वन्यजीवों के सच्चे रक्षक: श्री राधेश्याम पेमाणी नहीं रहे घायल वन्यजीव को बचाने जाते समय सड़क हादसे में हुआ निधन, जीवन पर्यावरण सेवा को समर्पित रहा
प्रसिद्ध वन्यजीव रेस्क्यूअर और प्रकृति प्रेमी श्री राधेश्याम पेमाणी का एक सड़क दुर्घटना में निधन हो गया

जैसलमेर जिले के लाठी क्षेत्र से एक अत्यंत दुखद और भावुक कर देने वाली खबर सामने आई है। प्रसिद्ध वन्यजीव रेस्क्यूअर और प्रकृति प्रेमी श्री राधेश्याम पेमाणी का एक सड़क दुर्घटना में निधन हो गया। यह हादसा उस समय हुआ जब वे एक घायल वन्यजीव की सहायता के लिए मौके पर जा रहे थे।
सेवा का पर्याय थे राधेश्याम पेमाणी
राधेश्याम पेमाणी केवल एक नाम नहीं, बल्कि वन्यजीवों के लिए चलती-फिरती एंबुलेंस, सहायता और सुरक्षा का प्रतीक थे। उन्होंने अपने जीवन का हर क्षण प्रकृति और जीव-जंतुओं की सेवा में लगा दिया। घायल पक्षियों, साँपों, लोमड़ियों, हिरणों और रेगिस्तान के दुर्लभ प्राणियों को रेस्क्यू कर उपचार दिलाना उनका रोज़ का काम था – वो भी निस्वार्थ भाव से।
अपने संसाधनों से करते थे रेस्क्यू
पेमाणी जी ने कभी सरकार या किसी संस्था पर निर्भर हुए बिना, अपने निजी संसाधनों से वन्यजीव रेस्क्यू कार्य किया। पेट्रोल खर्च हो या चिकित्सा सामग्री – उन्होंने कभी पीछे नहीं हटे। वन विभाग, पुलिस और सामाजिक संस्थाओं के लिए वे संकट में पहला नाम थे।
गहलोत ने दी श्रद्धांजलि, कहा – समर्पण अविस्मरणीय रहेगा
राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी श्री राधेश्याम पेमाणी के निधन पर शोक व्यक्त किया। उन्होंने ट्वीट कर कहा –
"वन्यजीव प्रेमी श्री राधेश्याम पेमाणी का जैसलमेर के लाठी क्षेत्र में वन्यजीव रेस्क्यू के लिए जाते समय हुए सड़क हादसे में दुःखद निधन होने का समाचार प्राप्त हुआ।
प्रकृति और वन्यजीवों के लिए उनका समर्पण अविस्मरणीय रहेगा। ईश्वर उन्हें शांति प्रदान करें। ॐ शांति।"
गहलोत के इस शोक संदेश से स्पष्ट है कि पेमाणी जी का कार्य कितना प्रभावशाली और व्यापक था।
जागरूकता के भी दूत थे
उनका योगदान केवल रेस्क्यू तक सीमित नहीं था। वे स्कूलों, गाँवों और सामाजिक कार्यक्रमों में जाकर लोगों को प्रकृति प्रेम और वन्यजीव संरक्षण के लिए प्रेरित करते थे। उन्होंने सैकड़ों युवाओं को पर्यावरण सेवा के लिए तैयार किया।
बिना प्रचार के काम करने वाले सच्चे कर्मयोगी
श्री पेमाणी प्रचार से दूर रहते थे। सोशल मीडिया या मीडिया में नाम दिखाने से ज़्यादा उन्हें संतोष उस चिड़िया की आँखों में नज़र आता था, जिसकी जान बचाई हो। वे कहा करते थे – "जानवर बोल नहीं सकते, लेकिन उनकी तकलीफ को समझना ही इंसानियत है।"
स्थानीय लोगों और अधिकारियों में शोक की लहर
उनकी अंतिम यात्रा में बड़ी संख्या में ग्रामीण, वन विभाग के अधिकारी, सामाजिक कार्यकर्ता और छात्र शामिल हुए। सबकी आँखें नम थीं और दिल भरा हुआ। जैसलमेर ही नहीं, पूरे राजस्थान में उन्हें याद किया जा रहा है।
संदेश छोड़ गए हैं: प्रकृति से प्रेम करो
श्री पेमाणी का जीवन हमें यह सिखाता है कि असली सेवा वही है जो निस्वार्थ हो। पर्यावरण संकट के इस दौर में उनका योगदान आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरक उदाहरण रहेगा।