100 सीटों पर चंद्रशेखर आजाद की चुनौती: दलित वोटों का समीकरण कैसे बदलेगा?

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में दलित वोटों के लिए एनडीए और महागठबंधन में होड़ है, लेकिन चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी की एंट्री ने दलित-मुस्लिम एकता के जरिए सियासी समीकरण बदलने की संभावना जगाई है। यह कदम चिराग पासवान, जीतन राम मांझी और मायावती की बसपा के लिए चुनौती बन सकता है।

Jul 16, 2025 - 11:41
100 सीटों पर चंद्रशेखर आजाद की चुनौती: दलित वोटों का समीकरण कैसे बदलेगा?

बिहार में विधानसभा चुनाव 2025 की सरगर्मियां तेज हो चुकी हैं, और इस बार दलित वोट बैंक को साधने की जंग ने नया मोड़ ले लिया है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और महागठबंधन के बीच दलित वोटों को लेकर कड़ा मुकाबला है, लेकिन इस बीच भीम आर्मी के प्रमुख और आजाद समाज पार्टी (कांशी राम) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद की एंट्री ने सियासी हलकों में हलचल मचा दी है। चंद्रशेखर ने बिहार की 40 विधानसभा सीटों पर अपने प्रभारियों की सूची जारी कर चुनावी मैदान में उतरने का ऐलान किया है, जिससे दलित राजनीति में एक नया वैकल्पिक नेतृत्व उभरने की संभावना दिख रही है।

दलित वोटों का महत्व और बिखराव

बिहार में दलित आबादी करीब 20 फीसदी है, जो राज्य की राजनीति में एक निर्णायक भूमिका निभाती है। दलित वोटों में रविदास समाज (31 फीसदी), पासवान या दुसाध (30 फीसदी), और मुसहर या मांझी (14 फीसदी) का प्रमुख हिस्सा है। राज्य में अनुसूचित जाति के लिए 38 सीटें आरक्षित हैं, जिनमें से वर्तमान में एनडीए के पास 21 और महागठबंधन के पास 17 सीटें हैं। हालांकि, जेएनयू के राजनीति विज्ञान के सहायक प्रोफेसर हरीश एस वानखेड़े के अनुसार, दलितों का राजनीतिक प्रभाव उप-जातिगत विभाजनों और प्रतिस्पर्धी नेतृत्व के कारण बिखरा हुआ है। आर्थिक अभाव और सामाजिक असमानताओं ने भी दलित समुदाय की एकजुटता को प्रभावित किया है।

चंद्रशेखर आजाद: नया नेतृत्व, नई उम्मीद

पिछले कुछ वर्षों में चंद्रशेखर आजाद एक आक्रामक, मुखर और संघर्षशील दलित नेता के रूप में उभरे हैं। उनकी छवि युवा और जुझारू नेता की है, जो दलित-मुस्लिम एकता के फॉर्मूले पर काम करने की रणनीति बना रहे हैं। उनकी आजाद समाज पार्टी ने बिहार की 40 सीटों पर प्रभारियों की घोषणा की है, जिनमें 10 मुस्लिम उम्मीदवार शामिल हैं। यह कदम अल्पसंख्यक वोटों को साधने की उनकी कोशिश को दर्शाता है। जानकारों का मानना है कि चंद्रशेखर की यह रणनीति सामाजिक समीकरणों को बदल सकती है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां दलित और मुस्लिम वोटों का गठजोड़ निर्णायक साबित हो सकता है।

चंद्रशेखर की एंट्री को बिहार में मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के लिए एक बड़ी चुनौती माना जा रहा है। बसपा का प्रभाव खासकर उत्तर प्रदेश से सटे बिहार के जिलों जैसे कैमूर, बक्सर, और रोहतास में रहा है, जहां चैनपुर, मोहनिया, रामपुर, भभुआ, और बक्सर जैसी विधानसभा सीटों पर उसकी मौजूदगी दिखती है। हालांकि, बसपा ने भले ही ज्यादा सीटें न जीती हों, लेकिन कई बार वह हार-जीत में निर्णायक भूमिका निभा चुकी है। चंद्रशेखर अब इसी स्थान पर कब्जा करने की कोशिश में हैं।

एनडीए और महागठबंधन में खींचतान

बिहार में दलित वोटों को लेकर एनडीए और महागठबंधन के बीच कड़ा मुकाबला है। एनडीए में चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) और जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्युलर) के बीच तनातनी देखने को मिल रही है। चिराग पासवान खुद को दलित समाज का पहरेदार बताते हैं और वंचित व अल्पसंख्यक वर्गों के हितों की बात करते हैं। वहीं, मांझी का प्रभाव मुसहर समुदाय में है, जो गया, औरंगाबाद, नवादा, जहानाबाद, और रोहतास जैसे जिलों में फैला है।

2020 के विधानसभा चुनाव में मांझी की पार्टी ने तीन आरक्षित सीटें जीती थीं, जबकि चिराग की पार्टी खाली हाथ रही थी। हाल ही में हुए उपचुनावों में मांझी की बहू दीपा मांझी ने इमामगंज सीट पर जीत हासिल की, जिससे उनका कद और बढ़ा है। दूसरी ओर, महागठबंधन में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), जनता दल (यूनाइटेड) (जेडीयू), और कांग्रेस ने भी दलित वोटों को साधने की कोशिश की है, लेकिन चंद्रशेखर की एंट्री से इन पार्टियों के लिए चुनौती बढ़ सकती है।

बसपा और ओवैसी की रणनीति को झटका

मायावती की बसपा ने स्पष्ट किया है कि वह न तो एनडीए के साथ जाएगी और न ही इंडिया गठबंधन के साथ। वह अकेले चुनाव लड़ेगी। इस फैसले ने ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के थर्ड फ्रंट की उम्मीदों को झटका दिया है। 2020 में बसपा ने ओवैसी की पार्टी के साथ मिलकर 'ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट' बनाया था, लेकिन नतीजे निराशाजनक रहे। बसपा को केवल एक सीट मिली, जो बाद में जेडीयू में चली गई, जबकि ओवैसी के पांच में से चार विधायक भी पार्टी छोड़ गए।

चंद्रशेखर का दलित-मुस्लिम फॉर्मूला

चंद्रशेखर आजाद की रणनीति दलित-मुस्लिम एकता पर आधारित है, जो बिहार की 15 लोकसभा क्षेत्रों की कई विधानसभा सीटों को प्रभावित कर सकती है। अगर वह दलित वोटों को एकजुट करने में सफल रहे, तो परंपरागत दलों जैसे जेडीयू, आरजेडी, और कांग्रेस के लिए यह एक बड़ी चुनौती होगी। हालांकि, अगर दलित वोटों का बिखराव हुआ, तो इसका अप्रत्यक्ष लाभ बीजेपी जैसे संगठित दलों को मिल सकता है।

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में दलित वोटों की जंग अब तक के सबसे रोमांचक मुकाबलों में से एक होने जा रही है। चंद्रशेखर आजाद की एंट्री ने न केवल चिराग पासवान और जीतन राम मांझी जैसे नेताओं के लिए चुनौती खड़ी की है, बल्कि मायावती की बसपा और महागठबंधन जैसे गठबंधनों के लिए भी खतरे की घंटी बजा दी है। क्या चंद्रशेखर दलित वोटों के बिखराव को एकजुटता में बदल पाएंगे, या उनकी एंट्री से सियासी समीकरण और जटिल हो जाएंगे? यह सवाल बिहार की सियासत को नई दिशा दे सकता है।

Yashaswani Journalist at The Khatak .