जोधपुर जेल से गूंजा सोनम वांगचुक का साहसी संकल्प,'न्याय न मिला तो जेल ही मेरा घर, लेह हिंसा की हो पूरी जांच!'

जोधपुर जेल में बंद सोनम वांगचुक ने लेह हिंसा में चार मौतों की स्वतंत्र न्यायिक जांच की मांग उठाई है। उन्होंने कहा, "जब तक न्याय नहीं मिलता, मैं जेल में रहूंगा।" लद्दाख की छठी अनुसूची और पूर्ण राज्य दर्जे की मांग को लेकर चल रहे आंदोलन के प्रमुख चेहरे वांगचुक ने शांति और एकता की अपील की, साथ ही मृतकों के परिवारों के प्रति संवेदना जताई। उनकी पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट में गिरफ्तारी को चुनौती दी है, सुनवाई 6 अक्टूबर को। LAB और KDA ने गृह मंत्रालय से बातचीत रद्द कर दी, जब तक मांगें पूरी न हों।

Oct 5, 2025 - 16:53
जोधपुर जेल से गूंजा सोनम वांगचुक का साहसी संकल्प,'न्याय न मिला तो जेल ही मेरा घर, लेह हिंसा की हो पूरी जांच!'

जोधपुर, 5 अक्टूबर 2025: लद्दाख के प्रसिद्ध पर्यावरण कार्यकर्ता और रेमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता सोनम वांगचुक ने जोधपुर सेंट्रल जेल की चारदीवारी से बाहर एक ऐसा संदेश दिया है, जो न सिर्फ उनकी दृढ़ता को दर्शाता है, बल्कि पूरे लद्दाख आंदोलन को नई ऊर्जा प्रदान कर रहा है। शनिवार को उनके बड़े भाई कात्सेतन दोरजे ले और वकील मुस्तफा हाजी से विशेष अनुमति पर हुई मुलाकात के दौरान वांगचुक ने स्पष्ट कहा- "जब तक लेह में हुई हिंसा की स्वतंत्र न्यायिक जांच का आदेश नहीं होता, मैं जेल में ही रहूंगा।" यह बयान लद्दाख के लोगों की संवैधानिक मांगों को लेकर छिड़े आंदोलन के बीच आया है, जहां 24 सितंबर को प्रदर्शनों के दौरान चार निर्दोषों की जान चली गई थी।

लद्दाख आंदोलन का पृष्ठभूमि: शांतिपूर्ण मांगों से हिंसा तक का सफर

लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने और संविधान की छठी अनुसूची (जो आदिवासी क्षेत्रों को विशेष सुरक्षा प्रदान करती है) लागू करने की मांग लंबे समय से चली आ रही है। 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद जम्मू-कश्मीर को केंद्रशासित प्रदेश बनाने के फैसले ने लद्दाख के स्थानीय निवासियों में असंतोष पैदा कर दिया था। लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) जैसे संगठनों के नेतृत्व में चले शांतिपूर्ण आंदोलन ने हाल ही में तीव्रता पकड़ ली। सोनम वांगचुक, जो लद्दाख के शिक्षा सुधार और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर सक्रिय हैं, इस आंदोलन के प्रमुख चेहरे बन चुके थे।लेकिन 24 सितंबर को लेह में हुए बड़े प्रदर्शन के दौरान स्थिति बेकाबू हो गई। प्रदर्शनकारियों और सुरक्षाबलों के बीच झड़पों में एक पूर्व सैनिक सहित चार लोगों की मौत हो गई, जबकि 90 से अधिक लोग घायल हुए। हिंसा के तुरंत बाद प्रशासन ने कर्फ्यू लगा दिया, जो कई दिनों तक जारी रहा। इसके अलावा, 50 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया। इन घटनाओं ने पूरे क्षेत्र में तनाव बढ़ा दिया और स्थानीय लोगों ने सरकार पर दमनकारी रवैया अपनाने का आरोप लगाया।

