300 साल पुरानी मिठास जो आज बन गई है ग्लोबल स्वीट ब्रांड

300 साल पुरानी विरासत, देशी घी की सुगंध और रबड़ी की लज़ीज़ परतों से सजी यह मिठाई अब भारत ही नहीं, अमेरिका, यूके और ऑस्ट्रेलिया तक पहुँच रही है। जानिए कैसे घेवर जयपुर की गलियों से उठकर वैश्विक मिठास का प्रतीक बना

Jul 27, 2025 - 14:18
300 साल पुरानी मिठास जो आज बन गई है ग्लोबल स्वीट ब्रांड

जयपुर का घेवर, जिसे कभी तीज के त्योहार की पारंपरिक मिठाई माना जाता था, आज एक वैश्विक पहचान बन चुका है। इसकी मिठास अब न केवल भारत के घर-घर में, बल्कि सात समंदर पार विदेशों तक पहुंच रही है। देशी घी की सुगंध और रबड़ी की मलाईदार परतों से सजा यह मिष्ठान्न अब शादी-ब्याह, पारिवारिक समारोहों और यहां तक कि अंतरराष्ट्रीय मेन्यू का हिस्सा बन गया है। आइए, जानते हैं घेवर की इस मधुर यात्रा और इसके इतिहास की कहानी, जो जयपुर की गलियों से शुरू होकर विश्व पटल तक पहुंची है।

300 साल पुरानी परंपरा

घेवर की कहानी कोई नई नहीं है। करीब 300 साल पहले, वर्ष 1750 में सवाई जयसिंह के समय लिखी गई एक पुस्तक में इसका जिक्र मिलता है। उस दौर में यह मिठाई जयपुर के राजघरानों और ब्रिटिश अधिकारियों के लिए खास तौर पर तैयार की जाती थी। तब से लेकर आज तक, घेवर जयपुर की संस्कृति और स्वाद का प्रतीक बना हुआ है। इसकी खासियत इसकी बनावट में है—मैदा, घी और चीनी की चाशनी से तैयार यह मिठाई इतनी हल्की और कुरकुरी होती है कि मुंह में रखते ही घुल जाती है। रबड़ी या मलाई की परत इसे और भी लज़ीज़ बनाती है।

तीज से सालभर की मिठास

पहले घेवर का नाम सुनते ही तीज का ख्याल आता था, लेकिन अब यह मिठाई सालभर लोगों की पसंद बन चुकी है। शादी-पार्टियों से लेकर कॉरपोरेट आयोजनों तक, घेवर हर मौके पर छा रहा है। खास तौर पर रबड़ी वाला घेवर, जिसकी मांग में तेजी से इजाफा हुआ है, लोगों के दिलों पर राज कर रहा है। जयपुर के मिठाई विक्रेता बताते हैं कि त्योहारों के समय तो घेवर की मांग इतनी बढ़ जाती है कि अतिरिक्त कारीगरों को काम पर लगाना पड़ता है।

नए ज़माने का घेवर

परंपरागत घेवर अब नए ज़माने के साथ कदमताल कर रहा है। बाजार में अब बिस्कॉफ, मैंगो, स्ट्रॉबेरी और चॉकलेट जैसे फ्लेवर में घेवर उपलब्ध हैं। इसकी पैकिंग भी इतनी आकर्षक और गिफ्टिंग के लिए अनुकूल बनाई जा रही है कि यह किसी भी समारोह में उपहार के तौर पर भी पसंद किया जा रहा है। 50 ग्राम से लेकर सवा किलो तक के घेवर बाजार में उपलब्ध हैं, जिनकी कीमतें इस प्रकार हैं:

  • देशी घी का घेवर: 750 से 1200 रुपए प्रति किलो

  • वनस्पति घी का घेवर: 350 से 500 रुपए प्रति किलो

वैश्विक मांग और ऑनलाइन क्रांति

घेवर की मिठास अब भारत की सीमाओं को पार कर अमरीका, यूके, ऑस्ट्रेलिया, नीदरलैंड्स और यूएई जैसे देशों तक पहुंच रही है। ऑनलाइन ऑर्डर के जरिए विदेशों से हर साल 10,000 से अधिक ऑर्डर आ रहे हैं, और यह संख्या लगातार बढ़ रही है। विशेष पैकिंग की मदद से घेवर 2 से 5 दिन में सुरक्षित रूप से विदेशों में पहुंच रहा है। कई बार तो पारिवारिक समारोहों के लिए एक साथ 100 से 200 घेवर तक भेजे जा रहे हैं। प्रवासी भारतीय अपने रिश्तेदारों के माध्यम से घेवर मंगवाते हैं, वहीं जयपुर से गुजरने वाली ट्रेनों और बसों में सफर करने वाले लोग भी अपनी सीट पर ही ऑनलाइन ऑर्डर कर इस मिठाई का लुत्फ उठा रहे हैं। अनुमान है कि घेवर का सालाना कारोबार 200 करोड़ रुपए तक पहुंच चुका है।

पर्यटकों की पसंद

जयपुर आने वाले पर्यटक घेवर का स्वाद लेना नहीं भूलते। चाहे वह गुलाबी नगरी की गलियों में घूमने आए हों या फिर किसी त्योहार के लिए, घेवर उनकी सूची में जरूर होता है। कई पर्यटक इसे पैक करवाकर अपने साथ ले जाते हैं, ताकि अपनों को भी इस मिठास का स्वाद चखा सकें।

जीआइ टैग की जरूरत

घेवर की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए अब मांग उठ रही है कि इसे भौगोलिक संकेतक (जीआइ) टैग मिलना चाहिए। यह टैग न केवल जयपुर के घेवर की प्रामाणिकता को और मजबूत करेगा, बल्कि इसे वैश्विक स्तर पर एक अनूठी पहचान भी देगा।

एक मिठास, जो दिलों को जोड़ती है

घेवर अब सिर्फ एक मिठाई नहीं, बल्कि जयपुर की संस्कृति, परंपरा और नवाचार का प्रतीक बन चुका है। यह मिठास न केवल स्वाद की, बल्कि अपनत्व और उत्सव की भी कहानी कहती है। चाहे वह तीज का त्योहार हो, शादी का समारोह हो या विदेश में बैठे किसी अपने को भेजा गया उपहार, घेवर हर मौके पर खुशियां बांट रहा है। तो अगली बार जब आप जयपुर आएं, इस मिठास को जरूर आजमाएं और इसे दुनिया के किसी भी कोने में अपने प्रियजनों तक पहुंचाएं।

Yashaswani Journalist at The Khatak .