अमेरिका का नया टैरिफ प्लान:1 अगस्त को लागू होने वाला टैरिफ अब 7 अगस्त तक बढ़ी समय सीमा..

अमेरिका ने भारत सहित 69 देशों पर नए टैरिफ लागू करने की घोषणा की है, जिसमें भारत पर 25% टैरिफ शामिल है। यह टैरिफ 1 अगस्त के बजाय अब 7 अगस्त 2025 से लागू होगा। सबसे अधिक टैरिफ सीरिया (41%), स्विट्जरलैंड (39%), और लाओस-म्यांमार (40%) पर लगेगा। सूची में न आने वाले देशों पर 10% डिफॉल्ट टैरिफ लागू होगा। यह कदम अमेरिका की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति का हिस्सा है, जो वैश्विक व्यापार और भारत के निर्यात को प्रभावित कर सकता है।

Aug 1, 2025 - 11:29
अमेरिका का नया टैरिफ प्लान:1 अगस्त को लागू होने वाला टैरिफ अब 7 अगस्त तक बढ़ी समय सीमा..

अमेरिका ने वैश्विक व्यापार के क्षेत्र में एक बड़ा कदम उठाते हुए 69 देशों पर नए टैरिफ रेट लागू करने की घोषणा की है। इस सूची में भारत भी शामिल है, जिस पर पहले 1 अगस्त से 25 प्रतिशत टैरिफ लागू होने वाला था, लेकिन अब व्हाइट हाउस ने इसे एक सप्ताह के लिए टाल दिया है। अब ये टैरिफ 7 अगस्त 2025 से प्रभावी होंगे। जिन देशों का नाम इस सूची में नहीं है, उन पर 10 प्रतिशत की डिफॉल्ट टैरिफ दर लागू होगी। इस कदम से वैश्विक व्यापार पर गहरा प्रभाव पड़ने की संभावना है, और कई देशों को अपनी व्यापार नीतियों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है।

टैरिफ सूची और प्रभावित देश

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गुरुवार को एक कार्यकारी आदेश जारी किया, जिसमें 69 देशों और यूरोपीय संघ (EU) जैसे व्यापारिक ब्लॉकों पर 10 से 41 प्रतिशत तक के टैरिफ रेट तय किए गए हैं। इस सूची में सबसे अधिक टैरिफ दरें सीरिया पर 41 प्रतिशत, स्विट्जरलैंड पर 39 प्रतिशत, लाओस और म्यांमार पर 40 प्रतिशत, इराक और सर्बिया पर 35 प्रतिशत, तथा लीबिया और अल्जीरिया पर 30 प्रतिशत लागू होंगी। भारत, ताइवान, और वियतनाम जैसे देशों पर 25 प्रतिशत टैरिफ दर लागू होगी, जबकि पड़ोसी देश पाकिस्तान पर 19 प्रतिशत टैरिफ लगाया गया है।इसके अलावा, अमेरिका ने कनाडा से आयातित उन वस्तुओं पर टैरिफ को 25 प्रतिशत से बढ़ाकर 35 प्रतिशत कर दिया है, जो अमेरिकी-मेक्सिको-कनाडा व्यापार समझौते (USMCA) का हिस्सा नहीं हैं। यह कदम ट्रंप के ‘अमेरिका फर्स्ट’ एजेंडे का हिस्सा माना जा रहा है, जिसका उद्देश्य अमेरिकी व्यापार घाटे को कम करना और घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देना है।

टैरिफ टालने का कारण

व्हाइट हाउस ने पहले 1 अगस्त को टैरिफ लागू करने की डेडलाइन तय की थी, जिससे कई देशों पर अंतिम समय में व्यापार समझौते करने का दबाव था। हालांकि, वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों ने बताया कि नए टैरिफ शेड्यूल को बेहतर ढंग से समायोजित करने और कुछ देशों के साथ चल रही व्यापार वार्ताओं को पूरा करने के लिए डेडलाइन को 7 अगस्त तक बढ़ाया गया है। यह फैसला उन देशों के लिए राहत की सांस लेकर आया है, जो अभी भी अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौतों पर काम कर रहे हैं। 

