बाड़मेर में सियासी ड्रामे का नया मोड़: आलाकमान ने बदला रास्ता, समर्थकों में गुस्सा, हरीश चौधरी पर उमड़ा जनाक्रोश!
बाड़मेर में कांग्रेस की सभा से पहले सियासी ड्रामा तब शुरू हुआ, जब आलाकमान ने अचानक रास्ता बदलकर उतरलाई चौराहे पर स्वागत के लिए जुटे समर्थकों को निराश कर दिया। फूल-मालाओं के साथ इंतजार कर रहे कार्यकर्ता और महिलाएं दर्शक बनकर रह गए, क्योंकि काफिला सीधे सभा स्थल पहुंचा। समर्थकों का गुस्सा स्थानीय नेताओं पर फूटा, जिन्हें सियासी साजिश का जिम्मेदार ठहराया गया। लोग पुराने नेता की वापसी की मांग कर रहे हैं, मानते हुए कि बाड़मेर सीट जीतने के लिए उनकी जरूरत है। इस घटना ने कांग्रेस के भीतर गुटबाजी को उजागर किया, और जनाक्रोश ने सियासत को गर्म कर दिया।

बाड़मेर में सियासी ड्रामा उस समय चरम पर पहुंच गया, जब कांग्रेस आलाकमान ने सभा स्थल पहुंचने के लिए रास्ता बदल लिया और पूर्व विधायक मेवाराम जैन के समर्थकों का स्वागत का सपना धरा का धरा रह गया। उतरलाई से सीधे सभा स्थल की ओर निकला आलाकमान का काफिला चौराहे पर इंतजार कर रहे समर्थकों को छोड़कर निकल गया, जिससे स्थानीय नेताओं की योजनाएं धूल में मिल गईं और समर्थक मायूस होकर केवल दर्शक बनकर रह गए। इस घटना ने बाड़मेर की सियासत में भूचाल ला दिया, और हरीश चौधरी के खिलाफ जनता का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया।
क्या हुआ बाड़मेर में?
बाड़मेर में कांग्रेस की सभा के लिए उतरलाई चौराहे पर मेवाराम जैन और अमीन खान के समर्थक सुबह से ही जोश के साथ जुटे थे। लोग अपने नेताओं—विशेष रूप से मेवाराम जैन—के समर्थन में स्वागत के लिए फूल-मालाएं लेकर तैयार थे। महिलाएं और कार्यकर्ता तपती धूप में भी उत्साह के साथ इंतजार कर रहे थे। लेकिन, कांग्रेस आलाकमान ने अचानक रास्ता बदल लिया और काफिला सीधे सभा स्थल पर पहुंच गया। चौराहे पर खड़े समर्थकों को इसकी भनक तक नहीं लगी, और उनका जोश ठंडा पड़ गया।
स्थानीय लोगों का कहना है कि यह सब हरीश चौधरी की सियासी चाल का हिस्सा था। समर्थकों का आरोप है कि चौधरी ने आलाकमान को रास्ता बदलने के लिए उकसाया, ताकि मेवाराम जैन और उनके समर्थकों का स्वागत न हो सके। लोगों का गुस्सा इस कदर भड़का कि उन्होंने हरीश चौधरी के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी और कहा, "हरीश चौधरी की तानाशाही नहीं चलेगी!" कुछ समर्थकों ने तो अपने गले में स्वागत के लिए लाए गए साफे तक खुद ही पहन लिए, क्योंकि उनका स्वागत का सपना अधूरा रह गया।
सियासी चाल या मजबूरी?
लोगों का आरोप है कि यह सब एक सुनियोजित सियासी चाल थी। समर्थकों का कहना है कि आलाकमान ने जानबूझकर रास्ता बदला, ताकि कुछ खास नेताओं के स्वागत का मौका न मिले। चौराहे पर जुलूस, नारेबाजी और स्वागत की तैयारियों के साथ पहुंचे लोग मायूस हो गए। कुछ ने गुस्से में स्वागत के लिए लाए साफे खुद ही पहन लिए, तो कुछ भावुक होकर सियासी साजिश का आरोप लगाने लगे।
जनता का गुस्सा, नारेबाजी का शोर
चौराहे पर जमा भीड़ ने स्थानीय नेताओं के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। लोगों का कहना था कि यह सियासी चाल पार्टी को कमजोर कर सकती है। खासकर, जब बाड़मेर सीट पर जीत के लिए पुराने चेहरों की वापसी की मांग जोर पकड़ रही है। समर्थकों का मानना है कि बिना उनके पसंदीदा नेता के, पार्टी का बाड़मेर में जीतना मुश्किल है।
क्या है असली खेल?
इस घटना ने कांग्रेस के भीतर गुटबाजी को और उजागर कर दिया। समर्थकों का गुस्सा साफ दिखा कि वे इस "सियासी साजिश" को बर्दाश्त नहीं करेंगे। कुछ का कहना था कि आलाकमान का यह कदम स्थानीय नेताओं की सलाह पर उठाया गया, ताकि कुछ खास चेहरों का कद न बढ़े। इस बीच, स्वागत के लिए तैयार महिलाएं और कार्यकर्ता धूप में इंतजार करते रह गए, और उनका जोश मायूसी में बदल गया।
सियासत की नई राह
यह सियासी ड्रामा बाड़मेर में चर्चा का केंद्र बना हुआ है। समर्थकों का गुस्सा और पुराने नेताओं की वापसी की मांग आने वाले दिनों में पार्टी के लिए नई चुनौतियां खड़ी कर सकती है। क्या यह सियासी चाल पार्टी को एकजुट कर पाएगी, या गुटबाजी और गहरी होगी? यह देखना बाकी है।