दीपावली की चमक में डूबा राजस्थान, लेकिन जैसलमेर का यह हादसा बन गया काला अध्याय,एक ही परिवार के 5 लोगों की दर्दनाक मौत।
जैसलमेर-जोधपुर हाईवे पर 14 अक्टूबर 2025 को एक लग्जरी एसी स्लीपर बस में भीषण आग लगने से 20 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई। दीवाली मनाने गांव जा रहे सेतरावा के महेंद्र मेघवाल का पूरा परिवार (पति, पत्नी, तीन बच्चे) और स्थानीय पत्रकार राजेंद्र सिंह जिंदा जल गए। आग की वजह शॉर्ट सर्किट और डिग्गी में रखे पटाखों को माना जा रहा है। 16 घायल जोधपुर में भर्ती, जिनमें कई गंभीर। सरकार ने मुआवजे का ऐलान किया, जांच शुरू। यह त्रासदी राजस्थान के लिए एक काला अध्याय बन गई।

जैसलमेर, 15 अक्टूबर 2025: त्योहारों की धूम में डूबे राजस्थान के सुनहरी रेगिस्तान ने एक ऐसी काली सुबह देखी, जहां खुशियों के सफर पर निकले सैकड़ों सपनों का अंत हो गया। जैसलमेर-जोधपुर हाईवे पर एक लग्जरी एसी स्लीपर बस मात्र कुछ सेकंडों में जलते ताबूत में बदल गई, जब अचानक लगी भीषण आग ने 57 यात्रियों को अपनी चपेट में ले लिया। इस हृदयविदारक अग्निकांड में कम से कम 20 लोगों की जिंदगी समाप्त हो गई, जिनमें सेतरावा के लवारन गांव का पूरा महेंद्र मेघवाल परिवार—पिता, मां और तीन मासूम बच्चे—शामिल हैं। आग की लपटों ने न केवल उनके शरीरों को राख कर दिया, बल्कि पूरे समाज को एक ऐसा दर्द दिया जो सालों तक भुलाया नहीं जा सकेगा। एक स्थानीय पत्रकार राजेंद्र सिंह की भी इसी आग में कुर्बानी हो गई, जो पोकरण के एक उद्घाटन समारोह में शामिल होने जा रहे थे। यह हादसा सिर्फ आंकड़ों का खेल नहीं, बल्कि उन अनगिनत परिवारों की चीख है जो दीवाली की रोशनी में अंधेरे में डूब गए।
हादसे का खौफनाक मंजर: धुएं की लहरों से शुरू हुआ कयामत का सिलसिला
यह विपत्ति मंगलवार दोपहर करीब 3:30 बजे जैसलमेर से महज 20 किलोमीटर दूर थैयत (थईयात) गांव के पास घटी। केके ट्रेवल्स की यह नई-नवेली लग्जरी एसी स्लीपर बस, जो मात्र 5 दिन पहले ही 1 अक्टूबर 2025 को रजिस्टर्ड हुई थी और 9 अक्टूबर को ऑल इंडिया परमिट मिला था, 57 यात्रियों को लेकर जोधपुर की ओर दौड़ रही थी। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, बस वार म्यूजियम के पास पहुंचते ही उसके पिछले हिस्से (संभवतः इंजन या एसी यूनिट) से काला धुआं उगलने लगा। चालक ने तुरंत वाहन को सड़क किनारे रोका, लेकिन तब तक आग ने पूरे केबिन को अपनी चपेट में ले लिया। एसी गैस लीक, शॉर्ट सर्किट और डिग्गी में रखे पटाखों (दीवाली के लिए ले जाए जा रहे) के कारण धमाके जैसी स्थिति बन गई, जिससे बस आग का गोला बनकर धधकने लगी।
यात्रियों की चीख-पुकार से सन्नाटा पसर गया—कुछ लोग खिड़कियां तोड़कर या दरवाजों से कूदकर जान बचाने में सफल हुए, लेकिन कई अंदर फंसकर जिंदा जल गए। एक चश्मदीद ने बताया, "आग की लपटें इतनी तेज थीं कि खिड़की तोड़कर पहले पत्नी को बाहर धकेला, फिर साली और एक बच्चे को बाहर फेंका। लेकिन ऊपर की बर्थ पर बैठे दो बच्चों को बचा नहीं सका। वे जिंदा जल गए।"
