उतरज के 60 परिवारों की एकजुटता: ट्रैक्टर ने बदला गांव का भविष्य"
हौसले की जीत उतरज की यह कहानी सिर्फ एक ट्रैक्टर की नहीं, बल्कि एक गांव की एकजुटता, मेहनत और हिम्मत की है। जहां सड़कें नहीं थीं, वहां कंधों पर सपने ढोए गए। जहां रास्ते नहीं थे, वहां जिद ने रास्ता बनाया। उतरज आज न सिर्फ राजस्थान का सबसे ऊंचा गांव है, बल्कि हौसले का भी एक ऊंचा शिखर है। यह कहानी हर उस इंसान को प्रेरित करती है, जो मुश्किलों के आगे हार नहीं मानता। उतरज ने साबित कर दिया कि अगर इरादे पक्के हों, तो पहाड़ भी रास्ता दे देते हैं।

एक गांव का सपना, हौसले की उड़ान जंगल के बीच बसे, पथरीले रास्तों से घिरे, समुद्र तल से 1400 मीटर की ऊंचाई पर राजस्थान का सबसे ऊंचा गांव उतरज एक नया इतिहास रचने को तैयार है। सिरोही जिले के माउंट आबू में बसा यह गांव, जहां सड़क का नामोनिशान तक नहीं, आज अपने दम पर एक क्रांति लाया है। यहां के 60 परिवारों ने मिलकर एक ऐसा कारनामा कर दिखाया, जिसे सुनकर आपका सीना गर्व से चौड़ा हो जाएगा। हां, बात हो रही है एक ट्रैक्टर की, जो न सिर्फ मशीन है, बल्कि उतरज के लोगों के हौसले, एकजुटता और सपनों का प्रतीक है। यह कहानी है मेहनत, जुनून और उस जिद की, जिसने पथरीले रास्तों को भी हरा-भरा कर दिया।
पहाड़ों पर ट्रैक्टर का सफर: कंधों पर ढोया गया सपना उतरज गांव तक पहुंचने का रास्ता इतना दुर्गम है कि आज तक कोई गाड़ी वहां नहीं पहुंची। घने जंगलों और ऊबड़-खाबड़ रास्तों के बीच बसे इस गांव में खेती अब तक बैलों के दम पर होती थी। लेकिन गांव वालों का सपना बड़ा था। उन्होंने तय किया कि अब खेती को आधुनिक बनाना है। इसके लिए उन्होंने 7 लाख रुपये का ट्रैक्टर खरीदा—डेढ़ लाख नकद और बाकी लोन पर।
मगर सवाल था, ट्रैक्टर गांव तक पहुंचे कैसे?
रास्ता नहीं था, तो गांव वालों ने हिम्मत का रास्ता बनाया। ट्रैक्टर को हिस्सों में खोलकर, उसके भारी-भरकम पार्ट्स—जिनका कुल वजन करीब एक टन था—को बांस के खास फ्रेम में बांधा गया। फिर, 60 परिवारों के लोग कंधों पर यह वजन उठाकर 3 किलोमीटर पैदल चलकर गुरुशिखर से उतरज पहुंचे। इंजन, टायर, हर हिस्सा उनके हौसले की गवाही देता था। गांव में पहुंचकर ट्रैक्टर को असेंबल किया गया, और जब वह तैयार हुआ, तो गांव में खुशी की लहर दौड़ गई। ढोल-नगाड़ों की गूंज, जयकारों की आवाज और प्रसादी के साथ उतरज ने अपने पहले ट्रैक्टर का स्वागत किया।
उतरज जहां हिम्मत ने रास्ते बनाए माउंट आबू शहर से 20 किमी दूर बसे उतरज में करीब ढाई सौ लोग रहते हैं। 60 परिवारों का यह गांव 40-50 पीढ़ियों से यहीं बसा है। सांखल सिंह राजपूत बोडाना (52) बताते हैं, “हमारी पीढ़ियां बैलों से खेती करती आई हैं। मेहनत ज्यादा, समय ज्यादा, और मुश्किलें भी कम नहीं। लेकिन अब ट्रैक्टर के आने से 400 बीघा जमीन पर मशीनों से खेती होगी। समय बचेगा, मेहनत कम होगी, और फसलें भी बेहतर होंगी।”
ट्रैक्टर के आने से गांव में पहली बार लहसुन की खेती होगी। जौ, गेहूं, मटर, पत्ता गोभी, फूल गोभी, आलू जैसी फसलों को भी अब आसानी से उगाया जा सकेगा। पहले चारा इकट्ठा करने के लिए जंगलों में जाना पड़ता था, जहां जंगली जानवरों का खतरा रहता था। अब ट्रैक्टर से खेत जोते जाएंगे, चारा बचेगा, और जंगलों में भटकने की जरूरत कम होगी।
गांव की एकजुटता की तो बात ही निराली है ,सपने को हकीकत में बदला ट्रैक्टर खरीदने के लिए गांव के हर परिवार ने अपनी हिस्सेदारी दी। आबूरोड से खरीदे गए इस ट्रैक्टर को गुरुशिखर तक दो अन्य ट्रैक्टरों पर लादकर लाया गया। वहां से गांव तक का सफर पैदल तय हुआ। शोरूम में मुहूर्त किया गया, और कंपनी के कर्मचारियों ने ट्रैक्टर के पार्ट्स खोलने में मदद की। गांव में ट्रैक्टर के स्वागत में उत्सव सा माहौल था।
हालांकि, गांव में अभी कोई ट्रैक्टर चलाना नहीं जानता। इसके लिए पास के काछोली गांव के एक युवक को बुलाया गया है, जो गांव वालों को ट्रैक्टर चलाना सिखाएगा। डीजल के लिए 200 लीटर का ड्रम गुरुशिखर से पैदल लाया जाएगा। ट्रैक्टर की सर्विसिंग के लिए शोरूम की टीम 200 किलोमीटर चलने के बाद गांव आएग
उतरज का उज्ज्वल भविष्य-
नाथू सिंह, जो उतरज में ही जन्मे हैं, बताते हैं, “ट्रैक्टर हमारे लिए सिर्फ एक मशीन नहीं, बल्कि हमारे सपनों का रास्ता है। अब हमारी खेती आसान होगी, फसलें बढ़ेंगी, और गांव का भविष्य बदलेगा।” ट्रैक्टर के आने से न सिर्फ खेती में क्रांति आएगी, बल्कि गांव वालों का आत्मविश्वास भी बढ़ा है।