जोधपुर में रेजिडेंट डॉक्टर की आत्महत्या से हड़कंप: पेनडाउन हड़ताल, मरीज परेशान, सिस्टम पर उठे सवाल

जोधपुर के एसएन मेडिकल कॉलेज में रेजिडेंट डॉक्टर राकेश विश्नोई की आत्महत्या के विरोध में रेजिडेंट डॉक्टर्स ने दो घंटे की पेनडाउन हड़ताल की, जिससे मरीजों को परेशानी हुई। राकेश ने फार्माकोलॉजी विभाग के एचओडी पर थीसिस को लेकर मानसिक प्रताड़ना का आरोप लगाया था। रेजिडेंट डॉक्टर एसोसिएशन ने निष्पक्ष जांच, आरोपी को हटाने और बेहतर कार्य वातावरण की मांग की है। परिजन जयपुर में धरने पर हैं, और पूर्ण हड़ताल की चेतावनी दी गई है।

Jun 18, 2025 - 16:40
Jun 18, 2025 - 16:41
जोधपुर में रेजिडेंट डॉक्टर की आत्महत्या से हड़कंप: पेनडाउन हड़ताल, मरीज परेशान, सिस्टम पर उठे सवाल

जोधपुर, 18 जून 2025: जोधपुर के SN मेडिकल कॉलेज में रेजिडेंट डॉक्टर राकेश विश्नोई की आत्महत्या के मामले ने चिकित्सा जगत में तूफान खड़ा कर दिया है। इस घटना के विरोध में रेजिडेंट डॉक्टर्स ने मंगलवार सुबह 8 से 10 बजे तक दो घंटे की पेनडाउन हड़ताल की, जिसके चलते ओपीडी, आईपीडी और ट्रॉमा वार्ड सहित सभी विभागों में काम ठप रहा। इस दौरान मरीजों को इलाज के लिए भारी परेशानी का सामना करना पड़ा। हड़ताल के साथ ही डॉक्टरों ने काली पट्टी बांधकर अपना विरोध दर्ज किया, जिसने मेडिकल सिस्टम की कार्यप्रणाली और रेजिडेंट डॉक्टर्स के मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।

आत्महत्या का दर्दनाक मामला

13 जून 2025 को 30 वर्षीय रेजिडेंट डॉक्टर राकेश विश्नोई, जो नागौर के जारोड़ा गांव के निवासी थे, ने कथित तौर पर सल्फास की गोलियां खाकर आत्महत्या का प्रयास किया। उनकी हालत गंभीर होने पर उन्हें जोधपुर के मथुरादास माथुर अस्पताल से जयपुर के सवाई मानसिंह (एसएमएस) अस्पताल रेफर किया गया। ग्रीन कॉरिडोर बनाकर उन्हें जयपुर पहुंचाया गया, लेकिन 14 जून की रात उनकी मृत्यु हो गई।

मृत्यु से पहले राकेश ने एक वीडियो संदेश जारी किया, जो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। इस वीडियो में उन्होंने फार्माकोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष (एचओडी) डॉ. राजकुमार राठौड़ पर थीसिस को लेकर मानसिक प्रताड़ना का गंभीर आरोप लगाया। राकेश ने कहा कि इस उत्पीड़न ने उन्हें यह आत्मघाती कदम उठाने के लिए मजबूर किया। उनके भाई किशन विश्नोई ने जोधपुर के शास्त्रीनगर थाने में डॉ. राजकुमार राठौड़ के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का मुकदमा दर्ज कराया है।

रेजिडेंट डॉक्टर्स का गुस्सा, हड़ताल का ऐलान

रेजिडेंट डॉक्टर एसोसिएशन (आरडीए) के अध्यक्ष डॉ. हीरालाल यादव ने इस मामले में कॉलेज प्रशासन और सरकार की चुप्पी को अन्यायपूर्ण बताया। उन्होंने कहा, "डॉ. राकेश की आत्महत्या के बाद प्रशासन ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। यह मेडिकल सिस्टम में भरोसे की कमी को दर्शाता है। हमारी सांकेतिक हड़ताल एक चेतावनी है। यदि जल्द ही न्याय नहीं मिला, तो सभी रेजिडेंट डॉक्टर्स पूर्ण कार्य बहिष्कार करेंगे, जिसकी जिम्मेदारी प्रशासन की होगी।"

एसोसिएशन ने तीन प्रमुख मांगें रखी हैं:

आरोपी विभागाध्यक्ष को तत्काल पद से हटाया जाए।

मामले की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच हो।

रेजिडेंट डॉक्टर्स के लिए मानसिक स्वास्थ्य सहायता और बेहतर कार्य वातावरण सुनिश्चित किया जाए।

हड़ताल के दौरान डॉक्टरों ने काली पट्टी बांधकर अपना रोष जताया और मेडिकल सिस्टम में सुधार की मांग की। इस हड़ताल से मरीजों को भारी असुविधा हुई। कई मरीजों को बिना इलाज के लौटना पड़ा, जबकि कुछ को सीनियर डॉक्टर्स और इमरजेंसी सेवाओं पर निर्भर रहना पड़ा।

