थार रेगिस्तान में तीनों सेनाओं का महायुद्धाभ्यास 28,000 फीट ऊंचाई से मिसाइलों की बौछार ...

राजस्थान के जैसलमेर-पोकरण और गुजरात के कच्छ क्षेत्र में 30 अक्टूबर से 11 नवंबर तक चल रहा 'ऑपरेशन त्रिशूल 2025' भारत की तीनों सेनाओं (थल सेना, वायु सेना, नौसेना) का अब तक का सबसे बड़ा संयुक्त युद्धाभ्यास है। 28,000 फीट ऊंचाई से मिसाइलें दागी गईं, टैंकों ने रेत धोरों में गर्जना की, पैरा-गरुड़-मार्कोस कमांडो ने ज्वॉइंट ऑपरेशन किए। मल्टी-डोमेन वॉरफेयर, स्वदेशी हथियार, ड्रोन-मानव टीमिंग और साइबर युद्ध का अभ्यास हुआ। ऑपरेशन सिंदूर के बाद सबसे बड़ा प्रदर्शन, जो पाकिस्तान को स्पष्ट चेतावनी है।

Nov 2, 2025 - 17:58
थार रेगिस्तान में तीनों सेनाओं का महायुद्धाभ्यास 28,000 फीट ऊंचाई से मिसाइलों की बौछार ...

जैसलमेर, 2 नवंबर 2025: राजस्थान के थार रेगिस्तान के सुनहरे रेत धोरों में इन दिनों एक ऐसी सैन्य क्रांति का आयोजन हो रहा है, जो न केवल भारत की तीनों सेनाओं—थल सेना, वायु सेना और नौसेना—की एकजुट ताकत को प्रदर्शित कर रहा है, बल्कि दुश्मन सरहदों को चीरने वाली रणनीतियों का जीवंत प्रमाण भी बन रहा है। 'ऑपरेशन त्रिशूल 2025' नामक यह अब तक का सबसे विशाल संयुक्त युद्धाभ्यास, ऑपरेशन सिंदूर के बाद सबसे बड़ा सामरिक प्रदर्शन है, जिसमें 30,000 से अधिक जांबाज सैनिक दुश्मन के काल्पनिक ठिकानों को नेस्तनाबूद करने में जुटे हैं। यह अभ्यास न केवल पारंपरिक युद्ध की तैयारी है, बल्कि मल्टी-डोमेन वॉरफेयर—जिसमें साइबर, इलेक्ट्रॉनिक और अंतरिक्ष युद्ध शामिल हैं—की नई ऊंचाइयों को छू रहा है।

अभ्यास का भव्य परिदृश्य: रेत से समुद्र तक फैला त्रिशूल

30 अक्टूबर से शुरू होकर 11 नवंबर तक चलने वाला यह 13 दिवसीय महायुद्धाभ्यास जैसलमेर के पोकरण फायरिंग रेंज से प्रारंभ होकर गुजरात के कच्छ क्षेत्र के सर क्रीक तक विस्तृत है। थार के रेतीले इलाकों में टैंक कॉलम की गर्जना सुनाई दे रही है, जहां टी-90 और अर्जुन जैसे आधुनिक टैंक रेत के टीले चढ़ते हुए दुश्मन की काल्पनिक घुसपैठ को कुचल रहे हैं। इसी क्रम में, 28,000 फीट की भारी ऊंचाई से राफेल और सुखोई-30 एमकेआई जैसे लड़ाकू विमानों ने सटीक निर्देशित मिसाइलें दागीं, जो दुश्मन के हवाई ठिकानों को चंद सेकंडों में ध्वस्त करने का अभ्यास कर रही हैं। वायु सेना के गरुड़ कमांडो और थल सेना के पैरा कमांडो हेलीकॉप्टरों से उतरकर रेत धोरों पर उतर पड़े, जबकि नौसेना के मार्कोस विशेषज्ञों ने कच्छ के तटीय क्षेत्रों में एम्फीबियस (जल-थल) हमलों का सफल प्रदर्शन किया।इस अभ्यास का एक प्रमुख आकर्षण है 'मैन-यूनमैन्ड टीमिंग' (एमयूएम-टी) तकनीक, जहां मानव पायलट वाले विमान बिना पायलट वाले ड्रोन्स के साथ समन्वय में काम कर रहे हैं। अरब सागर के कोंकण तट पर डीआरडीओ और वायु सेना ने लोइटरिंग म्यूनिशन (कामिकेज ड्रोन) और इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर सिस्टम की टेस्टिंग की, जो दुश्मन के रडार को अंधा करने और सटीक हड़ताल करने में सक्षम हैं। इसके अलावा, यूएवी ड्रोन से इंटेलिजेंस, सर्विलांस और रेकॉग्निशेंस (आईएसआर) अभियान चलाए जा रहे हैं, जो वास्तविक युद्ध की स्थितियों में दुश्मन की हर चाल को पहले ही भेद रहे हैं।

