बाड़मेर में नरेगा के तहत टांका निर्माण पर पूर्ण रोक: रेगिस्तान की जीवनरेखा पर सरकारी प्रहार, राजनीतिक हंगामा

राजस्थान के बाड़मेर में मनरेगा के तहत निजी कृषि भूमि पर टांका निर्माण पर सरकारी रोक लगी। एनएलएम जांच के बाद यह फैसला आया, जो ग्रामीणों के जल संकट को और गहरा सकता है। राजनीतिक हंगामा मच गया, विपक्ष ने इसे 'तुगलकी फरमान' बताया

Oct 22, 2025 - 12:03
बाड़मेर में नरेगा के तहत टांका निर्माण पर पूर्ण रोक: रेगिस्तान की जीवनरेखा पर सरकारी प्रहार, राजनीतिक हंगामा

बाड़मेर, 22 अक्टूबर 2025 (स्पेशल रिपोर्ट): राजस्थान के रेगिस्तानी जिले बाड़मेर में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत व्यक्तिगत टांका निर्माण पर सरकारी पाबंदी ने ग्रामीणों के बीच हड़कंप मचा दिया है। दीपावली के पावन पर्व पर जारी इस आदेश ने थार की प्यासी धरती को और प्यासा बना दिया है। राज्य सरकार के ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग ने 21 अक्टूबर को सभी जिला कलेक्टरों और कार्यक्रम समन्वयकों को निर्देश जारी कर "अपना खेत अपना काम" योजना के अंतर्गत निजी कृषि भूमि पर टांका (पक्का एवं कच्चा पायधन सहित) निर्माण की स्वीकृति पर आगामी आदेशों तक रोक लगा दी है।   यह फैसला न केवल जल संरक्षण की पारंपरिक विरासत पर चोट है, बल्कि लाखों ग्रामीण परिवारों की आजीविका को भी खतरे में डाल रहा है।आदेश का बैकग्राउंड और कारण: NLM जांच ने खोली पोलयह प्रतिबंध भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा गठित राष्ट्रीय स्तर की निगरानी समिति (एनएलएम-नेशनल लेवल मॉनिटर) की बाड़मेर जिले में की गई जांच पर आधारित है। एनएलएम ने मनरेगा के तहत श्रेणी-बी के कार्यों का निरीक्षण किया, जिसमें पाया गया कि जिले में हजारों टांके बनाए गए हैं, लेकिन इनका उपयोग कृषि सिंचाई या भूमि विकास के लिए नहीं हो रहा। बल्कि, ये मुख्य रूप से पीने के पानी और पशुओं के लिए उपयोग हो रहे हैं, जो योजना के मूल उद्देश्यों—भूमि संसाधनों का समग्र विकास और ग्रामीण आजीविका में स्थायी सुधार—की पूर्ति नहीं करता। एनएलएम की रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि मनरेगा की अनुमत 266 कार्यों की सूची में टांके "फार्म पॉन्ड" श्रेणी में आते हैं, लेकिन बाड़मेर जैसे मरुस्थलीय क्षेत्र में इनका वास्तविक उपयोग योजना के दायरे से बाहर है।विभागीय आदेश में उल्लेख है कि एनएलएम के दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए, नई स्वीकृतियां तत्काल प्रभाव से बंद की जा रही हैं। यह कदम योजना में अनियमितताओं को रोकने और संसाधनों का सही उपयोग सुनिश्चित करने का प्रयास बताया जा रहा है। हालांकि, आलोचकों का मानना है कि यह फैसला जमीनी हकीकत की अनदेखी करता है, जहां टांके केवल सिंचाई के नहीं, बल्कि अस्तित्व के साधन हैं।प्रभाव: रेगिस्तान में टांके ही हैं जीवन का आधारबाड़मेर, जो थार मरुस्थल का हृदय स्थल है, यहां वार्षिक औसत वर्षा मात्र 200 मिलीमीटर है—जो आसपास के जिलों से भी कम। इंदिरा गांधी नहर का पानी प्रदूषित होने से ग्रामीणों में बीमारियां फैल रही हैं, जबकि टैंकों में संग्रहित बरसाती पानी सबसे शुद्ध और गुणवत्तापूर्ण माना जाता है।  