भारत पर प्रभाव

भारत के लिए यह टैरिफ एक महत्वपूर्ण चुनौती पेश कर सकता है। 2024 में भारत ने अमेरिका को लगभग 87.4 बिलियन डॉलर का सामान निर्यात किया था, जिसमें फार्मास्यूटिकल्स, रत्न-आभूषण, टेक्सटाइल, ऑटो पार्ट्स, और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्र शामिल हैं। इस टैरिफ से भारत के निर्यात में 4 से 7 बिलियन डॉलर तक का नुकसान होने का अनुमान है। विशेष रूप से, छोटे और मध्यम उद्यम (MSME) और श्रम-प्रधान क्षेत्र जैसे टेक्सटाइल और सीफूड निर्यात सबसे अधिक प्रभावित हो सकते हैं।भारत सरकार ने इस कदम पर सधा हुआ रुख अपनाया है। केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि सरकार स्थिति पर नजर रखे हुए है और घरेलू उद्योगों की सुरक्षा के लिए सभी जरूरी कदम उठाए जाएंगे। भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौते (BTA) पर बातचीत जारी है, और अगस्त में एक अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल भारत का दौरा करने वाला है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि भारत टैरिफ में कुछ रियायतें देता है, तो टैरिफ दरों को कम किया जा सकता है, जैसा कि जापान और यूरोपीय संघ के साथ हुआ। 

वैश्विक व्यापार पर असर

यह टैरिफ नीति वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला और व्यापार गतिशीलता को बदल सकती है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि इससे अमेरिकी उपभोक्ताओं को सामान की कीमतों में वृद्धि का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि आयातित वस्तुएं महंगी हो जाएंगी। साथ ही, वियतनाम, इंडोनेशिया, और फिलीपींस जैसे देश, जिन पर भारत की तुलना में कम टैरिफ लगाया गया है, अमेरिकी बाजार में भारतीय निर्यातकों को कड़ी टक्कर दे सकते हैं।इसके अलावा, ट्रंप ने भारत के रूस से सैन्य उपकरण और ऊर्जा खरीद को टैरिफ का एक कारण बताया है। उन्होंने दावा किया कि भारत के उच्च टैरिफ और गैर-मौद्रिक व्यापार बाधाएं अमेरिकी कंपनियों के लिए भारतीय बाजार में प्रवेश को मुश्किल बनाती हैं। हालांकि, भारत का औसत टैरिफ दर 17 प्रतिशत है, जो अमेरिका के 3.3 प्रतिशत से अधिक है, लेकिन दक्षिण कोरिया (13.4%) और चीन (7.5%) जैसे देशों के करीब है। 

भारत की रणनीति

भारत सरकार ने स्पष्ट किया है कि वह राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए हर संभव कदम उठाएगी। वाणिज्य मंत्रालय विभिन्न हितधारकों, जैसे निर्यातकों, उद्योगपतियों, और व्यापार संगठनों के साथ विचार-विमर्श कर रहा है। कुछ विशेषज्ञों का सुझाव है कि भारत को अमेरिकी टैरिफ का जवाब देने के लिए जवाबी टैरिफ लगाने के बजाय, विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियमों के तहत शिकायत दर्ज करनी चाहिए। साथ ही, भारत को अन्य बाजारों, जैसे यूरोप, यूएई, और ऑस्ट्रेलिया, में अपने निर्यात को बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए, जहां हाल ही में व्यापार समझौते हुए हैं। 

अमेरिका का यह कदम न केवल भारत, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ हो सकता है। ट्रंप की टैरिफ नीति को कई लोग व्यापारिक साझेदारों पर दबाव बनाने की रणनीति के रूप में देख रहे हैं। भारत के सामने अब दोहरी चुनौती है: एक तरफ, अमेरिकी बाजार में अपनी हिस्सेदारी बचाए रखने की, और दूसरी तरफ, घरेलू उद्योगों को इस टैरिफ के प्रभाव से बचाने की।