जानिए क्या है मारवाड़ का सोना: केर और सांगरी – रेगिस्तान की धरोहर और स्वाद की कहानी

मारवाड़ की माटी में रेगिस्तान की तपिश के बीच खिलता है जीवन का अनमोल स्वाद – केर और सांगरी। बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर जैसे क्षेत्रों में यह प्रकृति का खजाना हर थाली का गौरव है। अप्रैल-मई में खेजड़ी के पेड़ और केर के झाड़ फलियों व फलों से लद जाते हैं, और गांवों में रौनक छा जाती है। सड़क किनारे लारियों पर बिकते हरे और सूखे केर-सांगरी न केवल स्वाद, बल्कि मेहनत और संस्कृति की कहानी कहते हैं। विक्रेताओं की जिंदगी से लेकर मारवाड़ी थाली तक, यह व्यंजन प्रकृति और परंपरा का अनूठा संगम है। बाड़मेर के बाजारों में यह धरोहर न केवल स्थानीय गर्व है, बल्कि विश्व भर में राजस्थान की पहचान को मजबूत करती है। आइए, इस स्वाद और कहानी के सफर में शामिल हों।

Apr 13, 2025 - 17:23
जानिए क्या है मारवाड़ का सोना: केर और सांगरी – रेगिस्तान की धरोहर और स्वाद की कहानी
बाजार में बिकते केर और साँगरी

मारवाड़ की माटी, वह पवित्र धरती जहां रेगिस्तान की तपिश भी जीवन की रंगत को फीका नहीं कर पाती। यह भूमि, जो अपनी समृद्ध संस्कृति, गौरवशाली इतिहास और अनूठी परंपराओं के लिए विश्व भर में विख्यात है, एक ऐसी अनमोल देन के लिए भी जानी जाती है, जिसने स्वाद और सुगंध की दुनिया में अपनी अमिट छाप छोड़ी है – केर और सांगरी। राजस्थान के बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर, नागौर और बीकानेर जैसे क्षेत्रों में ये दोनों प्रकृति के अनमोल रत्न हर घर की थाली का अभिन्न हिस्सा हैं। ये न केवल भोजन का स्वाद बढ़ाते हैं, बल्कि मारवाड़ के लोगों के संघर्ष, धैर्य और प्रकृति के साथ सामंजस्य की कहानी भी कहते हैं।

#### केर और सांगरी का मौसम: रेगिस्तान में उत्सव
हर साल अप्रैल से मई के बीच, जब खेजड़ी के पेड़ और केर के झाड़ हरे-भरे फलों और फलियों से लद जाते हैं, तब मारवाड़ के गांवों में उत्सव-सा माहौल छा जाता है। केर, एक छोटा-सा कांटेदार फल, जो रेगिस्तान की कठिन परिस्थितियों में भी अपनी जगह बनाता है, और सांगरी, खेजड़ी की लंबी, पतली फलियां, जो पेड़ की शाखाओं पर लटकती हैं – ये दोनों प्रकृति का ऐसा उपहार हैं, जो ताजा हों या सूखे, हर रूप में अनमोल हैं। सूखने के बाद इनका स्वाद और मूल्य दोनों बढ़ जाते हैं, जिसके चलते इन्हें “मारवाड़ का सोना” कहा जाता है। इनकी मांग अब स्थानीय बाजारों तक सीमित नहीं रही, बल्कि देश-विदेश की रसोइयों में भी यह जोड़ी अपनी जगह बना चुकी है।

