बाड़मेर के धोरों में कंकाल: सूअरों के आतंक ने छीनी एक अनजान की जिंदगी, दर्दनाक मृत्यु का मंजर

यह घटना सिर्फ एक कंकाल की खोज नहीं, बल्कि उस अनजान की चीखती आत्मा की कहानी है, जिसे शायद अपने अंत का अंदाजा भी नहीं था। बाड़मेर के ग्रामीण क्षेत्रों में सूअरों का बढ़ता खतरा अब एक गंभीर समस्या बन चुका है। इस दुखद घटना के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए हम उस अनजान की आत्मा की शांति की प्रार्थना करते हैं,

Apr 3, 2025 - 15:11
बाड़मेर के धोरों में कंकाल: सूअरों के आतंक ने छीनी एक अनजान की जिंदगी, दर्दनाक मृत्यु का मंजर

रिपोर्टर/राजेंद्र सिंह: बाड़मेर के सुनसान रेगिस्तानी इलाके में एक ऐसी घटना ने सनसनी मचा दी है, जिसने हर किसी के रोंगटे खड़े कर दिए। लुणु खुर्द गांव के पास धोरों में एक कंकाल मिला, जो संभवतः 15 दिन पहले तक एक जीवित इंसान था। ग्रामीणों और पुलिस के अनुसार, यह कंकाल किसी मानसिक रूप से विक्षिप्त व्यक्ति का हो सकता है, जो भटकते हुए इस निर्जन इलाके में आ पहुंचा। रात के सन्नाटे में सोया यह अनजान शख्स जंगली सूअरों के झुंड का शिकार बन गया। सूअरों ने उसे नोच-नोच कर खा डाला, और उसकी जिंदगी एक असहनीय दर्द और पीड़ा भरी मौत में तब्दील हो गई। 

पशु चराने वाले एक ग्वाले की नजर जब इस कंकाल पर पड़ी, तो उसने तुरंत ग्रामीण थाना पुलिस को सूचना दी। मौके पर पहुंची पुलिस और FSL टीम ने जांच शुरू की। कंकाल की हालत देखकर हर कोई स्तब्ध रह गया—शव पूरी तरह क्षत-विक्षिप्त हो चुका था। सूअरों ने इसे इस कदर नोच डाला कि पहचान करना तक मुश्किल हो गया। FSL और DNA जांच के बाद ही यह पुष्टि हो सकेगी कि यह शख्स कौन था और कहां से आया था।

ग्रामीणों का कहना है कि बाड़मेर के इन इलाकों में सूअरों का आतंक आए दिन बढ़ता जा रहा है। "ये सूअर किसी न किसी पर हमला करते रहते हैं। उस बेचारे को क्या पता था कि उसकी मौत इतनी भयानक और दर्दनाक होगी," एक ग्रामीण ने आंसुओं भरी आंखों से कहा। सूअरों के इस आतंक ने न सिर्फ एक जिंदगी छीन ली, बल्कि पूरे इलाके में दहशत का माहौल बना दिया है।

यह घटना सिर्फ एक कंकाल की खोज नहीं, बल्कि उस अनजान की चीखती आत्मा की कहानी है, जिसे शायद अपने अंत का अंदाजा भी नहीं था। बाड़मेर के ग्रामीण क्षेत्रों में सूअरों का बढ़ता खतरा अब एक गंभीर समस्या बन चुका है। इस दुखद घटना के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए हम उस अनजान की आत्मा की शांति की प्रार्थना करते हैं, जिसकी जिंदगी धोरों के सन्नाटे और सूअरों की क्रूरता में खो गई। क्या अब वक्त नहीं कि प्रशासन इस आतंक पर लगाम लगाए, ताकि कोई और इस दर्दनाक अंत का शिकार न बने?

Ashok Shera "द खटक" एडिटर-इन-चीफ