जैसलमेर की दो पाकिस्तानी दुल्हनों का सपना टूटा, शादी के बाद डेढ़ बाद इंतजार कर 13 दिन पहले ही आई थी ससुराल 

जैसलमेर के देवीकोट गांव में 11 अप्रैल 2025 को आई दो पाकिस्तानी दुल्हनें, सचुल और करमा खातून, को पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत सरकार के आदेश के कारण 48 घंटे में पाकिस्तान लौटना होगा। डेढ़ साल बाद अपने पतियों सालेह मोहम्मद और मुश्ताक अली के साथ ससुराल आई इन दुल्हनों के परिवार सदमे में हैं। सरकार ने वीजा रद्द कर अटारी-वाघा बॉर्डर बंद किया, जिससे सीमावर्ती गांवों में रहने वाले अन्य पाकिस्तानी नागरिक भी प्रभावित हुए। परिवार मानवीय आधार पर रहने की अपील कर रहे हैं, लेकिन प्रशासन सख्ती बरत रहा है।

Apr 27, 2025 - 08:52
जैसलमेर की दो पाकिस्तानी दुल्हनों का सपना टूटा, शादी के बाद डेढ़ बाद इंतजार कर 13 दिन पहले ही आई थी ससुराल 

जैसलमेर के रेगिस्तानी गांव देवीकोट में दो पाकिस्तानी दुल्हनें, सचुल (22) और करमा खातून (21), अपने नए जीवन की शुरुआत के सपने संजोए 11 अप्रैल 2025 को भारत पहुंची थीं। डेढ़ साल के इंतजार और वीजा की लंबी प्रक्रिया के बाद, दोनों अपने भारतीय पतियों, सालेह मोहम्मद और मुश्ताक अली, के साथ ससुराल में खुशी-खुशी दिन बिता रही थीं। लेकिन यह खुशी महज 13 दिन की मेहमान साबित हुई। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल 2025 को हुए आतंकी हमले ने न केवल देश को हिलाकर रख दिया, बल्कि इन दो दुल्हनों के जीवन को भी उथल-पुथल में डाल दिया। भारत सरकार के एक कड़े फैसले ने सचुल और करमा को 48 घंटे के भीतर पाकिस्तान लौटने का आदेश दे दिया, जिससे इनके परिवारों में मायूसी और अनिश्चितता का माहौल छा गया है।

सचुल और करमा की कहानी किसी बॉलीवुड फिल्म से कम नहीं थी। जुलाई 2023 में जैसलमेर के दो चचेरे भाई, सालेह मोहम्मद और मुश्ताक अली, पाकिस्तान के सिंध प्रांत के घोटकी जिले में अपने रिश्तेदारों से मिलने गए थे। यहीं उनकी मुलाकात सचुल और करमा से हुई। पहली नजर का प्यार जल्द ही रिश्ते में बदल गया, और अगस्त 2023 में दोनों जोड़ियों का निकाह हो गया। लेकिन वीजा की जटिल प्रक्रियाओं ने दुल्हनों को भारत आने से डेढ़ साल तक रोके रखा। इस दौरान दोनों परिवारों ने वीडियो कॉल और पत्रों के जरिए अपने रिश्ते को जिंदा रखा। आखिरकार, अप्रैल 2025 में वीजा मिलने के बाद सचुल और करमा जैसलमेर पहुंचीं। गांव में उनका स्वागत ढोल-नगाड़ों और खुशियों के साथ हुआ। लेकिन किसे पता था कि यह खुशी इतनी अल्पकालिक होगी?

22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर दिया। इस हमले में 26 लोगों की जान चली गई, और भारत ने इसे पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से जोड़ा। इसके जवाब में भारत सरकार ने कड़े कदम उठाए। अटारी-वाघा बॉर्डर को बंद कर दिया गया, पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा रद्द कर दिए गए, और उन्हें 48 घंटे के भीतर भारत छोड़ने का आदेश जारी हुआ। इस फैसले का असर जैसलमेर के उन परिवारों पर भी पड़ा, जिनके रिश्ते सीमा पार से जुड़े थे। सचुल और करमा, जो अभी अपनी ससुराल की देहरी पर कदम रख रही थीं, अब अनचाहे अपने मायके लौटने को मजबूर हैं।

इस आदेश ने दोनों परिवारों को गहरे सदमे में डाल दिया। मुश्ताक अली की तबीयत इस खबर से इतनी बिगड़ गई कि उन्हें जोधपुर के अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। करमा खातून की स्थिति और भी दयनीय है। उनकी मां का निधन हो चुका है, और पिता अरब देशों में मजदूरी करते हैं। पाकिस्तान में उनका कोई ठिकाना नहीं है। करमा ने रोते हुए कहा, "हम अपने पति और ससुराल को छोड़कर कहां जाएंगे? हमारा घर तो यहीं है।" सचुल ने भी भारत सरकार से मानवीय आधार पर उन्हें रहने की अनुमति देने की गुहार लगाई। सालेह मोहम्मद ने बताया कि उन्होंने स्थानीय प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन सरकार का आदेश सख्त है।

जैसलमेर पुलिस और प्रशासन केंद्र सरकार के निर्देशों का पालन करने में कोई कोताही नहीं बरत रहे। स्थानीय अधिकारियों ने परिवारों को स्पष्ट कर दिया कि दुल्हनों को जल्द से जल्द पाकिस्तान भेजना होगा। इस फैसले का असर केवल सचुल और करमा तक सीमित नहीं है। जैसलमेर के सीमावर्ती गांवों में कई अन्य पाकिस्तानी नागरिक, जो दीर्घकालिक वीजा पर रह रहे थे, भी प्रभावित हुए हैं। इन गांवों में उदासी और डर का माहौल है। लोगों को चिंता है कि भविष्य में सीमा पार के रिश्ते और मुश्किल हो जाएंगे।

यह घटना भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते कूटनीतिक तनाव का एक छोटा सा लेकिन मार्मिक उदाहरण है। पहलगाम हमले के बाद दोनों देशों के रिश्तों में और कड़वाहट आई है। भारत ने जहां वीजा रद्द करने और बॉर्डर बंद करने जैसे कदम उठाए, वहीं पाकिस्तान ने भी जवाबी कार्रवाइयों की बात कही है। लेकिन इस तनाव की सबसे बड़ी कीमत उन परिवारों को चुकानी पड़ रही है, जिनके रिश्ते सीमा के दोनों तरफ बंटे हुए हैं।

जैसलमेर के इस छोटे से गांव की यह कहानी न केवल दो दुल्हनों के टूटते सपनों की दास्तान है, बल्कि उन तमाम लोगों की भी, जिनके लिए सीमा केवल एक रेखा नहीं, बल्कि उनके जीवन का हिस्सा है।

प्यार और रिश्तों की यह कहानी अब एक अनिश्चित मोड़ पर खड़ी है। क्या सचुल और करमा अपने ससुराल में रह पाएंगी, या उन्हें सीमा पार अपने अनिश्चित भविष्य की ओर लौटना होगा? यह सवाल न केवल इन दो दुल्हनों के लिए, बल्कि भारत-पाकिस्तान के रिश्तों के लिए भी अहम है।

Ashok Shera "द खटक" एडिटर-इन-चीफ