सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट 2021 रद्द, न्यायिक स्वतंत्रता पर जोर
सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट 2021 को पूरी तरह असंवैधानिक घोषित कर रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि यह कानून न्यायिक स्वतंत्रता और शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन करता है। चीफ जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने केंद्र सरकार पर भी सख्त टिप्पणी की कि उसने कोर्ट के पिछले निर्देशों की अवहेलना की।
नई दिल्ली, 19 नवंबर 2025: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट, 2021 को पूरी तरह से असंवैधानिक घोषित कर दिया। कोर्ट ने इस कानून को न्यायिक स्वतंत्रता और शक्तियों के पृथक्करण (सेपरेशन ऑफ पावर) के मूल सिद्धांतों का घोर उल्लंघन बताते हुए रद्द कर दिया। चीफ जस्टिस बी. आर. गवई और जस्टिस के. विनोद चंदन की बेंच ने साफ शब्दों में कहा कि यह अधिनियम कार्यपालिका को न्यायिक प्रक्रिया पर अनुचित हस्तक्षेप करने का अवसर प्रदान करता है, जो संविधान की आत्मा के विरुद्ध है।इस फैसले ने न केवल ट्रिब्यूनल सिस्टम में सुधार के दावों पर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि केंद्र सरकार को भी कटघरे में खड़ा कर दिया है। कोर्ट ने सरकार पर गंभीर नाराजगी जताई कि उसने 2019 और 2021 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा ट्रिब्यूनल नियुक्तियों और कार्यप्रणाली को लेकर दिए गए स्पष्ट निर्देशों का पालन नहीं किया। यह निर्णय कई याचिकाओं पर सुनवाई के बाद आया है, जो इस कानून की वैधता को चुनौती दे रही थीं।
ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट 2021 का पृष्ठभूमि; ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट, 2021 को केंद्र सरकार ने ट्रिब्यूनलों की कार्यप्रणाली को मजबूत और केंद्रीकृत करने के उद्देश्य से पेश किया था। इस कानून के तहत कई महत्वपूर्ण ट्रिब्यूनलों—जैसे सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल (CAT), सेंट्रल इन्फॉर्मेशन कमीशन (CIC), सिक्योरिटीज अपीलेट ट्रिब्यूनल (SAT), नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) और इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (ICAI) ट्रिब्यूनल—को समाप्त करने या उनके कार्यों को अन्य निकायों में स्थानांतरित करने का प्रावधान था। साथ ही, ट्रिब्यूनल मेंबरों की नियुक्ति की प्रक्रिया को बदलते हुए कार्यपालिका (सरकार) को अधिक अधिकार दिए गए थे।सरकार का दावा था कि यह सुधार ट्रिब्यूनलों में लंबित मामलों को कम करने और दक्षता बढ़ाने के लिए आवश्यक है। हालांकि, विपक्ष और कानूनी विशेषज्ञों ने शुरू से ही इसकी आलोचना की थी। उनका तर्क था कि यह कानून न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमजोर करेगा और कार्यपालिका को न्यायिक फैसलों पर प्रभाव डालने का मौका देगा। यह एक्ट 2019 के सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से प्रेरित था, जिसमें कोर्ट ने ट्रिब्यूनल्स के नियुक्ति प्रक्रिया में सुधार की सिफारिश की थी, लेकिन सरकार ने इसे अपने तरीके से लागू करने की कोशिश की।
कोर्ट का फैसला: क्यों रद्द किया गया कानून? सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने 50 पृष्ठों के विस्तृत फैसले में कहा कि ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) और बेसिक स्ट्रक्चर डॉक्ट्रिन का उल्लंघन करता है। मुख्य तर्क निम्नलिखित हैं:न्यायिक स्वतंत्रता का हनन: कोर्ट ने कहा, "ट्रिब्यूनल्स को स्वतंत्र और निष्पक्ष होना चाहिए। इस कानून के तहत कार्यपालिका को नियुक्तियों का पूर्ण नियंत्रण देना न्यायिक प्रक्रिया की अखंडता को खतरे में डालता है।" बेंच ने जोर दिया कि ट्रिब्यूनल्स संविधान की रक्षा करने वाले संस्थान हैं, न कि सरकार के एक्सटेंशन।
सेपरेशन ऑफ पावर का उल्लंघन: फैसले में उल्लेख किया गया कि कानून कार्यपालिका को विधायिका और न्यायपालिका दोनों पर हावी होने का प्रयास करता है। चीफ जस्टिस गवई ने कहा, "सेपरेशन ऑफ पावर संविधान का मूल ढांचा है। कोई भी कानून इसे कमजोर नहीं कर सकता।"
सरकार के निर्देशों की अवहेलना: 2019 के आर. ओई. बारोट बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले और 2021 के मद्रास हाईकोर्ट ट्रांसफर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिब्यूनल सिलेक्शन कमिटी के गठन और नियुक्ति प्रक्रिया पर स्पष्ट निर्देश दिए थे। इनमें मुख्य न्यायाधीश या उनके नामित सदस्य को कमिटी में शामिल करना अनिवार्य था। लेकिन सरकार ने नए कानून के माध्यम से इन निर्देशों को नजरअंदाज कर दिया, जिसे कोर्ट ने "संवैधानिक अवमानना" करार दिया।
फैसले में कोर्ट ने ट्रिब्यूनल्स को पुनर्गठित करने के लिए छह महीने का समय दिया है। साथ ही, सभी प्रभावित ट्रिब्यूनलों को तत्काल बहाल करने का आदेश जारी किया गया है। कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह न्यायपालिका के साथ परामर्श कर नया फ्रेमवर्क तैयार करे, जिसमें स्वतंत्रता सुनिश्चित हो।