परिजनों का धरना, सियासी हस्तक्षेप

राकेश विश्नोई के परिजन और रेजिडेंट डॉक्टर्स जयपुर के एसएमएस अस्पताल की मोर्चरी के बाहर धरने पर बैठे हैं। वे डॉ. राजकुमार राठौड़ की गिरफ्तारी और सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। परिजनों ने साफ कहा है कि जब तक न्याय नहीं मिलेगा, वे शव का पोस्टमार्टम नहीं करने देंगे। 

हनुमान बेनीवाल ने चिकित्सा व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए कहा, "जोधपुर में एक्मो मशीन थी, लेकिन प्रशिक्षित टेक्नीशियन न होने के कारण राकेश को जयपुर रेफर करना पड़ा, जिससे उनकी जान चली गई। यह सिस्टम की विफलता है।" उन्होंने मामले की न्यायिक जांच, पीड़ित परिवार को आर्थिक मदद और सरकारी नौकरी, साथ ही मेडिकल शिक्षा में शोषण रोकने के लिए नीतिगत बदलाव की मांग की।

आरोपी एचओडी का पक्ष

फार्माकोलॉजी विभाग के एचओडी डॉ. राजकुमार राठौड़ ने आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि डॉ. राकेश पहले से मानसिक अवसाद से पीड़ित थे और उनका इलाज चल रहा था। उन्होंने दावा किया कि राकेश पिछले दो साल से मथुरादास माथुर अस्पताल के मानसिक रोग विभाग से डिप्रेशन की दवाइयां और थेरेपी ले रहे थे। हालांकि, मेडिकल कॉलेज के प्रतिनिधिमंडल ने पुलिस कमिश्नर से मुलाकात कर बिना जांच के डॉ. राठौड़ के खिलाफ कार्रवाई न करने की मांग की है।

 मेडिकल सिस्टम पर उठते सवाल

विशेषज्ञों का कहना है कि मेडिकल छात्रों और रेजिडेंट डॉक्टर्स पर लगातार ड्यूटी और कार्यभार के कारण मानसिक तनाव बढ़ रहा है। डॉ. राकेश के मामले ने इस मुद्दे को फिर से उजागर किया है। एसएन मेडिकल कॉलेज काउंसिल ने हाल ही में निर्णय लिया कि हॉस्टल में प्रवेश के दौरान परिजनों से छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य की अंडरटेकिंग ली जाएगी, लेकिन यह कदम पर्याप्त नहीं माना जा रहा।

मरीजों की परेशानी

हड़ताल के कारण मंगलवार को जोधपुर के अस्पतालों में मरीजों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। ओपीडी में लंबी कतारें लगीं, और कई मरीजों को बिना इलाज के वापस लौटना पड़ा। हालांकि, आपातकालीन सेवाओं को हड़ताल से बाहर रखा गया, लेकिन नियमित सेवाओं के ठप होने से मरीजों में नाराजगी देखी गई। मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य और सीनियर डॉक्टर्स ने स्थिति को संभालने की कोशिश की, लेकिन हड़ताल का असर स्पष्ट था।

सोशल मीडिया पर गुस्सा

सोशल मीडिया पर इस मामले ने व्यापक चर्चा छेड़ दी है। कई यूजर्स ने इसे "संस्थागत हत्या" करार दिया और मेडिकल कॉलेजों में रेजिडेंट डॉक्टर्स के शोषण पर सवाल उठाए। एक यूजर ने लिखा, "रेजिडेंट डॉक्टर्स की जिंदगी भी उतनी ही कीमती है, जितनी वे दूसरों की बचाते हैं। मदद मांगना कमजोरी नहीं, हिम्मत है।"

रेजिडेंट डॉक्टर एसोसिएशन ने चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगें जल्द पूरी नहीं हुईं, तो वे अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाएंगे। इस बीच, पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी है, लेकिन परिजनों और रेजिडेंट्स का गुस्सा थमने का नाम नहीं ले रहा। यह मामला न केवल डॉ. राकेश विश्नोई की व्यक्तिगत त्रासदी को दर्शाता है, बल्कि मेडिकल शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में गहरे सिस्टमिक मुद्दों को भी उजागर करता है।

डॉ. राकेश विश्नोई की आत्महत्या ने जोधपुर से जयपुर तक मेडिकल समुदाय और समाज को झकझोर दिया है। यह घटना एक चेतावनी है कि रेजिडेंट डॉक्टर्स के मानसिक स्वास्थ्य और कार्य वातावरण पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है। क्या प्रशासन और सरकार इस मामले में निष्पक्ष जांच और ठोस कदम उठाएगी, या यह एक और अनसुलझा मामला बनकर रह जाएगा?