जापान दौरे के बाद 7 साल बाद चीन पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी....

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सात साल बाद चीन के तियानजिन पहुंचे, जहां वे 31 अगस्त से 1 सितंबर 2025 तक होने वाले SCO शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। इस दौरान वे चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और अन्य वैश्विक नेताओं से मुलाकात करेंगे। यह समिट वैश्विक तनाव और अमेरिकी टैरिफ युद्ध के बीच क्षेत्रीय सुरक्षा, व्यापार और सहयोग के लिए महत्वपूर्ण है। भारत अपनी स्वतंत्र विदेश नीति को मजबूत करते हुए वैश्विक दक्षिण की एकता पर जोर देगा।

Aug 30, 2025 - 17:44
जापान दौरे के बाद 7 साल बाद चीन पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी....

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सात साल बाद चीन की धरती पर कदम रख चुके हैं। वे 31 अगस्त से 1 सितंबर 2025 तक तियानजिन में आयोजित होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने पहुंचे हैं। यह यात्रा 2020 के गलवान घाटी संघर्ष के बाद उनकी पहली चीन यात्रा है, जो इसे राजनयिक और सामरिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण बनाती है। इस दौरान पीएम मोदी चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन सहित 20 से अधिक वैश्विक नेताओं से मुलाकात करेंगे। यह समिट वैश्विक दक्षिण की एकता और क्षेत्रीय सहयोग को मजबूत करने का एक बड़ा मंच साबित होने जा रहा है।

तियानजिन में भव्य स्वागत, भारतीय समुदाय में उत्साह

30 अगस्त 2025 को जापान की दो दिवसीय यात्रा पूरी करने के बाद पीएम मोदी तियानजिन पहुंचे। हवाई अड्डे पर उनका रेड कार्पेट बिछाकर और चीनी सांस्कृतिक प्रदर्शन के साथ भव्य स्वागत किया गया। भारतीय समुदाय ने भी होटल में उनका जोरदार स्वागत किया, जहां 'भारत माता की जय' और 'वंदे मातरम' के नारे गूंजे। पीएम मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर अपनी उत्सुकता जाहिर करते हुए लिखा, "चीन के तियानजिन पहुंच गया हूं। SCO शिखर सम्मेलन में विचार-विमर्श और विभिन्न विश्व नेताओं से मुलाकात के लिए उत्सुक हूं।" 

SCO समिट का महत्व: वैश्विक मंच पर नया संदेश

यह SCO शिखर सम्मेलन 2001 में संगठन की स्थापना के बाद सबसे बड़ा आयोजन माना जा रहा है। इसमें 10 सदस्य देशों (चीन, रूस, भारत, पाकिस्तान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान, ईरान, बेलारूस) के अलावा संयुक्त राष्ट्र महासचिव और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे। समिट का मुख्य एजेंडा क्षेत्रीय सुरक्षा, आतंकवाद, व्यापार सहयोग, और बहुपक्षीय सहयोग पर केंद्रित होगा। विशेषज्ञों का मानना है कि यह मंच वैश्विक दक्षिण के देशों को एकजुट करने और पश्चिमी देशों के प्रभाव के खिलाफ एक वैकल्पिक शक्ति केंद्र स्थापित करने का अवसर प्रदान करेगा। 

वैश्विक परिदृश्य में समिट की प्रासंगिकता

यह सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है जब वैश्विक स्तर पर कई चुनौतियां सामने हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध, इजराइल-हमास संघर्ष, और दक्षिण एशिया व एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा तनाव ने वैश्विक कूटनीति को जटिल बना दिया है। इसके अलावा, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों, विशेष रूप से भारतीय वस्तुओं और रूसी तेल की खरीद पर 50% तक टैरिफ लगाने के फैसले ने भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव पैदा किया है। ऐसे में, SCO समिट भारत, चीन, और रूस जैसे देशों को एक साथ लाकर वैश्विक आर्थिक और सामरिक संतुलन में नई संभावनाएं तलाशने का अवसर देगा।

भारत-चीन संबंधों में नया मोड़.

2020 में गलवान घाटी में हिंसक झड़प के बाद भारत और चीन के संबंध तनावपूर्ण रहे हैं। हालांकि, हाल के कूटनीतिक प्रयासों और समझौतों ने दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली की दिशा में प्रगति दिखाई है। पीएम मोदी और शी जिनपिंग की मुलाकात 31 अगस्त को प्रस्तावित है, जिसमें पूर्वी लद्दाख सीमा विवाद पर तनाव कम करने, व्यापारिक संबंधों को मजबूत करने, और सीधी उड़ानों को फिर से शुरू करने जैसे मुद्दों पर चर्चा होने की उम्मीद है। यह मुलाकात दोनों देशों के लिए एक नया अध्याय शुरू करने का मौका हो सकती है।

त्रिपक्षीय गतिशीलता: मोदी, शी, और पुतिन

इस समिट में पीएम मोदी, शी जिनपिंग, और व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात को वैश्विक कूटनीति में एक ऐतिहासिक क्षण माना जा रहा है। ये तीनों नेता आखिरी बार 2024 में रूस के कजान में BRICS शिखर सम्मेलन में एक मंच पर नजर आए थे। रूस और चीन के साथ भारत की बढ़ती निकटता, विशेष रूप से अमेरिका के टैरिफ युद्ध के संदर्भ में, वैश्विक शक्ति संतुलन को प्रभावित कर सकती है। हालांकि, त्रिपक्षीय बैठक की कोई औपचारिक पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन रूसी अधिकारियों ने इसके लिए उम्मीद जताई है। 

भारत की स्वतंत्र विदेश नीति

भारत इस समिट के जरिए अपनी "मल्टी-अलाइनमेंट" नीति को मजबूत करने की कोशिश करेगा। जापान यात्रा के बाद तियानजिन पहुंचकर पीएम मोदी यह संदेश दे रहे हैं कि भारत न तो पूरी तरह अमेरिका के साथ है और न ही चीन के सामने झुकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह यात्रा भारत की स्वतंत्र विदेश नीति को रेखांकित करती है, जो किसी एक धुरी पर निर्भर न होकर क्षेत्रीय और वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देती है।

पीएम नरेंद्र मोदी की तियानजिन यात्रा और SCO समिट में उनकी भागीदारी भारत की वैश्विक कूटनीति में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह समिट न केवल भारत-चीन संबंधों को बेहतर करने का अवसर देगा, बल्कि वैश्विक दक्षिण की एकता और क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देने में भी योगदान देगा। यह यात्रा भारत की स्वतंत्र और संतुलित विदेश नीति को मजबूत करने का एक और प्रमाण है।