जेल से निकला भावुक संदेश: शांति, संवेदना और न्याय की पुकार

जोधपुर सेंट्रल जेल में राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत बंद सोनम वांगचुक ने अपने भाई और वकील के माध्यम से जारी संदेश में सबसे पहले अपनी सेहत का जिक्र किया। उन्होंने कहा, "मैं शारीरिक और मानसिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ हूं। सभी की चिंता और प्रार्थनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद।" लेकिन संदेश का असली भावुक मोड़ तब आया जब उन्होंने मृतकों के परिवारों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की। "मेरी हार्दिक संवेदनाएं उन परिवारों के साथ हैं जिन्होंने अपनी जान गंवाई, और मेरी प्रार्थनाएं घायलों व गिरफ्तार लोगों के साथ हैं।"वांगचुक ने स्पष्ट शब्दों में शांति और एकता की अपील की। उन्होंने लद्दाख के लोगों से कहा कि आंदोलन को शांतिपूर्ण रखा जाए, लेकिन न्याय के बिना पीछे नहीं हटना चाहिए। उनकी मुख्य मांग रही- लेह हिंसा में चार मौतों की स्वतंत्र न्यायिक जांच। उन्होंने जोर देकर कहा, "हमारे चार लोगों की हत्या की एक स्वतंत्र न्यायिक जांच होनी चाहिए। जब तक ऐसा नहीं होता, मैं जेल में रहने के लिए तैयार हूं।" साथ ही, उन्होंने LAB और KDA की छठी अनुसूची तथा राज्य दर्जा पाने की 'वास्तविक संवैधानिक मांग' में पूर्ण समर्थन जताया। "मैं लद्दाख के लोगों के साथ दृढ़ता से खड़ा हूं," उन्होंने कहा।यह संदेश KDA के नेता सज्जाद कारगिली ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व ट्विटर) पर शेयर किया, जिसके बाद यह वायरल हो गया। कई विपक्षी नेता, जैसे कांग्रेस के राहुल गांधी ने भी इसे रीट्वीट कर सरकार पर निशाना साधा। राहुल ने लिखा, "लद्दाख के अद्भुत लोग भाजपा-आरएसएस के निशाने पर हैं। चार युवकों की हत्या कर दी गई, सोनम को जेल में डाल दिया। हत्या-हिंसा-धमकी बंद करो, लद्दाख को आवाज दो!"

कानूनी लड़ाई तेज: सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई 6 अक्टूबर को

सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी को लेकर कानूनी जंग भी गरमाती जा रही है। 26 सितंबर को लेह में गिरफ्तार करने के कुछ दिनों बाद ही उन्हें जोधपुर जेल स्थानांतरित कर दिया गया, जहां उनकी मेडिकल जांच और सीसीटीवी निगरानी हो रही है। उनकी पत्नी गीतांजलि जे अंगमो ने 2 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 32 के तहत याचिका दाखिल की, जिसमें गिरफ्तारी को 'गैरकानूनी, असंवैधानिक और मनमाना' बताया गया। याचिका में कहा गया कि वांगचुक शांतिपूर्ण आंदोलन चला रहे थे, हिंसा के आरोप झूठे हैं। साथ ही, NSA लगाने के फैसले पर सवाल उठाए गए। वरिष्ठ वकील विवेक तन्खा और अधिवक्ता सर्वम ऋतम खरे ने इस याचिका को दाखिल किया है।सुप्रीम कोर्ट ने मामले को 6 अक्टूबर के लिए सूचीबद्ध कर लिया है। याचिका में मांग की गई है कि वांगचुक को तुरंत अदालत में पेश किया जाए, उनकी रिहाई हो और लद्दाख प्रशासन को उत्पीड़न बंद करने का आदेश दिया जाए। गीतांजलि ने कहा, "हमें एक हफ्ते से ज्यादा समय से पति की कोई खबर नहीं मिल रही। यह लोकतांत्रिक असहमति को कुचलने की साजिश है।"

आंदोलन का अगला कदम: गृह मंत्रालय से बातचीत रद्द

वांगचुक के संदेश के ठीक बाद LAB और KDA ने बड़ा फैसला लिया। दोनों संगठनों ने 6 अक्टूबर को गृह मंत्रालय के अधिकारियों के साथ होने वाली प्रस्तावित बातचीत से हटने का ऐलान कर दिया। उनका कहना है कि चार मौतों की न्यायिक जांच, सभी गिरफ्तारियों (वांगचुक सहित) की बिना शर्त रिहाई और छात्रों पर उत्पीड़न बंद न होने तक कोई वार्ता नहीं होगी। स्थानीय लोगों ने मजिस्ट्रेट जांच को अपर्याप्त बताते हुए न्यायिक जांच की मांग तेज कर दी है।

व्यापक प्रभाव: लद्दाख की आवाज बने वांगचुक

सोनम वांगचुक का यह संदेश न सिर्फ लद्दाख के लिए न्याय की लड़ाई को मजबूत कर रहा है, बल्कि पूरे देश में संवैधानिक अधिकारों और शांतिपूर्ण विरोध के महत्व पर बहस छेड़ रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचने से केंद्र सरकार पर दबाव बढ़ेगा। फिलहाल, जोधपुर जेल से निकलने वाली यह आवाज लद्दाख की पहाड़ियों तक गूंज रही है- न्याय मिलेगा, तो ही चैन मिलेगा।