आग इतनी प्रबल थी कि चार घंटे बाद भी बस की बॉडी गर्म बनी रही, और शव निकालना मुश्किल हो गया। कुछ शव तो बॉडी से चिपक गए, जबकि कई जलकर कोयले जैसे हो चुके थे। महिलाओं के पूरे कपड़े जल चुके थे, शरीर से खून निकल रहा था—यह मंजर इतना खौफनाक था कि राहगीरों के रोंगटे खड़े हो गए। हादसे के तुरंत बाद आसपास के ग्रामीण और राहगीर दौड़े-भागे मदद के लिए पहुंचे, लेकिन आग की तीव्रता ने सबको लाचार बना दिया।
सबसे मार्मिक कहानी: महेंद्र मेघवाल का परिवार—दीवाली की खुशियां बन गईं अंतिम विदाई
इस त्रासदी का सबसे दर्दनाक पहलू था सेतरावा के लवारन (लावारण) गांव का महेंद्र मेघवाल परिवार। महेंद्र, जो जैसलमेर के सेना गोला-बारूद डिपो में कर्मचारी थे, अपनी पत्नी और तीन छोटे बच्चों (उम्र 5, 7 और 9 वर्ष के आसपास) के साथ इंद्रा कॉलोनी के किराए के मकान से निकलकर दीवाली की खुशियां मनाने गांव लौट रहे थे। बस में सवार होते ही उन्होंने सपनों का आलम बुनना शुरू कर दिया था—गांव में मिट्टी की महक, परिवार की गोद, पटाखों की रौनक। लेकिन वह सफर उनके लिए अंतिम साबित हुआ। आग की लपटों ने पूरे परिवार को लील लिया; पति-पत्नी और तीनों बच्चे सब जलकर राख हो गए। गांव में शोक की लहर दौड़ गई—महेंद्र के बुजुर्ग माता-पिता अब अकेले रह गए, जिनके लिए यह दीवाली काली साबित हुई। महेंद्र के सहकर्मियों ने बताया, "वह मेहनती इंसान था, बच्चों को हमेशा पढ़ाई के लिए प्रेरित करता था। यह खबर सुनकर सब स्तब्ध हैं।"
इसी हादसे में जैसलमेर के एक स्थानीय पत्रकार राजेंद्र सिंह भी शिकार हो गए। वे पोकरण के एक उद्घाटन समारोह में कवरेज के लिए जा रहे थे। पत्रकार बिरादरी में उनका नाम सम्मान का प्रतीक था; उनकी मौत ने सच्चाई की आवाज को हमेशा के लिए खामोश कर दिया।
मौत का आंकड़ा और घायलों की जंग: DNA टेस्ट से खुलेगी पर्दाप्रारंभिक आंकड़ों के अनुसार, हादसे में 20 लोगों की मौत हुई—19 बस में ही जिंदा जल गए, जबकि एक घायल रास्ते में दम तोड़ गया। मृतकों में महिलाएं और बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित हुए; तीन बच्चे और चार महिलाएं झुलसकर प्राण त्याग चुकीं। शवों की हालत इतनी खराब है कि पहचान मुश्किल हो रही है—जिला प्रशासन ने DNA टेस्ट की प्रक्रिया शुरू कर दी है। वहीं, 16-18 घायल जवाहर अस्पताल, जैसलमेर में भर्ती हैं, जिनमें से गंभीर रूप से झुलसे 16 को 275 किलोमीटर लंबा ग्रीन कॉरिडोर बनाकर जोधपुर के महात्मा गांधी अस्पताल (एमजीएच) पहुंचाया गया।
एक घायल ने बताया, "एम्बुलेंस पुरानी और धीमी थी, उपकरण भी अपर्याप्त—रास्ते में एक की जान चली गई।" घायलों में ज्यादातर 60-70% जल चुके हैं; डॉक्टरों का कहना है कि अगले 48 घंटे निर्णायक होंगे।
समाज का संदेश: सुरक्षा पहले, लापरवाही बाद में
यह हादसा हमें झकझोर गया—कितनी बार देखेंगे ऐसे मंजर? दीवाली के पटाखों की चमक में छिपी आग ने साबित कर दिया कि सुरक्षा मानकों की अनदेखी कितनी घातक हो सकती है। यात्रियों, ग्रामीणों और पत्रकारों की यह कहानी हमें याद दिलाती है कि जिंदगी अनमोल है। ईश्वर दिवंगत आत्माओं को शांति दे, घायलों को जल्द स्वास्थ्य लाभ और शोकाकुल परिवारों को यह दर्द सहने की ताकत। राजस्थान की यह रेतीली धरती फिर से हंसी-खुशी से गूंजे, ऐसी प्रार्थना ही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।