पिछले पांच वर्षों में मनरेगा के तहत करीब 1.5 लाख टांके बने हैं, जबकि दस वर्षों में कुल 3.5 लाख। प्रत्येक टांके पर औसतन 3 लाख रुपये (पहले 2 लाख) का खर्च आता है, जिसमें से 1.80 लाख रुपये सीधे जॉब कार्ड धारक श्रमिकों के खाते में जाते हैं।यह प्रतिबंध ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित करेगा। टांके न केवल पीने के पानी का स्रोत हैं, बल्कि लाखों गाय-भैंसों के लिए जल उपलब्ध कराते हैं और रेगिस्तानी धोरों में अनाज व सब्जियों की खेती को संभव बनाते हैं। पशुपालन पर निर्भर ग्रामीण परिवारों की आय में कमी आएगी, जबकि जल जीवन मिशन जैसी योजनाओं की असफलता (हजारों करोड़ खर्च के बावजूद मात्र 10% कवरेज) पहले से ही जल संकट को गहरा चुकी है।  

विशेषज्ञों का कहना है कि इससे ग्रामीण प्रवासन बढ़ सकता है और जल संरक्षण की पारंपरिक कला पर खतरा मंडराएगा।राजनीतिक प्रतिक्रियाएं: 'तुगलकी फरमान' से 'पीठ में खंजर' तकइस फैसले पर राजनीतिक दलों ने तीखा विरोध जताया है। जैसलमेर के सांसद उम्मेदाराम बेनीवाल ने इसे "तुगलकी फरमान" करार देते हुए कहा, "ये 'प्यासे मरेंगे, नीति बनेगी कागज पर' जैसी विडंबना को जन्म देता है। सरकार के ये तथाकथित दिशा-निर्देश शायद उन एसी कमरों से बने हैं, जहां न थार की तपती रेत की जलन महसूस होती है, न प्यास से फटे होंठों की पीड़ा।"

 उन्होंने जल जीवन मिशन की विफलता पर सवाल उठाते हुए तत्काल वापसी की मांग की।बायतु विधायक हरीश चौधरी ने सोशल मीडिया पर वीडियो जारी कर इसे "रेगिस्तान के लोगों की पीठ पर खंजर घोंपने" वाला फैसला बताया। उन्होंने कहा, "टांके थार के लोगों के जीवन का आधार हैं, जो पीने के पानी, पशुधन और कृषि के लिए आवश्यक हैं। क्या यह आदेश थार को बर्बाद करने का मॉडल है?"  

चौधरी ने टैंकों को "दुनिया का सबसे सफल जल संरक्षण मॉडल" बताते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील की कि इसे वापस लिया जाए। उन्होंने चुनौती दी कि टैंकों की गुणवत्ता की जांच नेशनल-इंटरनेशनल एजेंसियों से कराई जाए, जो सरकारी स्कूलों और स्वास्थ्य केंद्रों से बेहतर साबित होगी। इसके अलावा, नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल ने भी ट्वीट कर विरोध दर्ज किया।कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इसे ग्रामीण-विरोधी नीति का प्रतीक बताया, जबकि भाजपा ने अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। स्थानीय पंचायत प्रतिनिधि और किसान संगठन आंदोलन की तैयारी में जुटे हैं।आगे की राह: क्या होगा समाधान?यह विवाद मनरेगा की जमीनी उपयोगिता और सरकारी दिशा-निर्देशों के बीच टकराव को उजागर करता है। विशेषज्ञ सुझाव दे रहे हैं कि टैंकों को जल संरक्षण श्रेणी में शामिल किया जाए या वैकल्पिक फंडिंग स्रोत तलाशे जाएं। फिलहाल, ग्रामीण विभाग के अगले आदेश का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन थारवासी जानते हैं पानी की एक बूंद भी जीवन है। यदि यह रोक बनी रही, तो रेगिस्तान की प्यास और तीव्र हो जाएगी।

Ashok Shera "द खटक" एडिटर-इन-चीफ