सोनू कंवर: बाल विवाह के खिलाफ राजस्थान की एक प्रेरणादायक आवाज

भांवता गांव की सोनू कंवर ने बाल विवाह के खिलाफ मुहिम छेड़कर दर्जनों विवाह रुकवाए, अपनी स्कूटी पर गांव-गांव जाकर लोगों को जागरूक करती हैं। उनकी कहानी साहस और सामाजिक बदलाव की प्रेरणा है

Jul 26, 2025 - 15:29
सोनू कंवर: बाल विवाह के खिलाफ राजस्थान की एक प्रेरणादायक आवाज

राजस्थान के अजमेर जिले के छोटे से गांव भांवता में एक ऐसी महिला रहती हैं, जिनका जीवन साहस, संघर्ष और सामाजिक बदलाव की एक जीवंत मिसाल है। सोनू कंवर राठौड़, जिन्हें आज लोग एक नन्हा सा गांव बदलाव की प्रतीक के रूप में जानते हैं, ने न केवल अपने दर्द को ताकत में बदला, बल्कि समाज की गहरी जड़ों में बसी कुरीति—बाल विवाह—के खिलाफ एक मजबूत लड़ाई छेड़ दी। स्कूटी पर सवार, कानों के पीछे पल्लू बांधे, और कलाइयों पर रंग-बिरंगी चूड़ियां पहने सोनू की पैनी निगाहें हर उस परिवार तक पहुंचती हैं, जहां बाल विवाह की तैयारियां हो रही हों। उनकी कहानी न केवल प्रेरणा देती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि दृढ़ संकल्प के आगे कोई रुकावट टिक नहीं सकती।

एक दर्दनाक शुरुआत

सोनू कंवर की कहानी उस वक्त शुरू होती है, जब वह महज 12 साल की थीं। उस उम्र में, जब बच्चे खेल-कूद और पढ़ाई में मगन रहते हैं, सोनू का विवाह कर दिया गया। उनके पिता ने उनकी बड़ी बहन की शादी के साथ ही उनकी भी शादी तय कर दी। परिवार में जश्न और संगीत के शोर के बीच सोनू की छोटी सी आवाज दब गई। वह बताती हैं, “मुझे समझ ही नहीं था कि शादी क्या होती है। मेरी आवाज को कोई सुनने वाला नहीं था।” उनके पति लक्ष्मण सिंह भी उस वक्त नाबालिग थे। इस बाल विवाह ने दोनों की जिंदगी को मुश्किलों से भर दिया।

17 साल की उम्र में सोनू ने एक साथ तीन बच्चियों को जन्म दिया। अपनी बेटियों के चेहरों को देखते ही उनके मन में एक संकल्प जागा—उनकी बेटियां और कोई भी लड़की उस दर्द से नहीं गुजरेगी, जो उन्होंने झेला। सोनू कहती हैं, “जब मैंने अपनी बेटियों को देखा, तो मैंने ठान लिया कि मैं उनके अधिकारों की रक्षा करूंगी। मैं नहीं चाहती थी कि उनकी जिंदगी भी मेरी तरह बाल विवाह की भेंट चढ़े।”

बदलाव की शुरुआत

सोनू ने अपने दर्द को अपनी ताकत बनाया। उन्होंने अपने घर पर ही पड़ोस की लड़कियों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया, ताकि वह शिक्षा के महत्व को समझा सकें। इस दौरान उनके एक मित्र ने उन्हें राजस्थान महिला कल्याण मंडल (RMKM) के बारे में बताया, जो एक गैर-सरकारी संगठन है और बाल विवाह के खिलाफ काम करता है। सोनू की लगन और जुनून को देखते हुए RMKM ने उन्हें अपनी टीम में शामिल कर लिया। यहीं से उनकी जिंदगी ने एक नया मोड़ लिया।

आज 28 साल की सोनू गांव-गांव, स्कूल-स्कूल जाकर लोगों को बाल विवाह के दुष्परिणामों और इसके कानूनी पहलुओं के बारे में जागरूक करती हैं। वह बताती हैं कि बाल विवाह न केवल बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य पर बुरा असर डालता है, बल्कि यह उनके बचपन को भी छीन लेता है। उनकी मुहिम का असर यह है कि अब तक उन्होंने दर्जनों बाल विवाह रुकवाए हैं, जिससे कई लड़कियों का भविष्य संवरा है।

