थार के हरे दिल पर कुल्हाड़ी: खेजड़ी वृक्षों का विनाश, सोलर कंपनियों की तानाशाही.

थार रेगिस्तान का हरा सोना, खेजड़ी, सोलर कंपनियों ENGIE और JAKSON GREEN की भेंट चढ़ रहा है। रात के अंधेरे में पवित्र वृक्षों को काटकर जलाया जा रहा है, जबकि विश्नोई समाज और ग्रामीणों की पुकार अनसुनी है। मुख्यमंत्री के "एक पेड़ मां के नाम" अभियान के बीच बाड़मेर-जैसलमेर में यह विनाश प्रकृति और आस्था पर करारी चोट है। प्रशासन की खामोशी से गुस्सा भड़क रहा है। क्या खेजड़ी की राख ही थार का भविष्य बनेगी?

Aug 3, 2025 - 17:54
थार के हरे दिल पर कुल्हाड़ी: खेजड़ी वृक्षों का विनाश, सोलर कंपनियों की तानाशाही.

बाड़मेर-जैसलमेर: राजस्थान के थार रेगिस्तान में विकास के नाम पर प्रकृति का विनाश चरम पर है। खेजड़ी, जो थार का हरा सोना और विश्नोई समाज की आस्था का प्रतीक है, आज राख में तब्दील हो रही है। सोलर कंपनियां ENGIE और JAKSON GREEN रात के अंधेरे में इन पवित्र वृक्षों को बेरहमी से काटकर आग के हवाले कर रही हैं। ग्रामीणों की आंखों के सामने उनके जीवन का आधार जल रहा है, लेकिन प्रशासन खामोश है। विश्नोई समाज, जिसने खेजड़ी की रक्षा के लिए 363 शहादतें दीं, आज फिर अपनी आस्था और पर्यावरण को बचाने के लिए संघर्षरत है।

खेजड़ी: थार का जीवन, विश्नोई समाज की आस्था

खेजड़ी वृक्ष थार रेगिस्तान का आधार है। यह न केवल मरुस्थल की मिट्टी को बांधता है, बल्कि पशुओं के लिए चारा, इंसानों के लिए छाया और औषधीय गुणों का खजाना है। विश्नोई समाज इसे माता के समान पूजता है। 1730 में खेजड़ी की रक्षा के लिए अमृता देवी और उनके समुदाय ने अपनी जान दी थी। आज, उसी खेजड़ी को सोलर प्रोजेक्ट्स के नाम पर नष्ट किया जा रहा है।  

सोलर कंपनियों का अंधेरा खेल

बाड़मेर और जैसलमेर में सौर ऊर्जा परियोजनाओं के लिए ENGIE और JAKSON GREEN जैसी कंपनियां बड़े पैमाने पर जमीन अधिग्रहण कर रही हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि ये कंपनियां रात के अंधेरे में JCB मशीनों से खेजड़ी वृक्षों को उखाड़ रही हैं और उन्हें जला रही हैं। शिव तहसील में ग्रामीणों के विरोध के बाद एक JCB जब्त की गई, लेकिन इसके बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। कंपनियों की तानाशाही के सामने प्रशासन मूकदर्शक बना हुआ है। ग्रामीणों का कहना है कि सौर पैनल लगाने के लिए हजारों खेजड़ी वृक्ष काटे जा चुके हैं। ये वृक्ष न केवल पर्यावरण संतुलन के लिए जरूरी हैं, बल्कि स्थानीय समुदाय की आजीविका का भी आधार हैं। कटाई और जलाने की प्रक्रिया इतनी गुपचुप तरीके से हो रही है कि ग्रामीणों को विरोध का मौका तक नहीं मिलता।  

प्रशासन की चुप्पी, ग्रामीणों का आक्रोश

स्थानीय प्रशासन पर सवाल उठ रहे हैं कि आखिर क्यों वह कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रहा? ग्रामीणों का कहना है कि उनकी शिकायतों को अनसुना किया जा रहा है। कुछ मामलों में पुलिस और प्रशासन ने कंपनियों का पक्ष लिया, जिससे ग्रामीणों में गुस्सा बढ़ रहा है। विश्नोई समाज और अन्य पर्यावरण प्रेमी इस विनाश के खिलाफ एकजुट हो रहे हैं, लेकिन उनकी आवाज को दबाने की कोशिश हो रही है।

"एक पेड़ मां के नाम" का विरोधाभास

मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा द्वारा शुरू किया गया "एक पेड़ मां के नाम" अभियान पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक सराहनीय कदम है। इस अभियान के तहत राजस्थान में लाखों पेड़ लगाए जा रहे हैं। जैसलमेर में ही इस अभियान के तहत महिलाओं की एक टीम ने एक घंटे में 25,000 पेड़ लगाकर विश्व रिकॉर्ड बनाया। लेकिन उसी राजस्थान में खेजड़ी वृक्षों का विनाश इस अभियान की भावना के खिलाफ है। ग्रामीण पूछ रहे हैं कि जब सरकार पर्यावरण संरक्षण की बात करती है, तो फिर खेजड़ी जैसे महत्वपूर्ण वृक्षों को क्यों नहीं बचाया जा रहा? 

विश्नोई समाज का संघर्ष

विश्नोई समाज के लिए खेजड़ी सिर्फ एक वृक्ष नहीं, बल्कि उनकी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पहचान है। 18वीं सदी में खेजड़ी की रक्षा के लिए दिए गए बलिदान आज भी समाज के लिए प्रेरणा हैं। आज फिर से समाज सड़कों पर उतर रहा है, प्रदर्शन कर रहा है और अपनी आवाज बुलंद कर रहा है। लेकिन सवाल यह है कि क्या उनकी यह पुकार सुनी जाएगी, या खेजड़ी राख होती रहेगी?

पर्यावरण पर खतरा

खेजड़ी वृक्ष मरुस्थल में मिट्टी के कटाव को रोकने और जैव विविधता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनके कटने से न केवल पर्यावरण को नुकसान हो रहा है, बल्कि स्थानीय समुदाय की आजीविका भी खतरे में है। सौर ऊर्जा जैसे स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों का विकास जरूरी है, लेकिन यह पर्यावरण के विनाश की कीमत पर नहीं होना चाहिए।

ग्रामीणों की मांग

ग्रामीण और विश्नोई समाज मांग कर रहे हैं कि:खेजड़ी वृक्षों की कटाई पर तत्काल रोक लगाई जाए। 

ENGIE और JAKSON GREEN जैसी कंपनियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो।

प्रशासन पारदर्शी जांच करे और दोषियों को दंडित करे।

सौर परियोजनाओं के लिए वैकल्पिक जमीनों का उपयोग हो, जहां वृक्षों को नुकसान न पहुंचे।

"एक पेड़ मां के नाम" अभियान को और प्रभावी बनाकर खेजड़ी जैसे स्थानीय वृक्षों को प्राथमिकता दी जाए। 

थार रेगिस्तान में खेजड़ी का विनाश केवल एक पर्यावरणीय मुद्दा नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक अन्याय की कहानी है। विकास और पर्यावरण संरक्षण में संतुलन जरूरी है। जब तक प्रशासन और कंपनियां ग्रामीणों की आवाज नहीं सुनेंगी, तब तक यह संघर्ष जारी रहेगा। खेजड़ी को बचाने के लिए एकजुट होने का समय है, क्योंकि अगर आज ये वृक्ष राख बने, तो कल थार का हरा भविष्य भी खतरे में होगा।

आवाज उठाएं, खेजड़ी बचाएं!