सुप्रीम कोर्ट ने आसाराम की अंतरिम जमानत याचिका पर सुनवाई से किया इनकार.

सुप्रीम कोर्ट ने आसाराम की अंतरिम जमानत बढ़ाने की याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया। जोधपुर में नाबालिग से रेप और गुजरात के मोटेरा आश्रम में साधिका से यौन शोषण के मामलों में उम्रकैद की सजा काट रहे आसाराम वर्तमान में मेडिकल आधार पर जमानत पर हैं। कोर्ट का यह फैसला दर्शाता है कि बार-बार अंतरिम राहत देने के पक्ष में वह नहीं है। उनकी जमानत राजस्थान और गुजरात हाई कोर्ट्स द्वारा 9 और 7 जुलाई 2025 तक बढ़ाई गई है।

Aug 1, 2025 - 16:17
सुप्रीम कोर्ट ने आसाराम की अंतरिम जमानत याचिका पर सुनवाई से किया इनकार.

जोधपुर और गुजरात के चर्चित रेप मामलों में उम्रकैद की सजा काट रहे आसाराम को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा निर्णय मिला है। शीर्ष कोर्ट ने उनकी अंतरिम जमानत बढ़ाने की याचिका पर सुनवाई करने से स्पष्ट रूप से मना कर दिया। यह फैसला दर्शाता है कि सुप्रीम कोर्ट अब बार-बार अंतरिम राहत देने के पक्ष में नहीं है। आसाराम, जो जोधपुर में नाबालिग से बलात्कार और गुजरात के मोटेरा आश्रम में एक साधिका के साथ कई वर्षों तक यौन शोषण के मामलों में दोषी ठहराए गए हैं, वर्तमान में अंतरिम जमानत पर जेल से बाहर हैं। उनकी जमानत हाल ही में राजस्थान और गुजरात हाई कोर्ट्स द्वारा बढ़ाई गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का यह रुख उनके लिए महत्वपूर्ण है।

आसाराम पर दो गंभीर मामलों में आरोप सिद्ध हुए हैं। पहला मामला जोधपुर का है, जहां 2013 में एक नाबालिग लड़की ने उनके आश्रम में यौन शोषण का आरोप लगाया। अप्रैल 2018 में जोधपुर की अदालत ने उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई। दूसरा मामला गुजरात के मोटेरा आश्रम से जुड़ा है, जहां एक महिला अनुयायी ने 2001 से 2006 तक बार-बार बलात्कार का आरोप लगाया। जनवरी 2023 में गांधीनगर की सत्र अदालत ने उन्हें उम्रकैद की सजा दी। आसाराम की कानूनी टीम ने उनकी उम्र (86 वर्ष) और स्वास्थ्य समस्याओं, जैसे हृदय रोग, का हवाला देकर बार-बार जमानत मांगी। जनवरी 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल आधार पर उन्हें अंतरिम जमानत दी थी, जिसके तहत वे जोधपुर के एक आयुर्वेदिक केंद्र में इलाज करवा रहे हैं। राजस्थान हाई कोर्ट ने उनकी जमानत 9 जुलाई 2025 तक और गुजरात हाई कोर्ट ने 7 जुलाई 2025 तक बढ़ाई थी। अब सुप्रीम कोर्ट ने जमानत बढ़ाने की याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अंतरिम जमानत को बार-बार बढ़ाना अनिश्चितकालीन प्रक्रिया नहीं हो सकती। कोर्ट ने माना कि मेडिकल आधार पर राहत संभव है, लेकिन आसाराम की याचिका में पर्याप्त आधार नहीं था। कोर्ट ने गुजरात सरकार से जवाब मांगा था, लेकिन स्पष्ट किया कि केवल ठोस चिकित्सकीय आधार पर ही राहत दी जाएगी।

कानूनी स्थिति

आसाराम की टीम का दावा है कि उनके खिलाफ मामले साजिश हैं और सबूत कमजोर हैं। जोधपुर और गुजरात मामलों में उनकी सजा निलंबन की अपील हाई कोर्ट्स में लंबित है। गुजरात हाई कोर्ट ने अगस्त 2024 में और राजस्थान हाई कोर्ट ने जनवरी 2025 में उनकी सजा निलंबन याचिका खारिज की थी। वकीलों ने उनकी उम्र और स्वास्थ्य के आधार पर राहत मांगी, जिसमें पुणे के माधवबाग अस्पताल में 90 दिनों की पंचकर्म थेरेपी शामिल थी। विपक्षी वकीलों ने कहा कि आसाराम इलाज के बहाने जेल से बाहर रहना चाहते हैं, जबकि जोधपुर में एम्स जैसे संस्थान मौजूद हैं।

सामाजिक प्रभाव

आसाराम का मामला धार्मिक गुरुओं की जवाबदेही और महिला सुरक्षा पर सवाल उठाता है। गवाहों पर हमले और साबरमती आश्रम में दो बच्चों की कथित हत्या जैसे अन्य आरोप भी चर्चा में रहे। सुप्रीम कोर्ट का फैसला दर्शाता है कि गंभीर अपराधों में दोषियों को बार-बार राहत देना न्याय को कमजोर कर सकता है।

वर्तमान स्थिति

आसाराम अंतरिम जमानत पर जोधपुर के आयुर्वेदिक केंद्र में इलाज करवा रहे हैं। उनकी जमानत राजस्थान हाई कोर्ट के आदेश से 9 जुलाई 2025 तक और गुजरात हाई कोर्ट के आदेश से 7 जुलाई 2025 तक वैध थी। सुप्रीम कोर्ट के इनकार के बाद उनकी कानूनी टीम का अगला कदम महत्वपूर्ण होगा। यदि हाई कोर्ट्स जमानत नहीं बढ़ाते, तो उन्हें जेल लौटना पड़ सकता है। यह मामला कानूनी, सामाजिक और धार्मिक दृष्टिकोण से चर्चा में बना रहेगा। आसाराम की भविष्य की रणनीति और कोर्ट का अंतिम फैसला इस मामले को नया मोड़ दे सकता है।