दही हांडी: भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं का जीवंत उत्सव

दही हांडी जन्माष्टमी का एक उत्साहपूर्ण उत्सव है, जिसमें गोविंदा टीमें मानव पिरामिड बनाकर कृष्ण की माखन चोरी की लीला को दोहराते हैं, जो एकता, साहस और भक्ति का प्रतीक है।

Aug 15, 2025 - 18:53
दही हांडी: भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं का जीवंत उत्सव

एक बार की बात है, गोकुल नामक एक छोटे से गांव में, जहां नीले आकाश के नीचे हरी-भरी घास पर गायें चरती थीं और यमुना नदी की लहरें संगीत बजाती थीं, वहां एक बालक का जन्म हुआ जिसका नाम था कृष्ण। यह बालक कोई साधारण बच्चा नहीं था; वह भगवान विष्णु का अवतार था, जो धरती पर अधर्म को मिटाने और धर्म की स्थापना करने आया था। लेकिन कृष्ण की कहानी सिर्फ युद्धों और उपदेशों की नहीं, बल्कि उनकी शरारती बाल लीलाओं की भी है, जो आज भी हमें हंसाती और प्रेरित करती हैं। इन्हीं लीलाओं में से एक है माखन चोरी की कथा, जो दही हांडी उत्सव का आधार बनी। आइए, इस उत्सव की पूरी कहानी को एक रोचक यात्रा की तरह समझते हैं – क्या है यह, क्यों मनाया जाता है, कब से चला आ रहा है, इसका महत्व क्या है और इसमें कैसा माहौल होता है।

दही हांडी क्या है?

कल्पना कीजिए एक ऊंची डंडी पर लटकी हुई एक मिट्टी की हांडी, जिसमें दही, माखन, घी और कभी-कभी सिक्के या मिठाइयां भरी होती हैं। नीचे सड़कों पर युवाओं की टोलियां इकट्ठी होती हैं, जो मानव पिरामिड बनाकर उस हांडी को तोड़ने की कोशिश करती हैं। यह दृश्य ही दही हांडी है – एक खेल, एक प्रतियोगिता और एक धार्मिक उत्सव का मिश्रण। यह मुख्य रूप से महाराष्ट्र, गुजरात और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में मनाया जाता है, लेकिन अब पूरे भारत में लोकप्रिय हो चुका है। दही हांडी को गोपाल काला या उत्लोत्सव भी कहा जाता है। इसमें govinda नामक टीमें भाग लेती हैं, जो कृष्ण के बाल मित्रों का प्रतीक हैं। हांडी तोड़ने वाला व्यक्ति 'गोविंदा' कहलाता है, और सफल होने पर चारों ओर तालियां और जयकारे गूंजते हैं।

दही हांडी क्यों मनाई जाती है?

यह उत्सव कृष्ण जन्माष्टमी का हिस्सा है, जो भगवान कृष्ण के जन्म का पर्व है। कहानी कुछ यूं है: बचपन में कृष्ण को माखन और दही बहुत पसंद थे। वह और उनके दोस्त गोकुल की ग्वालिनों के घरों से माखन चुराते थे। ग्वालिनें शिकायत करतीं कि 'यह कान्हा फिर माखन चुरा ले गया!' तो बचाव के लिए वे हांडी को ऊंचाई पर लटका देतीं। लेकिन शरारती कृष्ण अपने दोस्तों के साथ पिरामिड बनाकर उन्हें तोड़ लेते। दही हांडी इसी लीला की याद में मनाई जाती है, जहां कृष्ण की शरारतें और उनके दोस्तों की एकजुटता को दोहराया जाता है। यह उत्सव जन्माष्टमी के अगले दिन मनाया जाता है, ताकि कृष्ण की बाल्यावस्था की मस्ती को जीवंत किया जा सके।

कब से की जा रही है यह परंपरा?

दही हांडी की जड़ें प्राचीन हिंदू पौराणिक कथाओं में हैं, जो हजारों साल पुरानी हैं। भगवान कृष्ण का जन्म द्वापर युग में हुआ था, और भागवत पुराण जैसी ग्रंथों में उनकी माखन चोरी की कहानियां वर्णित हैं। लेकिन आधुनिक रूप में यह उत्सव मध्यकाल से लोकप्रिय हुआ, खासकर महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी महाराज के समय से, जब सामाजिक एकता को बढ़ावा देने के लिए ऐसे आयोजन शुरू हुए। 19वीं और 20वीं सदी में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, लोकमान्य तिलक जैसे नेताओं ने इसे राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बनाया। आज यह वैश्विक स्तर पर मनाया जाता है, लेकिन इसकी शुरुआत कृष्ण की कथाओं से ही मानी जाती है, जो कम से कम 5,000 साल पुरानी हैं।

दही हांडी का महत्व क्या है?

यह सिर्फ एक खेल नहीं, बल्कि जीवन के गहरे सबकों का प्रतीक है। सबसे पहले, यह एकता और टीमवर्क सिखाता है – जैसे कृष्ण के दोस्त मिलकर हांडी तोड़ते थे, वैसे ही आज की टीमें ऊंचे पिरामिड बनाती हैं, जहां हर व्यक्ति का योगदान जरूरी होता है। यह साहस और दृढ़ संकल्प का प्रतीक है, क्योंकि पिरामिड गिरने का खतरा रहता है, फिर भी लोग प्रयास करते हैं। धार्मिक रूप से, यह कृष्ण की लीला को याद दिलाता है और बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देता है। सामाजिक रूप से, यह युवाओं को व्यस्त रखता है, सामुदायिक भावना बढ़ाता है और कभी-कभी पुरस्कार के रूप में लाखों रुपये दिए जाते हैं, जो गरीब govinda टीमों की मदद करते हैं। कुल मिलाकर, दही हांडी खुशी, भक्ति और सामूहिक शक्ति का उत्सव है।

दही हांडी में कैसा माहौल होता है?

अब कल्पना कीजिए मुंबई की सड़कों पर: सुबह से ही ढोल-नगाड़ों की थाप गूंज रही है, भजन और बॉलीवुड गाने बज रहे हैं। हजारों लोग इकट्ठे हैं – बच्चे, युवा, बुजुर्ग सब। govinda टीमें रंग-बिरंगे कपड़ों में सजी हैं, उनके चेहरे पर उत्साह और चुनौती की चमक। जैसे-जैसे पिरामिड बनता है, भीड़ 'गोविंदा आला रे!' चिल्लाती है। पानी की बौछारें पड़ती हैं ताकि पिरामिड फिसले, लेकिन govinda नहीं रुकते। जब हांडी टूटती है, दही चारों ओर बरसता है, लोग नाचते-गाते जश्न मनाते हैं। माहौल विद्युतीय होता है – उत्साह, जोश, हंसी और कभी गिरने पर चिंता, लेकिन कुल मिलाकर खुशी का समंदर। बड़े शहरों में जैसे मुंबई के ठाकुर विलेज या दादर में लाखों लोग जमा होते हैं, और सुरक्षा के लिए पुलिस भी तैनात रहती है। यह उत्सव दोस्ती और मस्ती का ऐसा त्योहार है जो सबको एक सूत्र में बांध देता है।

तो दोस्तों, दही हांडी की यह कहानी हमें सिखाती है कि जीवन में शरारतें भी महत्वपूर्ण हैं, और एकजुट होकर हम किसी भी ऊंचाई को छू सकते हैं। अगली जन्माष्टमी पर आप भी इस उत्सव में शामिल होकर कृष्ण की लीलाओं को जीवंत करें। जय श्री कृष्ण!

Yashaswani Journalist at The Khatak .