#### बाड़मेर का बाजार: मेहनत और महक का मेल
बाड़मेर की सड़कों पर इन दिनों एक अलग ही चहल-पहल देखने को मिलती है। सड़क किनारे रंग-बिरंगी लारियां सजी होती हैं, जहां हरी और सूखी केर और सांगरी की महक हवा में तैरती है। गांवों से सुबह तड़के तोड़कर लाए गए ये अनमोल रत्न स्थानीय लोग बड़े चाव और मेहनत से बेचते हैं। कोई हरी सांगरी और केर खरीदकर ताजा स्वाद का आनंद लेता है, तो कोई सूखी हुई फलियां और फल साल भर के लिए अपने घर ले जाता है। ये लारियां सिर्फ व्यापार का केंद्र नहीं, बल्कि मारवाड़ की जीवंत संस्कृति, मेहनत और प्रकृति के प्रति गहरे लगाव का प्रतीक हैं। हर लारी पर बिकने वाला एक-एक दाना उस मेहनत की कहानी कहता है, जो रेगिस्तान की तपती धूप में की जाती है।

#### एक विक्रेता की कहानी: मंगलाराम का जुनून
आइए, अब सुनते हैं एक ऐसे मेहनती विक्रेता की कहानी, जो हर सुबह अपनी लारी को केर और सांगरी से सजाकर बाड़मेर की सड़कों पर निकलता है। मंगलाराम, एक 45 वर्षीय किसान और विक्रेता, पिछले बीस सालों से इस काम में जुटा है। वह बताता है, “सुबह चार बजे उठकर मैं और मेरी पत्नी खेजड़ी के पेड़ों और केर के झाड़ों से फलियां और फल तोड़ने जाते हैं। गर्मी हो या धूल भरी आंधी, काम नहीं रुकता। क्योंकि यही हमारी रोजी-रोटी है, यही हमारा गर्व है।” मंगलाराम की लारी पर हर तरह के खरीदार आते हैं – स्थानीय गृहिणियां जो अपनी थाली को मारवाड़ी स्वाद से सजाना चाहती हैं, पर्यटक जो इस अनोखे स्वाद को अपने साथ ले जाना चाहते हैं, और व्यापारी जो इसे बड़े शहरों में बेचने के लिए खरीदते हैं। मंगलाराम के लिए केर और सांगरी सिर्फ सब्जी नहीं, बल्कि उनकी मेहनत, परिवार और मारवाड़ की माटी से जुड़ाव का प्रतीक हैं। उनकी मुस्कान और आतिथ्य हर खरीदार को बांध लेता है।

#### एक और शख्स, एक और कहानी: शांति देवी का गर्व
अब मिलते हैं शांति देवी से, जो बाड़मेर के पास एक छोटे से गांव में रहती हैं। उनके लिए केर और सांगरी सिर्फ आजीविका का साधन नहीं, बल्कि उनकी संस्कृति और परंपराओं का हिस्सा हैं। वह कहती हैं, “हमारी मां और दादी हमें सिखाती थीं कि खेजड़ी का पेड़ हमारा जीवन है। इसकी फलियां, छाया और लकड़ी – सब कुछ अनमोल है। सांगरी तोड़ना, सुखाना और बेचना मेरे लिए पूजा की तरह है।” शांति देवी की छोटी-सी लारी पर हर दिन दर्जनों लोग आते हैं। उनकी मेहनत और लगन से सजी लारी न केवल केर-सांगरी बेचती है, बल्कि मारवाड़ की कहानी को भी जीवित रखती है। उनके लिए यह काम सिर्फ व्यापार नहीं, बल्कि अपनी धरोहर को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का जरिया है। उनकी बातों में गर्व और आत्मविश्वास झलकता है, जब वह बताती हैं कि उनकी सांगरी बड़े-बड़े शहरों तक पहुंचती है।

