जस्टिस को विदाई नहीं देने पर CJI हुए नाराज, वकीलों को रास नहीं आया तो नहीं दी फेयरवेल

भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई ने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) द्वारा जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी को विदाई समारोह (फेयरवेल) न देने पर नाराजगी जताई। जस्टिस त्रिवेदी 16 मई, 2025 को सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुईं, लेकिन बार एसोसिएशन ने उनके लिए कोई औपचारिक विदाई समारोह आयोजित नहीं किया। CJI गवई ने इसे अनुचित ठहराते हुए कहा कि विभिन्न विचारधारा वाले जजों का सम्मान करना चाहिए और फेयरवेल न देना एक गलत परंपरा की शुरुआत हो सकती है। कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, बार एसोसिएशन की नाराजगी जस्टिस त्रिवेदी के कुछ फैसलों, विशेष रूप से CBI जांच से संबंधित आदेशों से जुड़ी हो सकती है। इस घटना ने सुप्रीम कोर्ट के भीतर और बाहर चर्चा को जन्म दिया है।

May 24, 2025 - 14:46
May 24, 2025 - 14:46
जस्टिस को विदाई नहीं देने पर CJI हुए नाराज, वकीलों को रास नहीं आया तो नहीं दी फेयरवेल

जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी, सुप्रीम कोर्ट की 11वीं महिला न्यायाधीश, ने 16 मई 2025 को अपने कार्यकाल का अंतिम कार्यदिवस पूरा किया, हालांकि उनकी आधिकारिक सेवानिवृत्ति तिथि 9 जून 2025 थी। वे एक पारिवारिक विवाह समारोह में शामिल होने के लिए अमेरिका जा रही थीं, जिसके कारण उन्होंने समय से पहले अंतिम कार्यदिवस चुना। उनके रिटायरमेंट के अवसर पर सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) द्वारा परंपरागत विदाई समारोह आयोजित नहीं किया गया, जिसने न्यायिक समुदाय में विवाद को जन्म दिया। इस मुद्दे पर भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने कड़ी नाराजगी जताई। 


वकीलों के अनुसार जस्टिस बेला त्रिवेदी का व्यवहार कड़क:
जस्टिस तबेला त्रिवेदी को उनके कठोर और अनुशासित व्यवहार के लिए जाना जाता था। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान कोर्ट में अनुशासन बनाए रखने पर विशेष जोर दिया। कई मौकों पर उन्होंने वकीलों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की, जैसे कि एक वकील को रजिस्टर से एक माह के लिए हटाने का आदेश देना।  अप्रैल 2025 में एक मामले में एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड (AoR) पी. सोमा सुंदरम की अनुपस्थिति और उनके द्वारा अपर्याप्त दस्तावेज प्रस्तुत करने पर जस्टिस त्रिवेदी ने तीखी नाराजगी जताई थी। उन्होंने कहा था, “मैं जिला अदालत से आई हूं, वहां इस तरह का माहौल नहीं था। सुप्रीम कोर्ट में इस तरह का व्यवहार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।” 


उनके इस सख्त रवैये के कारण कुछ वकीलों में उनके प्रति नाराजगी थी। विशेष रूप से, उमर खालिद और सत्येंद्र जैन जैसे हाई-प्रोफाइल मामलों में उनकी बेंच में जमानत याचिकाओं के लंबित रहने और कुछ विवादास्पद फैसलों, जैसे समलैंगिक विवाह और समान नागरिक संहिता से जुड़े मामलों, ने वकीलों के एक वर्ग को असंतुष्ट किया। कुछ वकीलों का मानना था कि जस्टिस त्रिवेदी का रवैया अत्यधिक कठोर था और वे बार के साथ सहयोगात्मक दृष्टिकोण नहीं अपनाती थीं। इसके अलावा, उन्होंने बार के कुछ पदाधिकारियों पर दबाव डालने का आरोप लगाया था कि वे उनके खिलाफ कठोर आदेश पारित न करें

