपड़ी में रहने लगे। यह बलिदान उन्होंने तब किया, जब 25 जुलाई 2025 को पिपलोदी के राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय की जर्जर इमारत ढहने से सात मासूम बच्चों की जान चली गई और 28 अन्य घायल हो गए। इस हादसे ने पूरे गांव को झकझोर कर रख दिया, और स्कूल की बदहाल स्थिति ने शिक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े किए।
हादसे ने उजागर की व्यवस्था की नाकामी
25 जुलाई की सुबह, जब पिपलोदी गांव के स्कूल में बच्चे प्रार्थना के लिए जमा हुए थे, बारिश के कारण जर्जर छत अचानक भरभराकर गिर पड़ी। इस हादसे में सात बच्चों की मौत हो गई, और कई अन्य मलबे में दबकर घायल हो गए। ग्रामीणों का कहना है कि स्कूल भवन कई सालों से जर्जर था, और इसकी मरम्मत के लिए कई बार शिक्षा विभाग और स्थानीय प्रशासन को शिकायत की गई थी, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। हादसे के बाद शिक्षा विभाग ने स्कूल की प्रधानाध्यापिका मीना गर्ग सहित पांच शिक्षकों को निलंबित कर दिया, और उच्च स्तरीय जांच के आदेश दिए गए। शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने पीड़ित परिवारों को 10 लाख रुपये की आर्थिक सहायता और एक परिजन को संविदा पर नौकरी देने की घोषणा की। लेकिन गांव में बच्चों की पढ़ाई का भविष्य अनिश्चितता के भंवर में फंस गया।
मोर सिंह का अनोखा बलिदान
ऐसे समय में, जब गांव के अभिभावक डर के मारे अपने बच्चों को स्कूल भेजने से कतरा रहे थे, मोर सिंह ने एक ऐसा कदम उठाया, जिसने सबको चौंका दिया। उन्होंने अपने पक्के मकान को अस्थायी स्कूल के रूप में इस्तेमाल करने के लिए शिक्षा विभाग को सौंप दिया। मोर सिंह, जो स्वयं निरक्षर हैं, का मानना है कि शिक्षा ही गांव के पिछड़ेपन को दूर कर सकती है। उन्होंने कहा, “जब तक गांव में बच्चे पढ़-लिखकर काबिल नहीं बनेंगे, तब तक गांव की तरक्की नहीं होगी।” इस सोच के साथ, उन्होंने अपने आठ सदस्यों वाले परिवार को खेत के पास तिरपाल की झोपड़ी में शिफ्ट कर लिया। इस झोपड़ी में बारिश और गर्मी की मार झेलना आसान नहीं है, लेकिन मोर सिंह और उनके परिवार के चेहरे पर कोई शिकन नहीं है।
गांव में जगी नई उम्मीद
मोर सिंह के इस त्याग ने पिपलोदी गांव में नई उम्मीद जगाई है। उनके घर में अब बच्चों की पढ़ाई फिर से शुरू हो चुकी है। चार शिक्षकों की देखरेख में बच्चे किताबों के साथ समय बिता रहे हैं, और दीवारों से पाठ्यपुस्तकों की गूंज सुनाई देती है। गांव के लोग बताते हैं कि मोर सिंह का यह निर्णय केवल एक मकान दान करने की कहानी नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी सोच का प्रतीक है, जो शिक्षा को सबसे बड़ी पूंजी मानती है। उनके इस कदम ने न केवल बच्चों की पढ़ाई को पटरी पर लाया, बल्कि पूरे समुदाय को एकजुट होने का संदेश भी दिया।
जिला प्रशासन और समाज ने की सराहना
मोर सिंह के इस बलिदान को जिला प्रशासन ने भी पूरे सम्मान के साथ स्वीकार किया। 15 अगस्त 2025 को स्वतंत्रता दिवस के जिला स्तरीय समारोह में मोर सिंह को सम्मानित किया गया। जब उनका नाम मंच पर पुकारा गया, तो पूरा मैदान तालियों से गूंज उठा। इस समारोह में उन बच्चों को भी सम्मानित किया गया, जिन्होंने हादसे के दौरान मलबे में फंसे अपने साथियों को बचाने में साहस दिखाया। इनमें अरविंद कुमार, लक्ष्मी बाई, सुनीता, और आरती लोधा जैसे छात्र शामिल थे। इसके अलावा, हादसे में घायल बच्चों और सहयोग करने वाले शिक्षकों, चिकित्सकों, और भामाशाहों को भी सम्मानित किया गया।
एक प्रेरणा जो पीढ़ियों को याद रहे
गीमोर सिंह की कहानी केवल एक व्यक्ति के त्याग की नहीं, बल्कि एक ऐसी सोच की है, जो समाज को बदल सकती है। उन्होंने अपनी दो बेटियों को शिक्षित करने का सपना देखा है, जिसमें से एक कक्षा 12 में और दूसरी कक्षा 9 में पढ़ रही है। वे चाहते हैं कि उनकी बड़ी बेटी शिक्षक बने और गांव के बच्चों को पढ़ाए। मोर सिंह का कहना है, “अगर गांव के बच्चे पढ़-लिखकर आगे बढ़ जाएंगे, तो यही मेरे लिए सबसे बड़ी खुशी होगी।” उनकी यह कहानी सच्ची देशभक्ति और समाजसेवा का जीवंत उदाहरण है।
पिपलोदी गांव के लोग मानते हैं कि मोर सिंह का यह कदम आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनेगा। यह सिर्फ एक मकान का दान नहीं, बल्कि शिक्षा के प्रति अटूट विश्वास और समाज के प्रति उनकी संवेदनशीलता का प्रतीक है। मोर सिंह की झोपड़ी आज भले ही साधारण हो, लेकिन उनकी सोच और उनका बलिदान असाधारण है, जो हर किसी को यह सोचने पर मजबूर करता है कि सच्ची सेवा और त्याग का मतलब क्या होता है।