जोधपुर में आयकर अधिकारियों को रिश्वतखोरी में 4 साल की सजा.
जोधपुर में सीबीआई ने रिश्वतखोर आयकर अधिकारियों को सबक सिखाया! तत्कालीन चीफ कमिश्नर पवन कुमार शर्मा और अधिकारी शैलेंद्र भंडारी को 15 लाख की रिश्वत लेते रंगे हाथ पकड़ा गया था। 10 साल की कानूनी लड़ाई के बाद विशेष कोर्ट ने दोनों को 4 साल की सजा और जुर्माना सुनाया। ज्वैलर चंद्रप्रकाश कट्टा बरी हुए। भ्रष्टाचार के खिलाफ यह फैसला एक जोरदार तमाचा है!

जोधपुर के विशेष सीबीआई कोर्ट ने भ्रष्टाचार के एक हाई-प्रोफाइल मामले में आयकर विभाग के दो वरिष्ठ अधिकारियों को दोषी ठहराते हुए चार साल की सजा सुनाई है। दोषी करार दिए गए अधिकारियों में तत्कालीन आयकर चीफ कमिश्नर पवन कुमार शर्मा और आयकर अधिकारी शैलेंद्र भंडारी शामिल हैं। दोनों पर एक व्यवसायी से 15 लाख रुपये की रिश्वत लेने का आरोप सिद्ध हुआ। विशेष न्यायाधीश भूपेंद्र सनाढ्य ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए दोनों अधिकारियों को चार साल की कारावास की सजा के साथ-साथ जुर्माना भी लगाया। वहीं, इस मामले में शामिल ज्वैलरी शोरूम मालिक चंद्रप्रकाश कट्टा को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया।
मामले की पृष्ठभूमि:
यह मामला 31 मार्च 2015 का है, जब केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने जोधपुर में एक सुनियोजित कार्रवाई के तहत दोनों आयकर अधिकारियों को रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार किया था। मामला एक व्यवसायी से जुड़ा था, जिसका आयकर विभाग में एक टैक्स से संबंधित मामला लंबित था। इस केस को सुलझाने के लिए व्यवसायी ने पहले आयकर अधिकारी शैलेंद्र भंडारी से संपर्क किया। भंडारी ने इस मामले को तत्कालीन चीफ कमिश्नर पवन कुमार शर्मा तक पहुंचाया। सीबीआई के अनुसार, दोनों अधिकारियों ने व्यवसायी के केस को निपटाने के एवज में शुरू में 25 लाख रुपये की रिश्वत मांगी थी। लंबी बातचीत के बाद यह राशि 15 लाख रुपये में तय हुई। रिश्वत की इस मांग से परेशान व्यवसायी ने सीबीआई से संपर्क किया और पूरी योजना की जानकारी दी। सीबीआई ने तुरंत एक जाल बिछाया और 31 मार्च 2015 को पवन कुमार शर्मा और शैलेंद्र भंडारी को 15 लाख रुपये की रिश्वत लेते हुए पकड़ लिया। इस ऑपरेशन में ज्वैलरी शोरूम मालिक चंद्रप्रकाश कट्टा का नाम भी सामने आया, लेकिन कोर्ट ने उन्हें दोषमुक्त कर दिया।
कोर्ट की कार्रवाई और फैसला:
इस मामले की सुनवाई विशेष सीबीआई कोर्ट में लगभग 10 साल तक चली। इस दौरान सीबीआई ने कई गवाहों और सबूतों के आधार पर यह साबित किया कि दोनों आयकर अधिकारियों ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए रिश्वत की मांग की और उसे स्वीकार किया। कोर्ट ने पाया कि पवन कुमार शर्मा और शैलेंद्र भंडारी ने भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत अपराध किया। न्यायाधीश भूपेंद्र सनाढ्य ने दोनों अधिकारियों को चार साल की सजा और जुर्माना लगाने का आदेश दिया। हालांकि, चंद्रप्रकाश कट्टा के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं मिले, जिसके कारण उन्हें बरी कर दिया गया। यह फैसला भ्रष्टाचार के खिलाफ एक कड़ा संदेश देता है और यह दर्शाता है कि सरकारी अधिकारियों को अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करने की कीमत चुकानी पड़ सकती है।
सामाजिक और कानूनी महत्व:
यह मामला जोधपुर में चर्चा का विषय बना हुआ है, क्योंकि यह भ्रष्टाचार के खिलाफ सीबीआई की प्रभावी कार्रवाई और न्यायिक प्रणाली की निष्पक्षता को दर्शाता है। रिश्वतखोरी जैसे अपराधों के खिलाफ कठोर सजा से आम जनता में यह विश्वास मजबूत होता है कि कानून के सामने कोई भी अछूता नहीं है, चाहे वह कितना भी बड़ा अधिकारी क्यों न हो। इसके साथ ही, इस मामले ने आयकर विभाग जैसे महत्वपूर्ण सरकारी संस्थानों में पारदर्शिता और जवाबदेही की आवश्यकता को भी उजागर किया है। व्यवसायी द्वारा सीबीआई को समय पर सूचना देने से यह मामला सामने आया, जो यह दर्शाता है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आम नागरिकों की सजगता भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
जोधपुर के इस मामले में दोषी आयकर अधिकारियों को मिली सजा भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह फैसला न केवल भ्रष्ट अधिकारियों के लिए एक सबक है, बल्कि समाज को यह संदेश भी देता है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने से बदलाव संभव है।