पिता और बेटी एक ही कोर्ट में जज रहे, लिम्का बुक में दर्ज उपलब्धि:
जस्टिस बेला त्रिवेदी का न्यायिक करियर तीन दशकों से अधिक लंबा रहा। उनका जन्म 10 जून 1960 को उत्तर गुजरात के पाटन जिले में हुआ था। उनके पिता भी एक न्यायिक अधिकारी थे, और एक दिलचस्प संयोग यह है कि 1995 में जब वे अहमदाबाद की सिटी सिविल और सेशन कोर्ट में जज नियुक्त हुईं, तब उनके पिता भी उसी कोर्ट में जज थे। यह उपलब्धि लिम्का बुक ऑफ इंडियन रिकॉर्ड्स में दर्ज है। 
जस्टिस बेला त्रिवेदी ने 1982 में वडोदरा की एम.एस. यूनिवर्सिटी से बीकॉम और एलएलबी की पढ़ाई पूरी की। 10 जुलाई 1995 को वे अहमदाबाद में सिटी सिविल और सेशन कोर्ट की जज बनीं। उन्होंने गुजरात सरकार में विधि सचिव और हाई कोर्ट में रजिस्ट्रार (विजिलेंस) जैसे पदों पर भी काम किया। 
हाई कोर्ट: 17 फरवरी 2011 को उन्हें गुजरात हाई कोर्ट की जज नियुक्त किया गया। इसके बाद वे 2011 से 2016 तक राजस्थान हाई कोर्ट में रहीं और फिर गुजरात हाई कोर्ट में वापस आईं। 
सुप्रीम कोर्ट: 31 अगस्त 2021 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट की जज नियुक्त किया गया, जो तीन महिलाओं सहित नौ नए जजों की रिकॉर्ड नियुक्ति का हिस्सा थी। उनका कार्यकाल साढ़े तीन साल का रहा। 
उल्लेखनीय फैसले: जस्टिस त्रिवेदी कई ऐतिहासिक फैसलों का हिस्सा रहीं। अगस्त 2024 में, सात जजों की संविधान पीठ में उन्होंने अनुसूचित जातियों के उप-वर्गीकरण पर असहमति जताई, जिसमें उन्होंने कहा कि केवल संसद ही एससी सूची में बदलाव कर सकती है। इसके अलावा, डीके गांधी मामले में उन्होंने फैसला दिया कि वकीलों को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता।


सुप्रीम कोर्ट में परंपरा रही है कि रिटायर होने वाले जज के अंतिम कार्यदिवस पर एक औपचारिक बेंच आयोजित की जाती है, जिसमें वे CJI के साथ बैठते हैं, और SCBA व SCAORA द्वारा शाम को विदाई समारोह आयोजित किया जाता है। जस्टिस त्रिवेदी के मामले में यह परंपरा टूटी, क्योंकि न तो SCBA और न ही SCAORA ने उनके लिए कोई समारोह आयोजित किया। यह सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में पहली बार हुआ कि किसी रिटायर होने वाले जज को विदाई समारोह नहीं दिया गया। 
CJI बी.आर. गवई ने इस पर कड़ी नाराजगी जताते हुए कहा, “ऐसा रुख नहीं अपनाया जाना चाहिए था। जस्टिस त्रिवेदी एक बहुत अच्छी जज थीं, जिन्होंने अपनी निष्पक्षता, दृढ़ता और कड़ी मेहनत से सुप्रीम कोर्ट की एकता और अखंडता को मजबूत किया।” जस्टिस मसीह ने भी परंपराओं के सम्मान की बात दोहराई। CJI ने SCBA अध्यक्ष कपिल सिब्बल और उपाध्यक्ष रचना श्रीवास्तव की औपचारिक बेंच में उपस्थिति की सराहना की, लेकिन संगठन के सामूहिक निर्णय की निंदा की। 
बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने भी SCBA और SCAORA के रवैये को न्यायिक परंपराओं के खिलाफ बताया और दोनों संगठनों से जस्टिस त्रिवेदी के लिए विदाई समारोह आयोजित करने का अनुरोध किया। कुछ वकीलों ने इस विवाद को लॉजिस्टिकल समस्याओं और समय प्रबंधन की गलतफहमी से जोड़ा, यह दावा करते हुए कि जस्टिस त्रिवेदी के विदेश यात्रा के कारण समारोह आयोजित करना संभव नहीं हुआ।

Mamta Kumari Journalist at The Khatak .