एक साहसी कदम

सोनू की हिम्मत और जुनून का एक उदाहरण तब सामने आया, जब उन्होंने एक बाल विवाह को रोकने के लिए करीब 50 किलोमीटर तक बारातियों का पीछा किया। बारातियों ने उन्हें धमकाने की कोशिश की, लेकिन सोनू ने हार नहीं मानी। उन्होंने RMKM के सदस्यों के साथ मिलकर हस्तक्षेप किया और बच्ची को इस कुरीति से बचा लिया। वह कहती हैं, “15 साल पहले जो डर मेरे मन में था, वो अब जुनून में बदल चुका है।”

सोनू के इस साहस को उनके पति लक्ष्मण सिंह का भी पूरा साथ मिला। बाल विवाह की कठिनाइयों को एक साथ झेलने के कारण लक्ष्मण ने भी इस मुहिम में उनकी बराबर की भागीदारी की। यह जोड़ी आज समाज में बदलाव की एक मिसाल बन चुकी है।

सामाजिक और कानूनी सहयोग

सोनू की इस लड़ाई में राजस्थान महिला कल्याण मंडल के साथ-साथ जिला प्रशासन, पुलिस, और जिला विधिक सेवा प्राधिकरण का भी सहयोग मिलता है। अक्षय तृतीया जैसे अवसरों पर, जब बाल विवाह की घटनाएं बढ़ जाती हैं, सोनू और उनकी टीम अतिरिक्त सतर्कता बरतती है। हाल ही में, 29 अप्रैल 2025 को अक्षय तृतीया के मौके पर RMKM ने प्रशासन और पुलिस के सहयोग से अजमेर जिले के विभिन्न क्षेत्रों—सिणगारा, भांवता, बुधवाड़ा, हनुतिया, और लोहरवाड़ा—में पांच बाल विवाह रुकवाए। इस मुहिम में धर्मगुरुओं का भी सहयोग लिया गया, जिन्होंने स्थानीय समुदाय को बाल विवाह के नुकसानों के प्रति जागरूक किया।

राजस्थान उच्च न्यायालय ने भी बाल विवाह के खिलाफ सख्त रुख अपनाया है। कोर्ट ने निर्देश दिया है कि जिस गांव में बाल विवाह होगा, वहां के सरपंच और पंचायत सदस्यों को जिम्मेदार ठहराया जाएगा। यह कानूनी समर्थन सोनू जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए एक बड़ा बल प्रदान करता है।

एक प्रेरणा का प्रतीक

सोनू की कहानी सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि एक पूरे समाज के बदलाव की कहानी है। वह कहती हैं, “लोग मुझे कहते हैं कि मैं घर तोड़ रही हूं, लेकिन मैं सिर्फ बच्चों का भविष्य बचा रही हूं।” उनकी यह बात समाज में फैली गलत धारणाओं को तोड़ने का काम करती है। सोनू ने न केवल अपनी बेटियों को शिक्षा और बेहतर भविष्य दिया, बल्कि अपने गांव और आसपास के इलाकों में कई लड़कियों को इस कुरीति से बचाया।

आज सोनू कंवर का नाम भांवता गांव से लेकर पूरे अजमेर जिले में सम्मान के साथ लिया जाता है। उनकी स्कूटी, जो कभी गांव की गलियों में धूल उड़ाती थी, अब बदलाव की एक मशाल बन चुकी है। वह हर उस लड़की के लिए एक उम्मीद हैं, जो अपने सपनों को उड़ान देना चाहती है।

सोनू कंवर की कहानी हमें सिखाती है कि बदलाव की शुरुआत एक व्यक्ति से हो सकती है, लेकिन उसका असर पूरे समाज को बदल सकता है। उनकी हिम्मत, दृढ़ता, और सामाजिक जागरूकता की भावना नई पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा है। अगर समाज और प्रशासन का सहयोग इसी तरह मिलता रहा, तो वह दिन दूर नहीं जब राजस्थान बाल विवाह मुक्त राज्य बन जाएगा। सोनू जैसे लोग इस सपने को हकीकत में बदलने की दिशा में एक मजबूत कदम हैं।

Yashaswani Journalist at The Khatak .