#### मारवाड़ी थाली का दिल: केर-सांगरी की सब्जी
केर और सांगरी सिर्फ बाजार की शान ही नहीं, बल्कि मारवाड़ी थाली का दिल भी हैं। इस व्यंजन को तैयार करने की प्रक्रिया अपने आप में एक कला है। सूखी सांगरी को रात भर पानी में भिगोकर नरम किया जाता है, फिर केर के साथ देसी मसालों – जीरा, धनिया, लाल मिर्च, हींग और अमचूर – के साथ धीमी आंच पर पकाया जाता है। जब यह व्यंजन थाली में आता है, तो इसका स्वाद और सुगंध ऐसा होता है कि हर कोई इसका दीवाना हो जाता है। यह सब्जी न केवल स्वादिष्ट है, बल्कि पौष्टिक भी है। इसमें प्रोटीन, फाइबर और खनिज प्रचुर मात्रा में होते हैं, जो इसे रेगिस्तान के कठिन जीवन के लिए आदर्श बनाते हैं। खास बात यह है कि सूखी सांगरी और केर को महीनों तक संरक्षित किया जा सकता है, जिससे यह मारवाड़ के लोगों के लिए साल भर का साथी बन जाता है।

#### प्रकृति और संस्कृति का तालमेल
बाड़मेर का यह बाजार सिर्फ केर और सांगरी की बिक्री का गवाह नहीं है। यह मेहनत, समर्पण और प्रकृति के साथ तालमेल की कहानी कहता है। खेजड़ी का पेड़, जो रेगिस्तान में जीवन का आधार है, और केर के छोटे-छोटे फल, जो कांटों के बीच भी अपनी जगह बनाते हैं – ये दोनों मारवाड़ के लोगों की तरह ही जुझारू और जीवट हैं। खेजड़ी को राजस्थान का राज्य वृक्ष होने का गौरव प्राप्त है, और यह पेड़ न केवल सांगरी देता है, बल्कि छाया, जलावन और मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने में भी मदद करता है। हर लारी, हर विक्रेता और हर खरीदार इस कहानी का हिस्सा है। यह बाजार सिर्फ व्यापार का केंद्र नहीं, बल्कि एक ऐसी धरोहर का प्रतीक है, जो पीढ़ियों से चली आ रही है।

#### विश्व में मारवाड़ की पहचान
केर और सांगरी की लोकप्रियता अब राजस्थान की सीमाओं को पार कर चुकी है। देश-विदेश के रेस्तरां और रसोईघरों में मारवाड़ी व्यंजनों की मांग बढ़ रही है। सूखी सांगरी और केर को ऑनलाइन बाजारों में भी बेचा जा रहा है, जिससे यह उन लोगों के लिए भी उपलब्ध है जो रेगिस्तान की इस धरोहर का स्वाद लेना चाहते हैं। विदेशों में रहने वाले राजस्थानी परिवार इसे अपनी थाली का हिस्सा बनाते हैं, ताकि अपनी जड़ों से जुड़े रहें। यह सिर्फ एक सब्जी नहीं, बल्कि मारवाड़ की आत्मा, उसकी मेहनत और उसकी कहानी का प्रतीक है। बड़े शहरों के मशहूर रेस्तरां से लेकर छोटे-छोटे ढाबों तक, केर-सांगरी की सब्जी हर जगह अपनी छाप छोड़ रही है।

#### एक न्योता: मारवाड़ की आत्मा का स्वाद
तो अगली बार जब आप बाड़मेर की सड़कों पर निकलें और किसी लारी पर केर और सांगरी की महक आपको बुलाए, तो रुक जाइए। उस महक में न केवल स्वाद, बल्कि मारवाड़ की माटी की कहानी, विक्रेताओं की मेहनत और प्रकृति का आशीर्वाद छिपा है। एक थाली में केर-सांगरी की सब्जी परोसिए, और स्वाद के साथ-साथ मारवाड़ की आत्मा को भी महसूस कीजिए। क्योंकि यह सिर्फ भोजन नहीं, बल्कि एक संस्कृति, एक धरोहर और एक अनमोल रिश्ता है – प्रकृति और इंसान के बीच का। चाहे आप इसे ताजा खाएं या सूखा, यह व्यंजन हर बार आपको रेगिस्तान की उस जादुई दुनिया में ले जाएगा, जहां हर दाने में मेहनत और प्यार की कहानी बसी है।

Ashok Shera "द खटक" एडिटर-इन-चीफ