पैरा, गरुड़ और मार्कोस की त्रिवेणी

अभ्यास का सबसे रोमांचक हिस्सा है तीनों सेनाओं के एलीट फोर्स का प्रदर्शन। थल सेना के पैरा कमांडो, जिन्हें 'बैराकुडा' या 'भैरव' यूनिट्स के नाम से जाना जाता है, रेत के धोरों में गश्ती अभियान चला रहे हैं। ये जांबाज नाइट विजन गॉगल्स और हाई-टेक वेपन्स से लैस होकर दुश्मन के छिपे ठिकानों पर धावा बोल रहे हैं। वायु सेना के गरुड़ कमांडो एयरबोर्न ऑपरेशनों में निपुणता दिखा रहे हैं, जहां वे 28,000 फीट से पैराशूट जंप कर तत्काल हमला करने के लिए तैयार हो जाते हैं। वहीं, नौसेना के मार्कोस—जिन्हें 'ब्लैक टाइगर्स' भी कहा जाता है—कच्छ के समुद्री तटों पर लैंडिंग क्राफ्ट यूटिलिटी (एलसीयू) जहाजों से उतरकर ज्वॉइंट ऑपरेशंस कर रहे हैं। आईएनएस जलाश्वा जैसे युद्धपोतों से समर्थन मिल रहा है, जो थल-समुद्री समन्वय को मजबूत कर रहा है।इस संयुक्त प्रयास में स्वदेशी तकनीक की झलक साफ दिख रही है। माइक्रोलाइट विमान 'एसडब्ल्यू-80 गरुड़' का उपयोग पक्षी रेकी और हवाई निगरानी के लिए किया जा रहा है, जो तीनों सेनाओं के जाबाजों को आसमान से रेगिस्तान के मनमोहक दृश्यों के साथ-साथ रणनीतिक लाभ दे रहा है।

ऑपरेशन सिंदूर के बाद का संदेश: पाकिस्तान की नींद हराम!

यह अभ्यास मई 2025 में हुए 'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद सीमावर्ती सतर्कता का प्रतीक है, जब भारत ने पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी ठिकानों पर सटीक हमले किए थे। त्रिशूल 2025 न केवल पश्चिमी सीमा पर दुश्मन की किसी भी हिमाकत का मुंहतोड़ जवाब देने की क्षमता दिखा रहा है, बल्कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के शब्दों में "पाकिस्तान ने हिमाकत की तो तबाह हो जाएगा" वाले संकल्प को साकार कर रहा है। अभ्यास के दौरान जैसलमेर से सर क्रीक तक का क्षेत्र नो-फ्लाई जोन घोषित है, जिसके चलते पाकिस्तान ने भी 1 से 30 नवंबर तक अपने दक्षिणी और तटीय हवाई क्षेत्र बंद करने का नोटाम (नोटिस टू एयरमेन) जारी किया है—एक स्पष्ट संकेत कि इस्लामाबाद में बेचैनी बढ़ गई है।

भविष्य की जंग की तैयारी: मल्टी-डोमेन वॉरफेयर का नया अध्याय

त्रिशूल 2025 सिर्फ हथियारों का प्रदर्शन नहीं, बल्कि साइबर वॉरफेयर, इलेक्ट्रॉनिक जामिंग और स्पेस-बेस्ड ऑपरेशंस का अभ्यास है। तीनों सेनाओं के टॉप कमांडर इसकी निगरानी कर रहे हैं, ताकि वास्तविक युद्ध में कमांड-कंट्रोल प्रणाली और तेजी से निर्णय लेने की क्षमता मजबूत हो। यह अभ्यास भारत की 'आत्मनिर्भर भारत' पहल को भी मजबूत कर रहा है, जहां डीआरडीओ के स्वदेशी हथियारों—जैसे ब्रह्मोस मिसाइल वेरिएंट्स और आकाश एयर डिफेंस सिस्टम—की पूरी क्षमता परखी जा रही है।थार के रेत धोरों से उठती यह गरज भारत की अटल शक्ति का प्रतीक है—एक ऐसा त्रिशूल जो दुश्मन की किसी भी साजिश को भस्म करने को तैयार है। जैसे ही अभ्यास समाप्ति की ओर बढ़ेगा, दुनिया को फिर एक बार भारत की सैन्य महाशक्ति का एहसास होगा।